कहता है की पति पत्नी गंदा करते हें. मैने पूछा नहीं की सुलेमान कौन था, मैं बोली : गंदा माइने क्या ? नाम तो कहो, में भी जानू तो प्रदीप : चोदते हें. लंबा मुँह कर के में बोली : अच्छा ? बीन बोले उस ने सिर हिला कर हा कही. गंभीर मुँह से फिर मेने पूछा : लेकिन ये चोदना क्या होता है ? प्रदीप : सुलेमान ने कभी मुज़े ये नहीं बताया. शरमा ने का दिखावा कर के मेने कहा : में जानती हूँ कहूँ ? प्रदीप : हाँ, हाँ. कहो तोउस रात प्रदीप ने बताया की कभी कभी उस का लंड खड़ा होता था. कभी कभी स्वप्न दोष भी होता था. रसिकलाल सच कहते थे, उन्हों ने प्रदीप का खड़ा लंड देखा होगा. मेने आगे बातें चलाई : ये कहो, मुझ में सब से अच्छा क्या लगता है तुम्हे ? मेरा चहेरा ? मेरे हाथ ? मेरे पाँव ? मेरे ये..? मेने उन का हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया. प्रदीप : कहूँ ? तेरे गाल. में : मुझे पप्पी दोगे ?प्रदीप : क्यूं नहीं ? उस ने मेरे गाल पैर किस की. मेने उस के गाल पैर की. उनके लिए ये खेल था. मैने जैसा मुँह से मुँह लगाया की उस ने झटके से छुड़ा लिया और बोला : छी छी, ऐसा गंदा क्यूं करती हो ? में : गंदा सही, तुम्हे मीठा नहीं लगता ? प्रदीप : फिर से करो तो. मैने फिर मुँह से मुँह लगा कर किस किया.प्रदीप : अच्छा लगता है करो ना ऐसी पप्पी. मैने किस करने दिया. मैने मुँह खोल कर उस के होठ चाटे तब फिर वो ही सिलसिला दोहराया. मेने पूछा : प्यारे, पप्पी करते करते तुम को ओर कुछ होता है ? प्रदीप शरमा कर कुछ बोला नहीं. मैने पूछा : नीचे पिसब की जगह में कुछ होता है ना ? प्रदीप : तुम को कैसे मालूम ? में : मैं स्कूल में पढ़ी हूँ इस लिए कहो,, उधर गुदगुदी होती है ना ? प्रदीप : किसी से कहना मतमें : नहीं कहूँगी. में तुमारी पत्नी जो हूँ प्रदीप : मेरी नुन्नी में गुदगुदी होती है और कड़ी हो जाती है में : मैं देख सकती हूँ ? प्रदीप : नहीं. अच्छे घर की लड़कियाँ लड़ाकों की नुन्नी नहीं देखा करती.मैं : में तो स्कूल में ऐसा पढ़ी हूँ की पति पत्नी बीच कोई सीक्रेट नहीं है पत्नी पति की नुन्नी देख सकती है और उन से खेल भी सकती है पति भी अपनी पत्नी की वो वो... भोस देख डकाता है तुम ने मेरी देखनी है ? प्रदीप : पिताजी जानें गे तो बड़ी पिटाई होगी. में : श्ह्ह्हह.. कौन कहेगा उन से ? हमारी ये गुप्त बात रहेगी, कोई नहीं जान पाएगा. प्रदीप : हाँ, हाँ. कोई नहीं जान पाएगा. में : खोलो तो तुमारा पाजामा. पाजामा खोलने में मुझे मदद करनी पड़ी. निकर उतारी तब फ़ान फ़नाता हुआ उस का सात इंच का लंबा लंड निकल पड़ा. में ख़ुश हो गयी मैने मुट्ठी में पकड़ लिया और कहा : जानते हो ? ये तुमारी नुन्नी नहीं है ये तो लंड है प्रदीप : तू बहुत गंदा बोलती हो. मैने लंड पर मूट मारी और पूछा : कैसा लगता है ? लंड ने एक दो ठुमके लगाए. वो बोला : बहुत गुदगुदी होती है मैं : मेरी भोस देखनी नहीं है ?प्रदीप : हाँ, हाँ. मेरे वास्ते शरमा ने का ये वक़्त नहीं था.मैं पलंग पर चित लेट गयी घाघरी उठाई और पेंटी उतर दी. वो मेरी नंगी भोस देखता ही रह गया. बोला : में छू सकता हूँ ? मैं : क्यूं नहीं ? मेने जो तुमारा लंड पकड़ रक्खा हैडरते डरते उस ने भोस के बड़े होठ छुए. मेरे कहने पर चौड़े किए. भीतरी हिस्सा काम रस से गिला था. आश्चर्य से वो देखता ही रहा. मेऐन : देखा ? वो जो चूत है ना, वो इतनी गहरी होती है की सारा लंड अंदर समा जाय. प्रदीप : हो सकता है लेकिन चूत में लंड पेल ने की क्या ज़रूरत ? मैं : प्यारे, इसे ही चुदाई कहते हें. प्रदीप : ना, ना, तुम झूठ बोलती हो. मैं : में क्यूं झूठ बोलूं ? तुम तो मेरे प्यारे पति हो. मेने अभी अपनी भोस दिखाया की नहीं ?प्रदीप : में नहीं मानता. मैं : क्या नहीं मानते ? प्रदीप : वो जो तुम कहती हो ना की लंड चूत में डाला जाता है
मुझे वो किताब याद आ गयी मैने कहा : ठहरो, में कुछ दिखाती हूँ किताब के पहले पन्ने पर रसिकलाल का नाम लिखा हुआ था. वो दिखा कर मेने कहा :ये किताब पिताजी की है पिक्चर देख वो हेरान रह गया. मेने कहा : देख लिया ना ? अब तसल्ली हुई की चुदाई में क्या होता है ? उन पैर कोई असर ना पड़ा. वो बोला : मुज़े पिसब लगी हैमें : जाइए पीसाब कर ने के बाद लंड पानी से धो लीजिए, वो पिसब कर आया. उस का लंड नर्म हो गया था. मैने लाख
सहलाया, फिर से हिला नहीं. मुँह में ले कर चुस ती, लेकिन प्रदीप ने ऐसा करने ना दिया. रात काफ़ी बीत चुकी थी. में एक्साइट हो गयी थी लेकिन प्रदीप अनारी था. लंड खड़ा होने पैर भी उस के दिमाग़ में चोद ने की इच्छा पेदा नहीं हुई थी. वो बोला : भाभी, मुज़े नींद आ रही है उस रात से वो मुझे भाभी कहने लगा. मैने उसे गोद में ले कर सुलाया तो तुरंत नींद में खो गया. मैने सोचा आगे आगे चुदाई के पाठ पढ़ा उंगी और एक दिन उस का लंड मेरी चूत में ले कर चुदवा उंगी ज़रूर. लेकिन मेरे नसीब में कुछ ओर लिखा था. उन के कुछ शरारती दोस्तों ने उन के दिल में ठसा दिया की चूत में दाँत होते हैं नूनी जो चूत में डाली तो चूत उसे काट लेगी, फिर वो पीसाब कहाँ से करेगा. मेने लाख समझाया लेकिन वो नहीं माना. मैने कहा की उंगलियाँ डाल कर देख लो की अंदर दाँत है या नहीं. वो भी नहीं किया उस ने. बीन चुदवाये में कम्वारी ही रहरसिकलाल की पहचान वाले और प्रदीप के कई मुँह-बोले दोस्तों में से कितने भी ऐसे थे जिस ने मुझ पर बुरी नज़र डाली. दूर के एक देवर ने खुला पूछ लिया : भाभी, प्रदीप चोद ना सके तो गभराना नहीं, मैं जो हूँ चाहे तब बुला लेना. उन सब को मैने कह दिया की प्रदीप मेरे पति हें और मुझे अच्छी तरह चोद ते हें. दिन भर मैं उन सब का हिम्मत से सामना करती थी, रात अनारी बालम से बीन चुदवाये फूट फूट कर रो लेती थी. रसिकलाल लेकिन हुशियार थे, उन को तसल्ली हो गयी थी की प्रदीप ने मुझे चोदा नहीं था. मुझे शक है की चुपके से वो हमारे बेडरूम में देखा करते थे. जो कुछ भी हो, उन्हे पितामह बन ने की उतावल थी.एक दिन एकांत पा कर मुझ से पूछा : क्यूं बेटी ? सब ठीक है ना ? उन का इशारा चुदाई की ओर था जान कर मुझे शर्म आ गयी मेने सिर ज़ुक लिया, कुछ बोल ना सकी.. में रो पड़ी. मेरे कंधों पर हाथ रख कर वो बोले : मैं सब जनता हूँ तू अब भी कम्वारी हो. प्रदीप ने तुझे चोदा नहीं है सच है ना ? ससुरजी के मुँह से चोदा सुन कर मैं चोन्क़ गयी उन की बाहों से निकल गयी कुछ बोली नहीं. आँसू पॉच कर सिर हिला कर हा कही.वो फिर मेरे नज़दीक आए, मेरे कंधों पर अपनी बाह रख दी और बोले : बेटी, ये राज़ हम हमारे बीच रखेंगे की प्रदीप चोद ने के काबिल नहीं है लेकिन मुज़े पोता चाहिए इस का क्या ? मेरी इतनी बड़ी जायदाद, इतना बड़ा कारोबार सब सफ़ा हो जाएगा मेरे मार ने के बाद. वो तो वो लेकिन जब मैं इस दुनिया में ना रहूं तब तेरी और प्रदीप की देख भाल कौन करेगा जब तुम दोनो बुड्ढे हो जाओगे ? मुज़े लड़का चाहिए. है कोई इलाज तेरे पास ?मैं बोली : मैं क्या कर सकती हूँ पिताजी ? रसिकलाल : तुझे करना कहाँ है ? करवाना है सम्जी ? मैं : हाँ, लेकिन किस के पास जा उन ? आप की इच्छा है की मैं ओर कोई मर्द छी छी मुझ से ये नहीं हो सकेगा. रसिकलाल : मैं कहाँ कहता हूँ की तू ग़ैर मर्द से चुदवाओ. ससुरजी फिर चुदवाओ बोले, मुझे शरम आ गयी सच कहूँ तो मुझे बुरा नहीं लगा, थोड़ी सी गुदगुदी हो गयी और होटों पैर मुसकान आ गयी जो मैने मुँह पर हाथ रख कर छुपा दी. मैने पूछा : आप की क्या राई है ?कुछ मिनीटों वो चुप रहे, सोच में पड़ गये बोले : कुछ ना कुछ रास्ता मिल जाएगा, मैं सोच लूंगा. मुझे तू वचन दे की तू पूरा सहकार देगी. देगी ना ? मैने वचन दे दिया. वो चले गयेउस दिन के बाद ससुरजी का वर्तन बदल गया. अब वो अच्छे कपड़े पहन ने लगे. रोज़ शेविंग कर के स्प्रे लगा ने लगे. बाल जो थोड़े से सफ़ेद हुए थे वो रंग लगवा कर काले बना दिएक बार उन्हों ने पानी का पियाला माँगा. मेने पियाला धर दिया तब लेते वक़्त उन्हों ने मेरी उंगलियाँ छू ली. दुसरी बार पियाला पकड़ ने से पहले मेरी कलाई पकड़ ली. बात बात में मुज़े बाहों में ले कर दबोछ लेने लगे. मुज़े ये सब मीठा लगता था. आख़िर वो एक हट्टे कट्टे मर्द थे, भले प्रदीप जैसे जवान ना थे लेकिन मर्द तो थे ही. सासूज़ी के देहांत का एक साल हो गया था. मेरे ख़याल से उस के बाद उन्हों ने कभी चुदाई नहीं की थी, किसी के साथ मेरे जैसी जवान लड़की घर में हो, एकांत मिलता हो तो उन का लंड खड़ा हो जाय इस में उन का क्या कसूर ?थोड़े दिन तक मेरी समझ में आया नहीं की मैं क्या करूँ. फिर सोचने लगी की क्यूं ना सहकार दूं ? ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या करेंगे ? मुज़े चोदेन्गे ? हाय हाय सोचते ही मुझे गुदगुदी हो गयी ना ना, ऐसा नहीं करना चाहिए. क्यूं नहीं ? बच्चा पेदा होगा तो सब समस्याएँ हल हो जाएगी. किस को पता चलेगा की बच्चा किस का है ? और सच कहूँ तो मुज
भी चाहिए था कोई चोदने वाला. ऐर ग़ैर को ढूंढु इन से मेरे ससुरजी क्या कम थे ? मेने तय किया की मेरे कौमार्य की भेट में अपने ससुरजी को दूँगी और उन से चुदवा कर जब चूत खुल जाय तब प्रदीप का लंड लेने की सोचूँगी.उस दिन से ही मैने ससुरजी से इशारे भेजना शुरू कर दिया. मैने ब्रा पहन नी बंद कर दी. सलवार कमीज़ की जगह चोली घाघरी और ओढनी डालने लगी वो जब कलाई पकड़ लेते थे तब में शरमा कर मुस्कुराने लगी मेरा प्रतिभाव देख वो ख़ुश हुए. उन्हों ने छेड़ छाड़ बढ़ाई. एक दो बार मेरे गाल पर चिकोटी काट ली उन्हों ने. दुसरी बार मेरे कुले पर हाथ फिरा लिया. मैं अक्सर ओढनी का पल्लू गिरा कर चुचियाँ दिखाती तो कभी कभी घाघरी खिसका कर जांघें दिखाती रही.दिन ब दिन सेक्स का तनाव बढ़ता चला. एक समय ऐसा आया की उन की नज़र पड़ ते ही मैं शरमा जा ने लगी उन के छू ने से ही मेरी पीकी गीली होने लगी उन की मोज़ूड़ागी में नीपल्स कड़ी की कड़ी रहने लगी अब वो अपना धोती में छुपा टटार लंड मुझ से चुराते नहीं थे. मैं इंतेज़ार करती थी की कब वो मुझ पर टूट पड़ेंगे. आख़िर वो रात आ ही गयी प्रदीप सो गया था. ससुरजी रात के बारह बजे बाहर गाँव से लौटे. मेने खाना तैयार रक्खा था . वो स्नान करने गाये और मेने खाना परोसा.वो नहा कर बाथरूम से निकले तब मैने कहा : खाना तैयार है खा लीजिए. वो बोले : तूने ख़ाया ? मैं : नही जी. आप के आने की राह देख रही थी. वो बोले : सूहास, ये खाना तो हम हररोज खाते हें. जिस की मुझे तीन साल से भूख है वो वो कब खिलाओगी ? मैं : मैं कैसे खिला उन ? कहाँ है वो खाना ? वो : तेरे पास हैमैं समझती थी की वो क्या कह रहे थे. मुझे शर्म आने लगी नज़र नीची कर के मैने पूछा : मेरे पास ? मेरे पास तो कुछ नहीं है वो : है तेरे पास ही है दिखा उन तो खिलाओगी ? सिर हिला कर मैने हा कही. उधर मेरी पीकी गीली होने लगी मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयीवो मेरे नज़दीक आए. मेरे हाथ अपने हाथों में लिए होठों से लगाए . बोले : तेरे पास ही है बता उन ? तेरी चीकनी गोरी गोरी जांघें बीच. में शरमा गयी उन से छूटने की कोशिश करने लगी लेकिन उन्हों ने मेरे हाथ छोड़े नहीं बल्कि उठा कर अपनी गार्दन में डाल दिए मेने सरक कर नज़दीक गयी मेरी कमर पर हाथ रख कर उन्हों ने मुज़े अपनी पास खींच लिया और बाहों में जकड़ लिया. मैने मेरा चहेरा उन के चौड़े सेने में छुपा दिया. मेरे स्तन उन के पेट साथ डब गाये उन का टटार लंड मेरे पेट से दब गया. मेरे सारे बदन में झुरझूरी फैल गयीएक हाथ से मेरा चहेरा उठा कर उस ने मेरे मुँह पर अपना मुँह लगाया. पहले होठों से होठ छू ए, बाद में दबाए, आख़िर जीभ से मेरे होठ चाटे और अपने होठों बीच ले कर चुसे, मुझे कुछ कुछ होने लगा. ऐसी गरमी मेने कभी मेहसूस की नहीं थी. मेरे स्तन भारी हो गाये नीपल्स कड़ी हो गयी पीकी ने रस ज़राना शुरू कर दिया. मुज़ से खड़ा रहा गया नहीं.चुंबन का मेरा ये पहला अनुभव था, मुझे बहुत मीठा लगता था. उन्हों ने अपने बंद होठों से मेरे होठ रगडे. बाद में जीभ निकाल कर होठ पर फिराई.. फिराते फिराते उन्हों ने जीभ की नोक से मेरे होठों बीच की दरार टटोली. मेरे रोएँ खड़े हो गये अपने आप मेरा मुँह खाल गया और उन की जीभ मेरे मुँहमें पहुँच गयीउन की जीभ मेरे मुँह में चारों ओर घूम चुकी. जब उन्हों ने जीभ निकाल दी तब मैने मेरी जीभ से वैसा ही किया. मैने सुना था की ऐसे चुंबन को फ़्रेंच किस कहते हें.फ़्रेंच किस करते करते ही उन्हों ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बेडरूम में चल दिए पलंग पर चित लेटा दिया. ओढनी का पल्लू हटा कर उन्हों ने चोली में क़ैद मेरे छोटे स्तनों को थाम लिया. चोली पतले कपड़े की थी और मैने ब्रा पहनी नहीं थी इस लिए मेरी कड़ी नीपल्स उन की चीपटी में पकड़ा गयी इतने से उन को संतोष हुआ नहीं. फटा फट वो चोली के हूक खोलने लगे. मैं चुंबन करने में इतनी मशगूल थी की कब उन्हों ने चोली उतार फैंकी उस का मुझे पता ना चला. जब मेरी नीपल्स मसली गयी तब मेने जाना की मेरे स्तन नंगे थे और उन के पन्जे में क़ैद थे.स्तन सहलना कोई ससुरजी से सीखे. उंगलिओं की नोक से उन्हों ने स्तन की तलेटी छुना शुरू की और होले होले शिखर पर जहाँ नीपल है वहाँ तक पहुँचे. पाँचों उंगलिओं से कड़ी नीपल पकड़ ली और मसली. ऐसे पाँच सात बार किया हर स्तन के साथ. अब पन्जा फैला कर स्तन पर रख दिया और उंगलियाँ वाल कर सारा स्तन पन्जे में दबोच्च लिया. मेरे स्तन में दर्द होने लगा लेकिन मीठा लगता था. अंत में उन्हों ने एकके बाद एक नीपल और एरिओला चीपटी में ली और खींची और मसली. इन दौरान किस तो चालू ही थी.अचानक किस छोड़ कर उन्हों ने अपने होठ नीपल से चिपका दिए उन के होठ लगते ही नीपल से करंट जो निकला वो क्लैटोरिस तक जा पहुँचा. वैसे ही मेरी नीपल्स सेंसीटीव थी, कभी कभी ब्रा का स्पर्श भी सहन नहीं कर पाती थी. उस रात पहली बार मेरी नीपल्स ने मर्द की उंगलियाँ और होठों का अनुभव किया. छोटे लड़के की नुन्नी की तरह एरिओला के साथ नीपल कड़ी हो गयी थी. एक एक करके उन्हों ने दोनो नीपल्स चुसी , दोनो स्तन सहलाए और मसल डाले.उन्हों मे मुज़े धकेल कर चित लेता दिया, वो आधे मेरे बदन पैर छा गाये मेरी जाँघ के साथ उन का कड़ा लंड दब गया था, अपनी कमर हिला कर वो लंड मेरी जाँघ से घिस रहे थे. उन के हाथ स्तन पर था और मुँह मेरे मुँह को चूम रहा था. ज़्यादा देर उन से बारदस्त ना हो सकी. वो बोले, बेटी, अब में देर करूँगा तो चोदे बिना ही झाड़ जा उंगा. तू तैयार हो ?मेरी हा या ना कुछ काम के नहीं थे. मुझे भी लंड तो लेना ही था. मेरी सारी भोस सूज गयी टी और काम रस से गीली गीली हो गयी थी. मेने ख़ुद पाँव लंबे किए और चौड़े कर दिए वो उपर चड़ गये धोती हटा कर लंड निकाला और भोस पर रग़ादा. मेरे नितंब हिलने लगे. वो बोले : सूहास बेटी, ज़रा स्थिर रह जा, ऐसे हिला करोगी तो में कैसे लंड डालुंगा ?
मैने मुश्किल से मेरे नितंब हिल ने से रोके. हाथ में लंड पकड़ कर उन्हों ने चूत में डालना शुरू किया लेकिन लंड का मत्था फिसल गया और चूत का मुँह पा ना सका, पाँच सात धक्के ऐसे बेकार गये मेने जांघें उपर उठाई फिर भी वो चूत ढूँढ ना सके. लंड अब ज़रा सा नर्म होने लगा उन की उतावाल बढ़ गयीउस वक़्त मुज़े याद आया की नितंब नीचे तकिया रखने से भोस का एंगल बदलता है और चूत उपर उठ आती है उन से पूछे बिना मैने छोटा सा तकिया मेरे नितंब नीचे राझह दिया. अब की बार जब धक्का लगाया तब लंड का मत्था चूत के मुँह में घुस गया.मेरी चूत ने संकोचन किया. संकोचन से जैसे लंड दबा वैसे वो पुककर उठे : ना, ना ऐसा मत कर ऊओहह्ह्ह,आआ मेरी परवाह किए बिना उन्हों ने ज़ोरों से धक्के मारे. मेरा योनी पटल टूटा, मुज़े जान लेवा दर्द हुआ और ख़ून निकाला और मैं रो पड़ी. उन सब से वो अनजान रहे क्यूं की उन को ओर्गेझम हो रहा था, वो अपने आप पर काबू नहीं रख सकेछूट का दर्द कम हॉवे इस से पहले लंड नर्म होने लगा. भोस और क्लैटोरिस में गुड़गूदी के अलावा मुझे कोई ख़ास मझा ना आया. नर्म लोडा चूत से निकाल कर वो उतरे, बाथरूम से टॉवेल ले आए और मेरी भोस साफ़ की. मेरे ख़ून से मिला हुआ उन का वीर्य चारों ओर गिरा था वो सब उन्हों ने प्यार से साफ़ किया. मुझे फिर आगोश में लिए वो लेट गये और बोले : बेटी, तेरा एहसान मैं कभी नहीं भूलूं गा. लेकिन अभी हमें ज़्यादा काम करना बाक़ी है अब जो तेरी ज़िल्ली टूटी है तब फिर से चुदाई करने में बाधा नहीं आएगी. मैं : मैं प्रदीप से चुदवाने का प्रयास कर रही हूँ हो सके तो आप उस को इतना कहिय की चोदना गंदी बात नहीं है और चूत में दाँत नहीं होते.मेरी सुनकर वो हस पड़े. उन का हाथ मेरी क्लैटोरिस से खेल रहा था और मैने उन का लोडा पकड़ा था. उगालियों की करामात से वो मुझे ओर्गेझम की ओर ले चले. मेरे नितंब डोलने लगे और भोस से भर मार काम रस फिर से ज़र ने लगा. मैने उन की कलाई पकड़ ली लेकिन वो रुके नहीं. उन्हों ने एक उंगली चूत में डाली. चूत में फटाके होते थे वो उंगली से जान सके. मुझ से रहा नहीं जाता था. मेरे हाथ में पकड़ा हुआ उन का लोडा फिर तन गया था. मैने ही लंड खींच कर उन्हें मेरे बदन पर ले लिया. मैने लंड चूत पैर धर दिया तब वो बोले : बेटी, इतनी जलदी क्या है ? अभी तो तेरी चूत का घाव हरा है दर्द होगा लंड लेने से. मुझे उंगली से ही काम लेने दमैं लेकिन उन की सुन ने के मूड में नहीं थी. मुझे लंड चाहिए था, लंबा और कड़ा, उसी वक़्त, मेरी चूत में. वो मेरे बदन पर ओंधे पड़े थे, मेरे हाथ में उन का लंड था, मैं लंड चूत में डालने का प्रयास कर रही थी, वो रोक रहे थे. आख़िर मैने लंड मूल से पकड़ा और चूत के मुँह पर धरा. वो धक्का मारे या ना मारे मैने मेरे नितंब ऐसे उठाए की आधा लंड चूत में घुस गया. थोड़ा दर्द हुआ लेकिन लंबा चला नहीं. लंड घुस ते ही मैने योनी सिकूड कर उसे दबाता. लंड ने ठुमका लगाया, योनी ने फिर दबोचा, लंड फिर ठुमका. फिर क्या कहना था ? बाक़ी रहा आधा हिसा एक ही झटके से चूत में उतार कर वो रुके. मेरे मुँह पर चुंबन कर के पूछ ने लगे : दर्द तो नहीं होता ना ?मैने मेरे पाँव उन की कमर से लिपटाये और कहा : आप फिकर मत कीजिए. जो करना है वो कीजिए, मुझ से रहा नहीं जाता. आधा लंड निकाल कर छिछरे धक्के से वो मुझे चोद ने लगे. हर धक्के से योनी में से एलेक्ट्रिक करंट
निकलता था और सारे बदन में फैल जाता था.मेरे नितंब ज़ोर ज़ोर से हिल ने लगे थे. आठ दस धक्के बाद उन्हों ने फिर एक बार पूरा लंड योनी की गहराई में ज़ोर से घुसेड दिया. मूल तक लंड चूत में उतर गया. लंड का मूल से मेरी क्लैटोरिस दब गयी बस इतना काफ़ी था. मैं पूरी गरम हो चुकी थी. क्लैटोरिस के दब जाने के साथ ही मुझे जोरो का ओर्गेझम हो गया. मेरी चूत ने लंड नीचोड़ डाला. उस ने भी वीर्य छोड़ दिया. मेरा ओर्गेझम शांत होने तक वो रुके, बाद में उतरे. मैं थक गयी थी. करवट बदल कर सो गयदूसरे दिन से रसिकलाल का व्यवहार ऐसा रहा मानो की कुछ हुआ ही नहीं था. ये अच्छा था क्यूं की अडोस पड़ोस वाली चाचियाँ भाभियाँ और फुफ़्फ़ीयान सब मुझ पार कड़ी निगाहें डाल बैठी थी. मैने भी ऐसा वर्ताव रक्खा की जैसे प्रदीप मुझे रोज़ चोदता हो. उस दिन के बाद सावधानी से ससुरजी मुझे चोदते रहे. उन का बच्चा लग जाय इस से पहले मैं प्रदीप से छुड़वाना चाहती थी. एक मैने उस दिन प्रदीप की पसंदगी का खाना बनाया. रात जब सोए तब मैने पूछा : कैसा लगा आज का खाना ? प्रदीप : बहुत बढ़िया. रोज़ ऐसा क्यूं नहीं बनाती ? मैं : क्यूं की मैं आप से रुठ गयी हूँ प्रदीप : क्यूं ? मैं : इस लिए की आप मुझ से खेलते नहीं हें. प्रदीप : खेलूँगा. कौन सा खेल खेलना है ? मैं : राज कुमार और वन कन्या का.ख़ुश हो कर वो तालियाँ बजाने लगा और बोला :मैं राज कुमार बनूंगा. मैं : हाँ, हाँ, तुम ही हो राज कुमार. प्रदीप: आगे क्या होता है ? मैं : सुनो, पहले मैं आप को कहानी सुना उंगी. जैसे जैसे कहानी चले वैसे वैसे आप को राज कुमार का रोल अदा करना होगा. तैयार ? प्रदीप ; हाँ, तू क्या करेगी ? मैं : कहानी चलते ही आप समझ जाएँगे हुशियर हें ना आप ? मैने कहानी शुरू की ...... एक था राजा का बेटा, बिल्कुल आप जैसा. जवान भी था आप जैसा. पता है कैसे मालूम हुआ की वो जवान हो गया था ? प्रदीप : ना, कैसे मालूम हुआ ? मैं : उस का बदन भर गया. सीना चौड़ा हो गया. चहेरे पैर दाढ़ी मुछ निकल आए सब तुमारी तरह, हे ना ? प्रदीप : और क्या ? मैने शरमा के निगाहें झुका दी और बोली : और उस का वो .... वो जो है ना दो पाँव बीच, लंबा सा, क्या बोलते हें उसे ? प्रदीप : मूत की जगह ?मैं : हाँ, हाँ, वो ही. लेकिन उस का दूसरा नाम भी है प्रदीप : है लेकिन गंदा नाम है मैं : ऐसा ? सुनाओ तो मुझे. मुज़े सुनना है प्रदीप : ना, तू औरत है ऐसे लफ्ज़ नहीं सुनती और बोलती. मैं : तो कहानी ख़तम. मैं फिर आप से रुठ जा उंगी. मैने रुठ ने का और रोने का खेल खेला. वो पिघल गया और बोला : रो मत. किसी को कहना मत. उस को लोडा कहते हें. मैं : हाय हाय, तो वो लॅन ......लॅन .... लंड किसे कहते हें ? प्रदीप : मालूम नहीं. छोड़ो ना ये बेकार बातें. कहानी सुनाओ ना. मैं : हाँ , तो वो राज कुमार का लोडा लंबा और मोटा हो गया था जिस से पता चला की वो जवान हो गया था. तुमारा ....... लो ...लो.....लोडा भी मोटा हो गया है ना ? प्रदीप : हाँ , कभी कभी कड़ा भी हो जाता है . मैं : अरे वाह, राज कुमार को भी ऐसा ही होता था. उस का वो भी कड़ा हो जाता था. प्रदीप : फिर क्या हुआ ? मैं : एक दिन राज कुमार शिकार खेलने जंगल में गया. अपने रसाले से छूट कर वो बहुत दूर चला गया और रास्ता भूल गया. घूमते घूमते वो थक गया और उसे भूख भी लगी प्रदीप : फिर ?मैं : इतने में उस ने एक सरोवर देखा. वहाँ जा कर उस ने देखा की एक लड़की पानी में नहा रही थी. लड़की ने राज कुमार को देखा नहीं था. राज कुमार एक पेड़ के पीछे छुप कर लड़की को देखने लगा.
------------The End--------
निकलता था और सारे बदन में फैल जाता था.मेरे नितंब ज़ोर ज़ोर से हिल ने लगे थे. आठ दस धक्के बाद उन्हों ने फिर एक बार पूरा लंड योनी की गहराई में ज़ोर से घुसेड दिया. मूल तक लंड चूत में उतर गया. लंड का मूल से मेरी क्लैटोरिस दब गयी बस इतना काफ़ी था. मैं पूरी गरम हो चुकी थी. क्लैटोरिस के दब जाने के साथ ही मुझे जोरो का ओर्गेझम हो गया. मेरी चूत ने लंड नीचोड़ डाला. उस ने भी वीर्य छोड़ दिया. मेरा ओर्गेझम शांत होने तक वो रुके, बाद में उतरे. मैं थक गयी थी. करवट बदल कर सो गयदूसरे दिन से रसिकलाल का व्यवहार ऐसा रहा मानो की कुछ हुआ ही नहीं था. ये अच्छा था क्यूं की अडोस पड़ोस वाली चाचियाँ भाभियाँ और फुफ़्फ़ीयान सब मुझ पार कड़ी निगाहें डाल बैठी थी. मैने भी ऐसा वर्ताव रक्खा की जैसे प्रदीप मुझे रोज़ चोदता हो. उस दिन के बाद सावधानी से ससुरजी मुझे चोदते रहे. उन का बच्चा लग जाय इस से पहले मैं प्रदीप से छुड़वाना चाहती थी. एक मैने उस दिन प्रदीप की पसंदगी का खाना बनाया. रात जब सोए तब मैने पूछा : कैसा लगा आज का खाना ? प्रदीप : बहुत बढ़िया. रोज़ ऐसा क्यूं नहीं बनाती ? मैं : क्यूं की मैं आप से रुठ गयी हूँ प्रदीप : क्यूं ? मैं : इस लिए की आप मुझ से खेलते नहीं हें. प्रदीप : खेलूँगा. कौन सा खेल खेलना है ? मैं : राज कुमार और वन कन्या का.ख़ुश हो कर वो तालियाँ बजाने लगा और बोला :मैं राज कुमार बनूंगा. मैं : हाँ, हाँ, तुम ही हो राज कुमार. प्रदीप: आगे क्या होता है ? मैं : सुनो, पहले मैं आप को कहानी सुना उंगी. जैसे जैसे कहानी चले वैसे वैसे आप को राज कुमार का रोल अदा करना होगा. तैयार ? प्रदीप ; हाँ, तू क्या करेगी ? मैं : कहानी चलते ही आप समझ जाएँगे हुशियर हें ना आप ? मैने कहानी शुरू की ...... एक था राजा का बेटा, बिल्कुल आप जैसा. जवान भी था आप जैसा. पता है कैसे मालूम हुआ की वो जवान हो गया था ? प्रदीप : ना, कैसे मालूम हुआ ? मैं : उस का बदन भर गया. सीना चौड़ा हो गया. चहेरे पैर दाढ़ी मुछ निकल आए सब तुमारी तरह, हे ना ? प्रदीप : और क्या ? मैने शरमा के निगाहें झुका दी और बोली : और उस का वो .... वो जो है ना दो पाँव बीच, लंबा सा, क्या बोलते हें उसे ? प्रदीप : मूत की जगह ?मैं : हाँ, हाँ, वो ही. लेकिन उस का दूसरा नाम भी है प्रदीप : है लेकिन गंदा नाम है मैं : ऐसा ? सुनाओ तो मुझे. मुज़े सुनना है प्रदीप : ना, तू औरत है ऐसे लफ्ज़ नहीं सुनती और बोलती. मैं : तो कहानी ख़तम. मैं फिर आप से रुठ जा उंगी. मैने रुठ ने का और रोने का खेल खेला. वो पिघल गया और बोला : रो मत. किसी को कहना मत. उस को लोडा कहते हें. मैं : हाय हाय, तो वो लॅन ......लॅन .... लंड किसे कहते हें ? प्रदीप : मालूम नहीं. छोड़ो ना ये बेकार बातें. कहानी सुनाओ ना. मैं : हाँ , तो वो राज कुमार का लोडा लंबा और मोटा हो गया था जिस से पता चला की वो जवान हो गया था. तुमारा ....... लो ...लो.....लोडा भी मोटा हो गया है ना ? प्रदीप : हाँ , कभी कभी कड़ा भी हो जाता है . मैं : अरे वाह, राज कुमार को भी ऐसा ही होता था. उस का वो भी कड़ा हो जाता था. प्रदीप : फिर क्या हुआ ? मैं : एक दिन राज कुमार शिकार खेलने जंगल में गया. अपने रसाले से छूट कर वो बहुत दूर चला गया और रास्ता भूल गया. घूमते घूमते वो थक गया और उसे भूख भी लगी प्रदीप : फिर ?मैं : इतने में उस ने एक सरोवर देखा. वहाँ जा कर उस ने देखा की एक लड़की पानी में नहा रही थी. लड़की ने राज कुमार को देखा नहीं था. राज कुमार एक पेड़ के पीछे छुप कर लड़की को देखने लगा.
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