एक किशोर स्कूल से लेखन-गृह-कार्य लेकर घर आता है। वह अपने पिता से इसमें कुछ सहायता चाहता है। “पिताजी, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि सम्भावना और वास्तविकता में क्या अन्तर है?”

उसके पिता सोचने की मुद्रा में ऊपर की और ताकते हैं, और फिर कहते हैं, “मैं तु्म्हें अन्तर दिखाऊँगा। तुम जाकर अपने माँ से पूछो कि क्या वह सौ करोङ रूपये के लिए अम्बानी के साथ सो सकती है। फिर अपनी बहन के पास जाओ और उससे पूछो कि क्या वह सौ करोङ रूपये के लिए शाहरूख ख़ान के साथ सो सकती है। बाद में मेरे पास आओ और बताओ कि तुमने क्या सीखा।”

बच्चा आश्चर्यचकित हो गया, पर उसने निश्चय किया कि वह पता लगाएगा कि उसके पिता उसे क्या समझाना चाहते हैं। वह अपनी माँ से पूछता है, “माँ, अगर तुम्हें सौ करोङ रूपये दिए जाएँ तो क्या तुम अम्बानी के साथ सो सकती हो?”

उसकी माँ थोङा इधर-उधर देखती है, और फिर अपने चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट लाकर कहती है, “अपने पिता को मत बताओ, पर, हाँ, मैं सोऊँगी।”

तब वह अपनी बहने के कमरे में जाता है और उससे पूछता है, “दीदी, अगर तुम्हें सौ करोङ रूपये दिये जाएँ तो क्या तुम शाहरूख़ ख़ान के साथ सोओगी?”

उसकी बहन उसे देखकर कहती है, “ज़रूर!”

बच्चा अपने पिता के पास वापस जाता है और कहता है, “पिताजी, मुझे लगता है कि मुझे सवाल का उत्तर मिल गया है। सम्भावना है कि, हम दो सौ करोङ के ऊपर बैठे हैं, पर वास्तविकता है कि, हम दो वेश्याओं के साथ जी रहे हैं।”