Sunday, April 13, 2008

तीन भाभीयां और नॉकरानी बसंती

hindi sexi stori

1में हूँ राज. कैसेहैआपसब मैं आप को हमारेगांवकी बात बताने जा रहा हूँ मेरे हिसाब से उसने कुच्छ बुरा नहीं किया हैहांलाकि कई लोग उसे पापी समझेंगें. कहानी पढ़ कर आप ही फ़ैसला कीजिएगा की जो हुआ वो सही हुआ है या नहींयेकहानीमेरेदोस्तमंगलकीहैअबाआपलोगमंगलकीजुबानी.

इसकहानीकामजालो कई साल पहले की बात है जब में अठारह साल का था और मेरे बड़े भैया, काशी राम चौथी शादी करना सोच रहे थे.

हम सब राजकोट से पच्चास km दूर एक छ्ोटे से गाँव में ज़मीदार हैं एक सौ बीघा की खेती है और लंबा चौड़ा व्यवहार है हमारा. गाँव मे चार घर और कई दुकानें है मेरे माता-पिताजी जब में दस साल का था तब मर गए थे. मेरे बड़े भैया काश राम और भाभी सविता ने मुज़े पल पोस कर बड़ा किया.

भैया मेरे से तेरह साल बड़े हें. उन की पहली शादी के वक़्त में आठ साल का था. शादी के पाँच साल बाद भी सविता को संतान नहीं हुई. कितने डॉक्टर को दिखाया लेकिन सब बेकार गया. भैया ने दूसरी शादी की, चंपा भाभी के साथ तब मेरी आयु तेरह साल की थी.

लेकिन चंपा भाभी को भी संतान नहीं हुई. सविता और चंपा की हालत बिगड़ गई, भैया उन के साथ नौकरानीयों जैसा व्यवहार कर ने लगे. मुझे लगता है की भैया ने दो नो भाभियों को चोदना चालू ही रक्खा था, संतान की आस में.

दूसरी शादी के तीन साल बाद भैया ने तीसरी शादी की, सुमन भाभी के साथ. उस वक़्त में सोलह साल का हो गया था और मेरे बदन में फ़र्क पड़ना शुरू हो गया था. मेरे वृषाण बड़े हो गये बाद में काखः में और लोडे पर बाल उगे और आवाज़ गह्रा हो गया. मुँह per मुच्च निकल आई. लोडा लंबा और मोटा हो गया. रात को स्वप्न-दोष हो ने लगा. में मूठ मारना सीख गया.

सविता और चंपा भाभी को पहली बार देखा तब मेरे man में चोदने का विचार तक आया नहीं था, में बच्चा जो था. सुमन भाभी की बात कुच्छ ओर थी. एक तो वो मुझ से चार साल ही बड़ी थी. दूसरे, वो काफ़ी ख़ूबसूरत थी, या कहो की मुज़े ख़ूबसूरत नज़र आती थी. उस के आने के बाद में हैर रात कल्पना कीये जाता था की भैया उसे कैसे चोदते होंगे और रोज़ उस के नाम मूट मार लेता था. भैया भी रात दिन उस के पिच्छे पड़े रहते थे. सविता भाभी और चंपा भाभी की कोई क़ीमत रही नहीं थी. में मानता हूँ की भैया बच्चे के वास्ते कभी कभी उन दो नो को भी चोदते थे. तजुबई की बात ये है की अपने में कुच्छ कमी हो सकती है ऐसा मानने को भैया तैयार नहीं थे. लंबे लंड से चोदे और ढेर सारा वीरय पत्नी की चूत में उंदेल दे इतना काफ़ी है मर्द के वास्ते बाप बनाने के लिए ऐसा उन का दरध विस्वास था. उन्हो ने अपने वीरय की जाँच करवाई नहीं थी.

उमर का फ़ासला होने से सुमन भाभी के साथ मेरी अचची बनती थी, हालन की वो मुझे बच्चा ही समझती थी. मेरी मौजूदगी में कभी कभी उस का पल्लू खिसक जाता तो वो शरमाती नहीं थी. इसी लिए उस के गोरे गोरे स्तन देखने के कई मौक़े मिले मुझे. एक बार स्नान के बाद वो कपड़े बदल रही थी और में जा पहुँचा. उस का आधा नंगा बदन देख में शरमा गया लेकिन वो बिना हिच किचत बोली, ' ख़टखटा के आया करो.'

दो साल यूँ गुज़र गये में अठारह साल का हो गया था और गाँव की स्कूल की 12 वी में पढ़ता था. भैया चौथी शादी के बारे में सोचने लगे. उन दीनो में जो घटनाएँ घटी इस का ये बयान है

बात ये हुई की मेरी उम्र की एक नॉकरानी, बसंती, हमारे घर काम पे आया करती थी. वैसे मेने उसे बचपन से बड़ी होते देखा था. बसंती इतनी सुंदर तो नहीं थी लेकिन चौदह साल की दूसरी लड़कियों के बजाय उस के स्तन काफ़ी बड़े बड़े लुभावने थे. पतले कपड़े की चोली के आर पार उस की छोटी छोटी निपपलेस साफ़ दिखाई देती थी. में अपने आप को रोक नहीं सका. एक दिन मौक़ा देख मेने उस के स्तन थाम लिया. उस ने ग़ुस्से से मेरा हाथ झटक डाला और बोली, 'आइंदा ऐसी हरकत करोगे तो बड़े सेठ को बता दूँगी' भैया के डर से मेने फिर कभी बसंती का नाम ना लिया.

एक साल पह्ले सत्रह साल की बसंती को ब्याह दिया गया था. एक साल ससुराल में रह कर अब वो दो महीनो केलिये यहाँ आई थी. शादी के बाद उस का बदन भर गया था और मुझे उस को चोदने का दिल हो गया था लेकिन कुच्छ कर नहीं पाता था. वो मुझ से क़तराती रहती थी और में डर का मारा उसे दूर से ही देख लार तपका रहा था.

अचानक क्या हुआ क्या मालूम, लेकिन एक दिन माहोल बदल गया. दो चार बार बसंती मेरे सामने देख मुस्कराई. काम करते करते मुझे गौर से देखने लगी मुझे अचछा लगता था और दिल भी हो जाता था उस के बड़े बड़े स्तनों को मसल डालने को. लेकिन डर भी लगता था. इसी लिए मेने कोई प्रतीभाव नहीं दिया. वो नखारें दिखती रही.

एक दिन दोपहर को में अपने स्टडी रूम में पढ़ रहा था. मेरा स्टडी रूम अलग मकान में था, में वहीं सोया करता था. उस वक़्त बसंती चली आई और रोती सूरत बना कर कहने लगी 'इतने नाराज़ क्यूं हो मुझ से, मंगल ?'
मेने कहा 'नाराज़ ? में कहाँ नाराज़ हूँ ? में क्यूं होऊं नाराज़?'
उस की आँखों में आँसू गाये वो बोली, 'मुझे मालूम है उस दिन मेने तुमरा हाथ जो झटक दिया था ना ? लेकिन में क्या करती ? एक ओर डर लगता था और दूसरे दबाने से दर्द होता था. माफ़ कर दो मंगल मुज़े.'

इतने में उस की ओढनी का पल्लू खिसक गया, पता नहीं की अपने आप खिसका या उस ने जान बूझ के खिसकाया. नतीजा एक ही हुआ, लोव कूट वाली चोली में से उस के गोरे गोरे स्तनों का उपरी हिस्सा दिखाई दिया. मेरे लोडे ने बग़ावत की नौबत लगाई.
में, उस में माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है ..मेने नाराज़ नहीं हूँ तो मुझे मागनी चाहिए.'
मेरी हिच किचाहत देख वो मुस्करा गयी और हँस के मुझ से लिपट गयी और बोली, 'सच्ची ? ओह, मंगल, में इतनी ख़ुश हूँ अब. मुज़े डर था की तुम मुज़ से रूठ गये हो. लेकिन में तुम्है माफ़ नहीं करूंगी जब तक तुम मेरी चुचियों को फिर नहीं छ्छुओगे.' शर्म से वो नीचा देखने लगी मेने उसे अलग किया तो उस ने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ अपने स्तन पर रख दिया और दबाए रक्खा.
'छ्छोड़, छ्छोड़ पगली, कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी.'
'तो होने दो. मंगल, पसंद आई मेरी चूची ? उस दिन तो ये कच्ची थी, छू ने पर भी दर्द होता था. आज मसल भी डालो, मज़ा आता है
मेने हाथ छुडा लिया और कहा, 'चली जा, कोई जाएगा.'
वो बोली, 'जाती हूँ लेकिन रात को आऊंगी. आऊं ना ?'
उस का रात को आने का ख़याल मात्र से मेरा लोडा तन गया. मेने पूच्छा, 'ज़रूर आओगी?' और हिम्मत जुटा कर स्तन को छुआ. विरोध किए बिना वो बोली,
'ज़रूर आऊंगी. तुम उपर वाले कमरे में सोना. और एक बात बताओ, तुमने कीस लड़की को चोदा है ?' उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया मगर हटाया नहीं.
'नहीं तो.' कह के मेने स्तन दबाया. ओह, क्या चीज़ था वो स्तन. उस ने पूच्छा, 'मुज़े चोदना है ?' सुन ते ही में चहोंक पड़ा.
'उन्न....हाँ
'लेकिन बेकिन कुच्छ नहीं. रात को बात करेंगे.' धीरे से उस ने मेरा हाथ हटाया और मुस्कुराती चली गयी

मुज़े क्या पता की इस के पिच्छे सुमन भाभी का हाथ था ?

रात का इंतेज़ार करते हुए मेरा लंड खड़ा का खड़ा ही रहा, दो बार मूट मरने के बाद भी. क़रीबन दस बजे वो आई.
'सारी रात हमारी है में यहाँ ही सोने वाली हूँ उस ने कहा और मुझ से लिपट गयी उस के कठोर स्तन मेरे सीने से दब गये वो रेशम की चोली, घाघारी और ओढ़नी पहेन आई थी. उस के बदन से मादक सुवास रही थी. मेने ऐसे ही उस को मेरे बहू पाश में जकड़ लिया
'हाय दैया, इतना ज़ोर से नहीं, मेरी हड्डियान टूट जाएगी.' वो बोली. मेरे हाथ उस की पीठ सहालाने लगे तो उस ने मेरे बालों में उंगलियाँ फीरानी शुरू कर दी. मेरा सर पकड़ कर नीचा किया और मेरे मुँह से अपना मुँह टीका दिया.

उस के नाज़ुक होठ मेरे होठ से छूते ही मेरे बदन में ज़्रज़ुरी फैल गयी और लोडा खड़ा होने लगा. ये मेरा पहला चुंबन था, मुज़े पता नहीं था की क्या किया जाता है अपने आप मेरे हाथ उस की पीठ से नीचे उतर कर चूतड पर रेंगने लगे. पतले कपड़े से बनी घाघारी मानो थी ही नहीं. उस के भारी गोल गोल नितंब मेने सहलाए और दबोचे. उस ने नितंब ऐसे हिलाया की मेरा लंड उस के पेट साथ दब गया.

थोड़ी देर तक मुह से मुँह लगाए वो खड़ी रही. अब उस ने अपना मुँह खोला और ज़बान से मेरे होठ चाटे. ऐसा ही करने के वास्ते मेने मेरा मुँह खोला तो उस ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी. मुझे बहुत अचछा लगा. मेरी जीभ से उस की जीभ खेली और वापस चली गयी अब मेने मेरी जीभ उस के मुँह में डाली. उस ने होत सिकूड कर मेरी जीभ को पकड़ा और चूसनेलगी. मेरा लंड फटा जा रहा था. उस ने एक हाथ से लंड टटोला. मेरे तातार लंड को उस ने हाथ में लिया तो उत्तेजना से उस का बदन नर्म पड़ गया. उस से खड़ा नहीं रहा गया. मेने उसे सहारा दे के पलंग पर लेटाया. चुंबन छ्छोड़ कर वो बोली, 'हाय, मंगल, आज में पंद्रह दिन से भूकी हूँ पिच्छाले एक साल से मेरे पति मुझे ह्र रोज़ एक बार चोदते है लेकिन यहाँ आने के मुझे जलदी से चोदो, में मारी जा रही हूँ

मुसीबत ये थी की में नहीं जानता था की चोदने में लंड कैसे और कहाँ जाता है फिर भी मेने हिम्मत कर के उस की ओढ़नी उतार फेंकी और मेरा पाजामा नीकाल कर उस की बगल में लेट गया. वो इतनी उतावाली हो गई थी की चोली घाघारी नीकाल ही नहींरही. फटाफट घाघारी उपर उठाई और जांघें चौड़ी कर मुझे उपर खींच लिया. यूँ ही मेरे हिप्स हिल पड़े थे और मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लंड अंधे की लकड़ी की तरह इधर उधर सर टकरा रहा था, कहीं जा नहीं पा रहा था. उस ने हमारे बदन के बीच हाथ डाला और लंड को पकड़ कर अपनी चूत पर डाइरैक्ट किया. मेरे हिप्स हिल ते थे और लंड चूत का मुँह खोजता था. मेरे आठ दस धक्के ख़ाली गये ह्र वक़्त लंड का मुंह फिसल जाता था. उसे चूत का मुँह मिला नहीं. मुझे लगा की में चोदे बिना ही झड जाने वाला हूँ लंड का मुंह और बसंती की चूत दोनो काम रस से तार बतर हो गये थे. मेरी नाकामयाबी पर बसंती हास पड़ी. उस ने फिर से लंड पकड़ा और चूत के मुँह पर रख के अपने चूतड ऐसे उठाए की आधा लंड वैसे ही चूत में घुस गया. तुरंत ही मेने एक धक्का जो मारा तो सारा का सारा लंड उस की योनी में समा गया. लंड की टोपी खीस गयी और चिकना मुंह चूत की दीवालों ने कस के पकड़ लिया. मुज़े इतना मज़ा रहा था की में रुक नहीं सका. आप से आप मेरे हिप्स तल्ला देने लगे और मेरा लंड अंदर बाहर होते हुए बसंती की चूत को छोड़ने लगा. बसंती भी चूतड हिला हिला कर लंड लेने लगी और बोली, 'ज़रा धीरे चोद, वरना जलदी झड जाएगा.'
मेने कहा, 'में नहीं चोदता, मेरा लंड चोदता है और इस वक़्त मेरी सुनता नहीं है
'मार डालोगे आज मुझे,' कहते हुए उस ने चूतड घुमाये और चूत से लंड दबोचा. दोनो स्तनो को पकड़ कर मुँह से मुँह चिपका कर में बसंती को चोदनेलगा

धक्के की रफ़्तार में रोक नहीं पाया. कुच्छ बीस पचीस तल्ले बाद अचानक मेरे बदन में आनंद का दरिया उमड़ पड़ा. मेरी आँखें ज़ोर से मूँद गयी मुँह से लार निकल पड़ी, हाथ पाँव अकड़ गये और सारे बदन पर रोएँ खड़े हो गये लंड चूत की गहराई में ऐसा घुसा की बाहर निकल ने का नाम लेता ना था. लंड में से गरमा गरम वीरय की ना जाने कितनी पिचकारियाँ छूटी, ह्र पिचकारी के साथ बदन में ज़ुरज़ुरी फैल गयी थोड़ी देर में होश खो बैठा.

जब होश आया तब मेने देखा की बसंती की टाँगें मेरी कमर केआस पास और बाहें गार्दन के आसपास जमी हुई थी. मेरा लंड अभी भी ताना हुआ था और उस की चूत फट फट फटके मार रही थी. आगे क्या करना है वो में जानता नहीं था लेकिन लंड में अभी गुड़गूदी होती रही थी. बसंती ने मुझे रिहा किया तो में लंड निकल कर उतरा.
'बाप रे,' वो बोली, ' इतनी अचची चुदाई आज कई दीनो के बाद की.'
'मेने तुझे ठीक से चोदा ?'
'बहुत अचछी तरह से.'

हम अभी पलंग पर लेते थे. मेने उस के स्तन पर हाथ रक्खा और दबाया. पतले रेशमी कपड़े की चोली आर पार उस की कड़ी निपपले मेने मसली. उस ने मेरा लंड टटोला और खड़ा पा कर बोली, 'अरे वाह, ये तो अभी भी तातार है कितना लंबा और मोटा है मंगल, जा तो, उसे धो के .'
में बाथरूम में गया, पीसाब किया और लंड धोया. वापस के मेने कहा, 'बसंती, मुझे तेरे स्तन और चूत दिखा. मेने अब तक किसी की देखी नहीं है

उस ने चोली घाघारी निकाल दी. मेने पहले बताया था की बसंती कोई इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी. पाँच फ़ीट दो इंच की उँचाई के साथ पचास किलो वज़न होगा. रंग सांवला, चहेरा गोल, आँखें और बाल काले. नितंब भारी और चिकाने. सब से अचछे थे उस के स्तन. बड़े बड़े गोल गोल स्तन सीने पर उपरी भाग पर लगे हुए थे. मेरी हथेलिओं में समाते नहीं थे. दो इंच की अरोला और छ्छोटी सी निपपले काले रंग के थे. चोली निकल ते ही मेने दोनो स्तन को पकड़ लिया, सहलाया, दबोचा और मसला.

उस रात बसंती ने मुझे अपनी चूत दिखाई. मोन्स से ले कर, बड़े होठ, छोटे होठ, क्लटोरिस, योनी सब दिखाया. मेरी दो उंगलियाँ चूत में डलवा के चूत की गहराई भी दिखाई, -सपोट दिखाया. वो बोली, 'ये जो क्लटोरिस है वो मरद के लंड बराबर होती है चोदते वक़्त ये भी लंड की माफ़िक कड़ी हो जाती है दूसरे, तू ने चूत की दिवालें देखी ? कैसी कारकरी है ? लंड जब चोदता है तब ये कारकरी दीवालों के साथ घिस पाता है और बहुत मज़ा आता है हाय, लेकिन बच्चे का जन्म के बाद ये दिवालें चिकानी हो जाती है चूत चौड़ी हो जाती है और चूत की पकड़ काम हो जाती है

मुझे लेटा कर वो बगल में बैठ गयी मेरा लंड थोडा सा नर्म होने चला था, उस को मुट्ठी में लिया. टोपी खींच कर मुंह खुला किया और जीभ से चाटा. तुरंत लंड ने टुमका लगाया और टाइट हो गया. में देखता रहा और उस ने लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगी मुँह में जो हिस्सा था उस पर वो जीभ फिराती थी, जो बाहर था उसे मुट्ठी में लिए मूठ मारती थी. दूसरे हाथ से मेरे वृषाण टटोलती थी. मेरे हाथ उस की पीठ सहला रहे थे.

मेने हस्त मैथुन का मज़ा लिया था, आज एक बार चूत चोदने का मज़ा भी लिया. इन दोनो से अलग किसम का मज़ा रहा था लंड चूसवाने में. वो भी जलदी से एक्शसीते होती चली थी. उस के तुँक से लाड़बड़ लंड को मुँह से निकल कर वो मेरी जांघे पैर बैठ गयी अपनी जांघें चौड़ी कर के चूत को लंड पर टिकाया. लंड का मुंह योनी के मुख में फसा की नितंब नीचा कर के पूरा लंड योनी में ले लिया. उस की मोन्स मेरी मोन्स से जुट गयी

'उऊउहहहहहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मज़आज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्जा अगयायययय्य्यया. मंगल, जवाब नहीं तेरे लंड का. जितना मीठा मुँह में लगता है इतना ही चूत में भी मीठा लगता है कहते हुए उस ने नितंब गोल घुमाये और उपर नीचे कर के लंड को अंदर बाहर कर ने लगी आठ दस धक्के मार ते ही वो थक गयी और ढल पड़ी. मेने उसे बांहो में लिया और घूम के उपर गया. उस ने टाँगें पसारी और पाँव अड्धार किया. पोजीशन बदलते मेरा लंड पूरा योनी की गहराई में उतर गया. उस की योनी फट फट करने लगी

सिखाए बिना मेने आधा लंड बाहर खींचा, ज़रा रुका और एक ज़ोरदार धक्के के साथ चूत में घुसेद दिया. मोन्स से मोन्स ज़ोर से टकराई. मेरे वृषाण गांड से टकराए. पूरा लंड योनी में उतर गया. ऐसे पाँच सात धक्के मारे. बसंती का बदन हिल पड़ा. वो बोली, 'ऐसे, ऐसे, मंगल, ऐसे ही चोद्द्द्द्द्द्द्द्द्द्दो मुझ्झ्झ्झ्झ्झ्झे. मार्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रो मेरी च्च्च्च्च्च्च्च्च्च्चूत को और फाड़ दो मेर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्री च्च्च्च्च्च्चूतत्त्त्त को.'

भगवान ने लंड क्या बनाया है च्च्च्च्च्च्चूतत्त्त्त मार ने के लिए कठोर और चिकना; च्च्च्च्च्च्च्च्च्च्चूत क्या बनाई है मार खाने के लिए घनी मोन्स और गद्दी जैसे बड़े होठ के साथ. जवाब नहीं उन का. मैने बसंती का कहा माना. फ़्री स्टयले से तापा ठप्प में उस को चोद ने लगा. दस पंद्रह धक्के में वो झड पड़ी. मेने पिस्तोनिंग चालू रक्खा. उस ने अपनी उंगली से क्लटोरिस को मसला और दूसरी बार झडी. उस की योनी में इतने ज़ोर से संकोचन हुए की मेरा लंड दब गया, आते जाते लंड की टोपी उपर नीचे होती चली और मुंह और तन कर फूल गया. मेरे से अब ज़्यादा बारदास्त नहीं हो सका. चूत की गहराई में लंड दबाए हुए में ज़ोर से झडा. वीरय की चार पाँच पिचकारियाँ छूटी और मेरे सारे बदन में ज़ुरज़ुरी फैल गयी में ढल पड़ा.

आगे क्या बताऊं ? उस रात के बाद रोज़ बसंती चली आती थी. हमें आधा एक घंटा समय मिलता था जब हम जम कर चुदाई करते थे. उस ने मुझे कई टेचनक सिखाई और पॉसीटिओं दिखाई. मेने सोचा था की कम से कम एक महीना तक बसंती को चोद ने का लुफ्त मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक हपते में ही वो ससुराल वापस चली गयी

असली खेल अब शुरू हुआ.

बसंती के जाने के बाद तीन दिन तक कुच्छ नहीं हुआ. में ह्र रोज़ उस की चूत याद कर के मूठ मरता रहा. चौथे दिन में मेरे कमरे में पढ़ ने का प्रयत्न कर रहा था, एक हाथ में तातार लंड पकड़े हुए, और सुमन भाभी पहॉंची. झटपट मेने लंड छ्छोड़ कपड़े सरीखे किया और सीधा बैठ गया. वो सब कुच्छ समझती थी इस लिए मुस्कुराती हुई बोली, 'कैसी चल रही है पढ़ाई, देवर्जी ? में कुच्छ मदद कर सकती हूँ ?'
भाभी, सब ठीक है मेने कहा.
आँखों में शरारत भर के भाभी बोली, 'पढ़ते समय हाथ में क्या पकड़ रक्खा था जो मेरे आते ही तुम ने छ्छोड़ दिया ?'
नहीं, कुच्छ नहीं, ये तो..ये में आगे बोल ना सका.
तो मेरा लंड था, यही ना ?' उस ने पूच्छा.
वैसे भी सुमन मुज़े अचची लगती थी और अब उस के मुँह से 'लंड' सुन कर में एक्साइट होने लगा. शर्म से उन से नज़र नहीं मिला सका. कुच्छ बोला नहीं.
उस ने धीरे से कहा, 'कोई बात नहीं. मे समझती हूँ लेकिन ये बता, बसंती को चोदना कैसा रहा ? पसंद आई उस की काली चूत ? याद आती होगी ना ?'
सुन के मेरे होश उड़ गये सुमन को कैसे पता चला होगा ? बसंती ने बता दिया होगा ? मेने इनकार करते हुए कहा, 'क्या बात करती हो ? मेने ऐसा वैसा कुच्छ नहीं किया है
'अचच्ा ?' वो मुस्कराती हुई बोली, 'क्या वो यहाँ भजन करने आती थी ?'
'वो यहाँ आई ही नहीं,' मेने डरते डरते कहा. सुमन मुस्कुराती रही.
'तो ये बताओ की उस ने सूखे वीरय से आकडी हुई निक्केर दिखा के पूच्छा, निक्केर किस की है तेरे पलंग से जो मिली है ?'
में ज़रा जोश में गया और बोला, 'ऐसा हो ही नहीं सकता, उस ने कभी निक्केर पहेनी ही में रंगे हाथ पकड़ा गया.
मेने कहा, 'भाभी, क्या बात है ? मेने कुच्छ ग़लत किया है ?'
उस ने कहा,'वो तो तेरे भैया फ़ैसला करेंगे.'

भैया का नाम आते ही में डर गया. मेने सुमन को गिडगिडाके के बिनती की जो भैया को ये बात ना बताएँ. तब उस ने शर्त रक्खी और सारा भेद खोल दिया.

सुमन ने बताया की भैया के वीरय में शुक्राणु नहीं थे, भैया इस से अनजान थे. भैया तीनो भाभियों को अचची तरह चोदते थे और ह्र वक़्त ढेर सारा वीरय भीछोड जाते थे. लेकिन शुक्राणु बिना बच्चा हो नहीं सकता. सुमन चाहती थी की भैया चौथी शादी ना करें. वो किसी भी तरह बच्चा पैदा करने को तुली थी. इस के वास्ते दूर जाने की ज़रूरत कहाँ थी, में जो मोजूद था ? सुमन ने तय किया की वो मुझ से छुदवायेगी और मा बनेगी.
अब सवाल उठा मेरी मंज़ूरी का. में कहीं ना बोल दूं तो ? भैया को बता दूं तो ? मुज़े इसी लिए बसंती की जाल में फासया गया था.

बयान सुन कर मेने हँस के कहा 'भाभी, तुझे इतना कष्ट लेने की क्या ज़रूरत थी ? तू ने कहीं भी, कभी भी कहा होता तो में तुझे चोदने का इनकार ना करता, तू चीज़ ऐसी मस्त हो.'
उस का चहेरा लाल ला हो गया, वो बोली, 'रहने भी दो, झूठे कहीं के. आए बड़े चोदने वाले. चोद ने के वास्ते लंड चाहिए और बसंती तो कहती थी की अभी तो तुमारी नुन्नी है उस को चूत का रास्ता मालूम नहीं था. सच्ची बात ना ?'
मेने कहा, 'दिखा दूं अभी नुन्नी है या लंड ?'
'ना बाबा, ना. अभी नहीं. मुज़े सब सावधानी से करना होगा. अब तू चुप रहेना, में ही मौक़ा मिलने पर जौंगी और हम करेंगे की तेरी नुन्नी है

दोस्तो, दो दिन बाद भैया दूसरे गाँव गाये तीन दिन के लिए उन के जाने के बाद दोपहर को वो मेरे कमरे में चली आई. में कुच्छ पूचछुन इस से पाहेले वो बोली, 'कल रात तुमरे भैया ने मुज़े तीन बार छोड़ा है सो आज में तुम से गर्भवती बन जाओउं तो किसी को शक नहीं पड़ेगा. और दिन में आने की वजह भी यही है की कोई शक ना करे.'

वो मुज़ से छिपक गयी और मुँह से मुँह लगा कर फ़्रेंच क़िसस कर ने लगी मेने उस की पतली कमर पैर हाथ रख दिए मुँह खोल कर हम ने जीभ लड़ाई. मेरी जीभ होठों बीच ले कर वो चुस ने लगी मेरे हाथ सरकते हुए उस के नितंब पर पहुँचे. भारी नितंब को सहलाते सहलाते में उस की सारी और घाघारी उपर तरफ़ उठाने लगा. एक हाथ से वो मेरा लंड सहलाती रही. कुच्छ देर में मेरे हाथ उस के नंगे नितंब पर फिसल ने लगे तो पाजामा की नाड़ी खोल उस ने नंगा लंड मुट्ठी में ले लिया.

में उस को पलंग पर ले गया और मेरी गोद में बिठाया. लंड मुट्ठी में पकड़े हुए उस ने फ़्रेंच क़िसस चालू रक्खी. मेने ब्लौसे के हूक खोले और ब्राके उपर से स्तन दबाए. लंड छ्छोड़ उस ने अपने आप ब्रा का हॉक खोल कर ब्रा उतार फेंकी. उस के नंगे स्तन मेरी हथेलिओं में समा गये शंकु आकर के सुमन के स्तन चौदह साल की लड़की के स्तन जैसे छ्होटे और कड़े थे. अरेओला भी छ्छोटी सी थी जिस के बीच नोकदर निपपले लगी हुई थी. मेने निपपले को मसला तो सुमन बोल उठी, 'ज़रा होले से. मेरी निपपलेस और क्लटोरिस बहुत सेंसीटिवे है उंगली का स्पर्श सहन नहीं कर सकती.' उस के बाद मेने निपपले मुँह में लिया और चूसनेलगा.

में आप को बता दूं की सुमन भाभी कैसी थी. पाँच फ़ीट पाँच इंच की लंबाई के साथ वज़न था साथ किलो. बदन पतला और गोरा था. चहेरा लुंब गोल तोड़ा सा नरगिस जैसा. आँखें बड़ी बड़ी और काली. बल काले , रेशमी और लुंबे. सीने पर छ्होटे छ्होटे दो स्तन जिसे वो हमेशा ब्रा से धके रखती थी. पेट बिल्कुल सपाट था. हाथ पाँव सूडोल थे. नितंब गोल और भारी थे. कमर पतली थी. वो जब हसती थी तब गालों में खड्ढे पड़ते थे.

मेने स्तन पकड़े तो उस ने लंड थाम लिया और बोली, 'देवर्जी, तुम तो तुमरे भईया जैसे बड़े हो गये हो. वाकई ये तेरी नुन्नी नहीं बल्कि लंड है और वो भी कितना तगड़ा ? हाय राम, अब ना तड़पाओ, जलदी करो.'

मेने उसे लेटा दिया. ख़ुद उस ने घाघरा उपर उठाया, जांघें चौडी की और पाँव अड्धार लिए में उस की चूत देख के दंग रह गया. स्तन के माफ़िक सुमन की चूत भी चौदह साल की लड़की की चूत जितनी छ्छोटी थी. फ़र्क इतना था की सुमन की मोन्स पर काले बाल थे और क्लटोरिस लुंबी और मोटी थी. भईया का लंड वो कैसे ले पाती थी ये मेरी समझ में ना सका. में उस की जांघों बीच गया. उस ने अपने हाथों से चूत के होठ चौड़े पकड़ रक्खे तो मेने लंड पकड़ कर सारी चूत पर रग़डा. उस के नितंब हिला ने लगे. अब की बार मुझे पता था की क्या करना है मेने लंड का मुंह चूत के मुँह में घुसाया और लंड हाथ से छ्छोड़ दिया. चूत ने लंड पकड़े रक्खा. हाथों के बल आगे झुक कर मेने मेरे हिप्स से ऐसा धक्का लगाया की सारा लंड चूत में उतर गया. मोन्स से मोन्स टकराई, लंड तमाक तुमक कर ने लगा और चूत में फटक फटक हो ने लगा.

में काफ़ी उत्तेजित हुआ था इसी लिए रुक सका नहीं. पूरा लंड खींच कर ज़ोरदार धक्के से मेने सुमन को चोदना शुरू किया. अपने चूतड उठा उठा के वो सहयोग देने लगी चूत में से और लंड में से चिकना पानी बहने लगा. उस के मुँह से निकलती आााह जैसी आवाज़ और चूत की पूच्च पूच्च सी आवाज़ से कमरा भर गया.

पूरी बीस मिनिट तक मेने सुमन भाभी की चूत मारी. दरमियाँ वो दो बार झडी. आख़िर उस ने चूत ऐसी सीकुडी की अंदर बाहर आते जाते लंड की टोपी छाड़ उतर करने लगी मानो की चूत मूठ मार रही हो. ये हरकत में बारदस्त नहीं कर सका, में ज़ोर से ज़रा. ज़र्रटे वक़्त मेने लंड को चूत की गहराई में ज़ोर से दबा र्खा था और टोपी इतना ज़ोर से खीछी गयी थी की दो दिन तक लोडे में दर्द रहा. वीरय छ्छोड़ के मेने लंड निकाला, हालन की वो अभी भी तना हुआ था. सुमन टाँगें उठाए लेती रही कोई दस मिनिट तक उस ने छूट से वीरय निकल ने ना दिया.

दोस्तो, क्या बतौँ ? उस दिन के बाद भैया आने तक ह्र रोज़ सुमन मेरे से चुदवाती रही. नसीब का करना था की वो प्रेगनेंट हो गयी घर में आनंद आनंद हो गया. सब ने सुमन भाभी को बढ़ाई दी. भईया सीना तान के मूंछ मरोड़ ते रहे. सविता भाभी और चंपा भाभी की हालत ओर बिगड़ गयी इतना अचच्ा था की प्रेगनेंसी के बहाने सुमन ने चुदवा ना माना कर दिया था, भैया के पास दूसरी दो नो को चोदनेके सिवा कोई चारा ना था.

जिस दिन भैया सुमन भाभी को डॉकटोर के पास ले आए उसी दिन शाम वो मेरे पास आई. घबराती हुई वो बोली, 'मंगल, मुझे डर है की सविता और चंपा को शक होगया है हमारे बारे में.'
सुन कर मुझे पसीना गया. भैया जान जाय तो आवश्य हम दोनो को जान से मार डाले. मेने पूच्छा, 'क्या करेंगे अब ?'
'एक ही रास्ता है वो सोच के बोली.
रास्ता है ?'
'तुझे उन दोनो को भी चोदना पड़ेगा. चोदेगा ?'
'भाभी, तुज़े चोद नेके बाद दूसरी को चोद ने का दिल नहीं होता. लेकिन क्या करें ? तू जो कहे वैसा में करूँगा.' मेने बाज़ी सुमन के हाथों छ्छोड़ दी.

सुमन ने प्लान बनाया. रात को जिस भाभी को भैया छोड़े वो भाभी दूसरे दिन मेरे पास चली आए. किसी को शक ना पड़े इस लिए तीनो एक साथ महेमान वाले घर आए लेकिन में चोदुं एक को ही.

थोड़े दिन बाद चंपा भाभी की बारी आई. महवरी आए तेरह डिनहुए थे. सुमन और सविता दूसरे कमरे में बही और चंपा मेरे कमरे में चली आई.

आते ही उस ने कपड़े निकल ना शुरू किया. मेने कहा, 'भाभी, ये मुज़े करने दे.' आलिनगान में ले कर मेने फ़्रेंच किस किया तो वो तड़प उठी. समय की परवाह किए बिना मेने उसे ख़ूब चूमा. उस का बदन ढीला पड गया. मेने उसे पलंग पर लेटा दिया और होले होले सब कपड़े उतर दिए मेरा मुँह एक निपपले पर गया, एक हाथ स्तन दबाने लगा, दूसरा क्लटोरिस के साथ खेलने लगा. थोड़ी ही देर में वो गरम हो गयी

उस ने ख़ुद टांगे उठाई और चौड़ी पकड़ रक्खी. में बीच में गया. एक दो बार चूत की दरार में लंड का मुंह रग़डा तो चंपा के नितंब डोलने लगे. इतना हो ने पर भी उस ने शर्म से अपनी आँखों पर हाथ रक्खे हुए थे. ज़्यादा देर किए बीन्सा मेने लंड पकड़ कर चूत पर टिकया और होले से अंदर डाला. चंपा की चूत सुमन की चूत जितनी सीकुडी हुई ना थी लेकिन काफ़ी टाइट थी और लंड पर उस की अचची पकड़ थी. मेने धीरे धक्के से चंपा को आधे घंटे तक चोदा. इस के दौरान वो दो बार झडी. मेने धक्के कीर आफ़्तर बधाई तोचंपा मुझ से लिपट गयी और मेरे साथ साथ ज़ोर से झडी. थकी हुई वो पलंग पर लेती रही, मेईन कपड़े पहन कर खेतों मे चला गया.

दूसरे दिन सुमन अकेली आई कहने लगी 'कल की तेरी चुदाई से चंपा बहुत ख़ुश है उस ने कहा है की जब चाहे मे समझ गया.

अपनी बारी के लिए सविता को पंद्रह दिन राह देखनी पड़ी. आख़िर वो दिन भी गया. सविता को मेने हमेशा मा के रूप में देखा था इस लिए उस की चुदाई का ख़याल मुज़े अचच्ा नहीं लगता था. लेकिन दूसरा चारा कहाँ था ?

हम अकेले होते ही सविता ने आँखें मूँद ली. मेरा मुँह स्तन पर चिपक गया. मुज़े बाद में पता चला की सविता की चाबी उस के स्तन थे. इस तरफ़ मेने स्तन चूसाना शुरू किया तो उस तरफ़ उस की चूत ने काम रस का फ़ावरा छ्छोड़ दिया. मेरा लंड कुच्छ आधा ताना था.और ज़्यादा अकदने की गुंजाइश ना थी. लंड चूत में आसानी से घुस ना सका. हाथ से पकड़ कर धकेल कर मट्ता चूत में पैठा की सविता ने चूत सिकोडी. टुमका लगा कर लंड ने जवाब दिया. इस तरह का प्रेमालाप लंड चूत के बीच होता रहा और लंड ज़्यादा से ज़्यादा अकड़ता रहा. आख़िर जब वो पूरा तन गया तब मेने सविता के पाँव मेरे कंधे पर लिए और लंबे तल्ले से उसे चोदने लगा. सविता की चूत इतनी टाइट नहीं थी लेकिन संकोचन कर के लंड को दबाने की त्रिक्क सविता अचची तरह जानती थी. बीस मिनुटे की चुदाई में वो दो बार झडी. मेने भी पिचकारी छ्छोड़ दी और उतरा.

दूसरे दिन सुमन वही संदेशा लाई जो की चंपा ने भेजा था. तीनो भाभिओं ने मुज़े चोदने का इशारा दे दिया था.

अब तीन भाभिओं और चौथा में, हम में एक संमझौता हुआ की कोई ये राज़ खोलेगा नहीं. सुमन ने भैया से चुदवाना बंद किया था लेकिन मुझ से नहीं. एक के बाद एक ऐसे में तीनो को चोदता रहा. भगवान कृपा से दूसरी दोनो भी प्रेगनेंट हो गयी भैया के आनंद की सीमा ना रही.

समय आने पर सुमन और सविता ने लड़कों को जन्म दिया तो चंपा ने लड़की को. भैया ने बड़ी दावत दी और सारे गाओं में मिठाई बाँटी. अचच्ा था की कोई मुझे याद करता नहीं था. भाभीयो की सेवा में बसंती भी गयी थी और हमारी रेगूलर चुदाई चल रही थी. मेने शादी ना करने का निश्चय कर लिया.

सब का संसार आनंद से चलता है लेकिन मेरे वास्ते एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है भैया सब बच्चों को बड़े प्यार से रखते है लेकिन कभी कभी वो जब उन से मार पीट करते है तब मेरा ख़ून उबल जाता है और मुझे सहन करना मुश्किल हो जाता है दिल करता है की उस के हाथ पकड़ लूं और बोलूं, 'रह ने दो, ख़बरदार मेरे बच्चे को हाथ लगाया तो.' ऐसा बोल ने की हिम्मत अब तक मेने जुट नहीं पाई.कर

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