Friday, April 18, 2008

कपडे धोने का मजा भाग - 1

 
कपडे धोने का मजा भाग - 1
 

बात बहुत पुरानी है पर आज आप लोगो के साथ बताने का मन कीया ईसलीये बता रहा हू. हमारा पारीवारीक काम कपडे धोने का था हम लोग एक छोटे से गांव में रहते थे और वह गांव में हम लोग को ही गांव के सरे कपडे साफ करने को मीलते थे. मेरे परीवार में मैं मेरी एक बहन , मेरे बडे भैया और एक सुंदर सी भाभी है. गांव के माहोल में ल्ड्कीयों की कम उम्र में शादीया हो जाती है इसीलीये जैसे ही मेरी बहन की उम्र १६ साल की हुई उसकी शादी कर दी गई और वो पडोस के गांव में चली गई. पीछले एक साल से घर में अब मेँ और मेरी भाभी और भैया के अलावा कोई नही बचा था मेरी उम्र इस समय १८ साल की हो गई थी और मेरा भी १९ साल चलने लगा था.

गांव के school में ही पढ़ाई लीखाई चालू थी. हमारा एक छोटा सा खेत था जीस पर bhai काम करते थे और मैं और भाभी ने कप्डे साफ करने का काम सम्भाल रखा था. कुल मीला कर हम बहुत सूखी सम्पन थे और कीसी चीज़ की दीक्कत नही थी. मेरे से पहले कप्डे साफ करने में भाभी का हाथ मेरी बहन बटाती थी मगर अब मैं ये काम कर्ता था. हम दोनो भाभी देवर हर वीक में दो बार नदी पर जाते थे और सफ़ाई करते थे फीर घर आकर उन कप्रो की इस्त्री कर के उन्हें गांव में वापस लौटा कर फीर से पुराने गंदे कप्डे एक्ठे कर लेते थे. हर बुधवार और शनीवार को मैं सुबह बजे के समय मैं और भाभी एक छोटे से गधे पर पुराने कप्डे लाद कर नदी की ओर निकल परते. हम गांव के पास बहने वाली नदी में कप्डे ना धो कर गांव से थोरा दूर जा कर सुनसान जगह पर कप्डे धोते थे क्योंकी गांव के पास वाली नदी पर साफ पानी भी नही मीलता था और दिस्तुर्बंस भी बहुत होता था.

अब मैं जरा अपनी भाभी के बारे में बता दु वो २४-२५ साल के उम्र की एक बहुत सुंदर गोरी चीटटी औरत है. जयादा लंबी तो नही परन्तु उसकी लम्बाई फूट इंच की है और मेरी फूट इंच की है. भाभी देखने मे बहुत सुंदर है. gaun में वैसे भी गोरा रंग और सुंदर होना कोई नई बात नही है. भाभी के सुंदर होने के कारण गांव के लोगो की नज़र भी उसके ऊपर रहती होगी ऐसा मैं समझता हु. और शायद इसी कारन से वो कप्रे धोने के लीये सून-सान जगह पर जाना जयादा पसंद करती थी. सबसे अकर्षक उसके मोटे मोटे चुतड और नारीयल के जैसी स्तन थे. जो की ऐसा लगते थे जैसे की ब्लौस को फाड के नीकल जायेंगे और भाले की तरह से नुकीले थे. उसके चुतड भी कम सेक्सी नही थे और जब वो चलती थी तो ऐसे मटकते थे की देखने वाले के उसके हीलते गांड को देख कर हील जाते थे. पर उस वाक्त मुझे इन बातो का कम ही ज्ञान था फीर भी थोडा बहुत तों गांव के ल्ड्को की साथ रहने के कारण पता चल ही गया था. और जब भी मैं और भाभी कपडे धोने जाते तो मैं बडी खुशी के साथ कप्रे धोने उसके साथ जाता था.

जब भाभी कपडे को नदी के कीनारे धोने के लीये बैठती थी तब वो अपनी साड़ी और पेटीकोट को घुटनों तक ऊपर उठा लेटी थी और फीर पीछे एक पठार पर बैठ कर आराम से दोनो टंगे फैला कर जैसा की औरते पेशाब करने व्क्त करती है कप्डो को साफ करती थी. मैं भी अपनी लुंगी को जांघ तक उठा कर कपडे साफ कर्ता रहता था. इस साथ ही में भाभी की गोरी गोरी टांगे मुझे देखने को मील जाती थी और उसकी साड़ी भी सीमट कर उसके ब्लौस के बीच में जाती थी और उसके मोटे मोटे चुचचो के ब्लौस के ऊपर से दर्शन होते रहते थे. कई बार उसकी साड़ी झंघो के ऊपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय में उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी केले के ताने जैसे चीक्नी जांघों को देख कर मेरा लंड खडा हो जाता था. मेरे मन में कई सवाल उठने लगते फीर मैं अपना सीर झटक कर काम करने लगता था. मैं और भाभी कप्डो की सफ़ाई के साथ-साथ तरह-तरह की गांव घर की बाते भी करते जाते कई बार हम उस सून-सान जगह पर ऐसा कुछ दीख जाता था जिसको देख के हम दोनो एक दुसरे से अपना मुँह छुपाने लगते थे.

कपडे धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फीर साथ लाए हुआ खाना खा नदी के कीनारे सुखाये हुए कपडे को इक्कठा कर के घर वापस लॉट जाते थे. मैं तों खैर लुंगी पहन कर नदी के अंदर क़मर तक पानी में नहाता था, मगर भाभी नदी के कीनारे ही बैठ कर नहाती थी. नहाने के लीये भाभी सबसे पहले अपनी साड़ी उतरती थी फीर अपने पेटीकोट के नारे को खोल कर पेटीकोट ऊपर को सरका कर अपने दांत से पाकर लेटी थी इस तरीके से उसकी पीठ तों दीखती थी मगर आगे से ब्लौस पुरा ढक जाता था फीर वो पेटीकोट को दांत से पाकर हुए ही अंदर हाथ दाल कर अपने ब्लौस को खोल कर उतरती थी और फीर पेटीकोट को छाती के ऊपर बाँध देती थी जीस से उसके चुच्चे पुरी तरह से पेटीकोट से ढक जाते थे और कुछ भी नज़र नही आता था और घुटनों तक पुरा बदन ढक जाता था. फीर वो वही पर नदी के कीनारे बैठ कर एक जग से पानी भर भर के पहले अपने पुरे बदन को रगड- रगड कर साफ करती थी और साबुन लगाती थी फीर नदी में उतर कर नहाती थी. भाभी की देखा देखी मैंने भी पहले नदी के कीनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना शुरू कर दीया फीर मैं नदी में दुब्की लगा के नहाने लगा.

मैं जब साबुन लगता तों मैं अपने हाथो को अपने लुंगी के घुसा के पुरे लंड,गांड पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा के सफ़ाई कर्ता था क्योंकी मैं भी भाभी की तरह बहुत सफ़ाई पसंद था. जब मैं ऐसा कर रह होता तों मैंने कई बार देखा की भाभी बारे गौर से मुझे देखती रहती थी और अपने पैर की ऐडीयां पठार पर धीरे धीरे रगड के साफ करती होती. मैं सोचता था वो शायद इसलिये देखती है की मैं ठीक से सफ़ाई कर्ता हु या नही इसलीये मैं भी ब्डे आराम से ख़ूब दीखा दीखा के साबुन लगता था की कही डांट ना सुनने को मील जाये की ठीक से साफ सफ़ाई का ध्यान नही रखता हु मैं. मैं अपने लुंगी के भीतर पुरा हाथ डाल के अपने लौडे को अच्छे तरीके से साफ कर्ता था इस काम में मैंने नोटीस कीया कई बार मेरी लुंगी भी इधर उधर हो जाती थी जससे भाभी को मेरे लंड की एक आध झलक भी दीख जाती थी. जब पहली बार ऐसा हुआ तों मुझे लगा की शायद भाभी डटेगी मगर ऐसा कुछ नही हुआ. तब निचिन्त हो गया और मजे से अपना पुरा धयान साफ सफ़ाई पर लगाने लगा.

भाभी की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार लालच जाता था और मैं भी चाहता था की मैं उसे साफे करते हुए देखु पर वो जयादा कुछ देखने नही देती थी और घुतो तक की सफ़ाई करती थी और फीर बडी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटीकोट के अंदर ले जा कर अपनी छाती की सफ़ाई करती जैसे ही मैं उसकी ओरे देखता तों वो अपना हाथ छाती में से नीकल कर अपने हाथो की सफ़ाई में जुट जाती थी. इसीलीये मैं कुछ नही देख पता था और चूकी वो घुटनों को मोर के अपने छाती से सटाये हुए होती थी इसिलए पेटीकोट के ऊपर से छाती की झलक मीलनी चाहीये वो भी नही मील पाती थी. इसी तरह जब वो अपने पेटीकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने झंघो और उसके बीच की सफ़ाई करती थी ये धयान रखती की मैं उसे देख रहा हु या नही. जैसे ही मैं उसकी ओरे घूमता वो झट से अपना हाथ नीकल लेटी थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन मसोस के रह जाता था. एक दीन सफ़ाई करते करते भाभी का धयान शायद मेरी तरफ से हट गया था और ब्डे आराम से अपने पेटीकोट को अपने झंघो तक उठा के सफ़ाई कर रही थी. उसकी गोरी चीक्नी झ्नाघो को देख कर मेरा लंड खडा होने लगा और मैं जो की इस व्क्त अपनी लुंगी को ढेला कर के अपने हाथो को लुंगी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफ़ाई कर रह था धीरे धीरे अपने लंड को मसलने लगा. तभी अचानक भाभी की नज़र मेरे ऊपर गई और उसने अपना हाथ नीकल लीया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी से नहा के काम खतम कर" मेरे तों होश ही उड गए और मैं जल्दी से नदी में जाने के लीये उठ कर खडा हो गया, पर मुझे इस बात का तों धयान ही नही रहा की मेरी लुंगी तों खुली हुई है और मेरी लुंगी सर्सरते हुए नीचे गीर गई. मेरा पुरा बदन नंगा हो गया और मेरा . इंच का लंड जो की पुरी तरह से खडा था धुप की रौशनी में नज़र आने लगा. मैंने देखा की भाभी एक पल के लीये चकीत हो कर मेरे पुरे बदन और नंगे लंड की ओरे देखती रह गई मैंने जल्दी से अपनी लुंगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बाडा डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तों पक्की डांट पडेगी और मैंने कंखीयो से भाभी की ओरे देखा तों पाया की वो अपने सीर को नीचे कीया हलके हलके मुस्कुरा रही है और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफ़ाई कर रही है. मैं ने राहत की सांस ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दीन हम जयदतार चुप चाप ही रहे. घर वापस लौटते व्क्त भी भाभी जयादा नही बोली.

दुसरे दीन से मैंने देखा की भाभी मेरे साथ कुछ जयादा ही खुल कर हंसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल meaning में भी बाते होने लगी थी. पता नही भाभी को पता था या नही पर मुझे बाडा मज़ा रहा था. मैंने जब भी कीसी के घर से कपडे ले कर वापस लौटता तों भाभी बोलती "क्योंकी राधा के कपडे भी लाया है धोने के लीये क्या". तों मैं बोलता, 'हां', इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना उसके कपडे बाडा गंदा करती है. उसकी सलवार तों मुझसे धोई नही जाती". फीर पूछती थी "अंदर के कपडे भी धोने के लीये दीये है क्या" अंदर के कप्डो से उसका मतलब पैंटी और ब्रा या फीर अंगीया से होता था, मैं कहता नही तों इस पर हँसने लगती और कहती "तू ल्डका है ना शायद इसीलीये तुझे नही दीया होगा, देख अगली बार जब मैं मांगने जाऊंगी तों जरुर देगी" फीर अगली बार जब वो कपडे लाने जाती तों सुच मुच में वो उसकी पैंटी और अंगीया ले के आती थी और बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तू ल्डका है ना तेरे को देने में शर्माती होंगी, फीर तू तों अब जवान भी हो गया है" मैं अनजान बाना पूछता क्या देने में शर्माती है राधा तों मुझे उसकी पैंटी और ब्रा या अंगीया फैला कर दीखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं शर्मा जाता और कंखीयों से देख कर मुँह घुमा लेटा तों वो बोलती "अरे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना पडेगा" कह के हँसने लगती. हलकी अच्तुअल्ल्य ऐसा कुछ नही होता और जयदतार मर्दो के कपडे मैं और औरतो के भाभी ही धोया करती थी क्योंकी उस में जयादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्योंकी भाभी अब कुछ दीनो से इस तरह की बातो में जयादा interest लेने लगी थी. मैं भी चुप चाप उसकी बाते सुनता रहता और मजे से जवाब देता रहता था.

जब हम नदी पर कपडे धोने जाते तब भी मैं देखता था की भाभी अब पहले से थोडी जयादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लौस को खोलती थी और पेटीकोट को अपनी छाती पर बंधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस पर धयान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लौस को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले वो मेरे नहाने तक इंतज़ार करती थी और जब मैं थोडा दूर जा के बैठ जाता तब पुरा नहाती थी. मेरे नहाते व्क्त उसका मुझे घुरना बदसतूर जरी था और मेरे में भी हीम्म्त गई थी और मैं भी जब वो अपने छातीयों की सफ़ाई कर रही होती तों उसे घुर कर देखता रहता. भाभी भी मज़े से अपने पेटीकोट को झंघो तक उठा कर एक पठार पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे acting करती जैसे मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मुडे हुए होते थे और एक पैर थोडा पहले आगे पसरती और उस पर पुरा जांघों तक साबुन लगाती थी फीर पहले पैर को मोड कर दुसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती. पुरा अंदर तक साबुन लगाने के लीये वो अपने घुटने मोड रखती और अपने बाये हाथ से अपने पेटीकोट को थोडा उठा के या अलग कर के दहीने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती. मैं चूकी थोडी दूर पर उसके बगल में बैठा होता इसीलीये मुझे पेटीकोट के अनादर का नजारा तों नही मीलता था, जिसके कारण से मैं मन मसोस के रह जाता था की काश मैं सामने होता, पर इतने में ही मुझे गज़ब का मज़ा जाता था. और उसकी नंगी चीक्नी चीक्नी जंघे ऊपर तक दीख जाती थी.

भाभी अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद ब्डे म्ग को उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटीकोट के अंदर दल देती और दुसरे हाथ से साथ ही साथ रागाडती भी रहती थी. ये इतना जबर्दस्त सीन होता था की मेरा तों लंड खडा हो के फुफ्कारने लगता और मैं वही नहाते नाते अपने लंड को मसलने लगता. जब मेरे से बर्दास्त नही होता तों मैं सीदा नदी में क़मर तक पानी में उतर जाता और पानी के अंदर हाथ से अपने लंड को पाकर कर खडा हो जाता और भाभी की तरफ घूम जाता. जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घूम कर नहाते देखती तों वो मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती हुई बोलती " जयादा दूर मत जाना कीनारे पर ही नहा ले आगे पानी बहुत गहरा है", मैं कुच्छ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसलते हुए नहाने की acting कर्ता रहता. इधर भाभी मेरी तरफ देखती हुई अपने हाथो को ऊपर उठा उठा के अपने कांख की सफ़ाई करती कभी अपने हाथो को अपने पेटीकोट में घुसा के छाती को साफ करती कभी झंघो के बीच हाथ घुसा के ख़ूब तेजी से हाथ चलने लगती, दूर से कोई देखे तों ऐसा लगेगा के मुठ मार रही है और शायद मरती भी होगी. कभी कभी वो भी खडे हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटीकोट जो की उसके बदन चीप्का हुआ होता था गीला होने के कारण मेरी हालत और जयादा खराब कर देता था. पेटीकोट चीपकने के कारण उसकी बडी बडी चुचीया नुमाया हो जाती थी. कपडे के ऊपर से उसके ब्डे ब्डे मोटे मोटे नीप्प्ल तक दीखने लगते थे. पेटीकोट उसके चुताडो से चीपक कर उसके गांड के दरार में फसा हुआ होता था और उसके ब्डे ब्डे चुतड साफ साफ दीखई देते रहते थे. वो भी क़मर तक पानी में मेरे ठीक सामने के खडी हो के दुब्की लगाने लगती और मुझे अपने चुचीयों का नज़ारा करवाती जाती. मैं तों वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मर लेटा था. हलकी मूठ मरना मेरी आदत नही थी घर पर मैं ये काम कभी नही कर्ता था पर जब से भाभी के स्वाभाव में change आया था नदी पर मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मजबूर हो जाता था.

अब तों घर पर मैं जब भी इस्त्री करने बैठता तों मुझे बोलती जाती "देख ध्यान से इस्त्री पीछली बार गांव की औरते बोल रही थी की उसके ब्लौस ठीक से इस्त्री नही थे" मैं भी बोल परता "ठीक है कर दूंगा, इतना छोटा सा बलौस तों पहनती है, ढंग से इस्त्री भी नही हो पाती, पता नही कैसे काम चलती है इतने छोटे से ब्लौस में" तोंभाभी बोलती "अरे उसकी छातीया जयादा बडी थोरे ही है जो वो बाडा ब्लौस पहनेगी , हां उसकी सास केब्लौस बहुत ब्डे ब्डे है बुढीया की छाती पहाड जैसी है" कह कर भाभी हँसने लगतीफीर मेरे से बोलती"तूsabke ब्लौस की लम्बाई चौरई देखता रहता है क्या या फिर इस्त्री कर्ता है". मैं क्या बोलता चुप चाप सीर झुका कर इस्त्री करते हुए धीरे से बोलता "अरे देखता कौन है, नज़र चली जाती है, बस्स". इस्त्री करते करते मेरा पुरा बदन पसीने से नहा जाता था. मैं केवल लुंगी पहने इस्त्री कर रहा होता था. भाभी मुझे पसीने से नहाये हुए देख कर बोलती "छोड अब तू कुछ आराम कर ले तब तक मैं इस्त्री करती हु," भाभी ये काम करने लगती. थोडी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी साड़ी खोल कर एक ओरे फेक देती और बोलती "बडी गरमी है रे, पता नही तू कैसे कर लेता है इतने कप्डो की इस्त्री मेरे से तों ये गरमी बर्दास्त नही होती" इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभी और मोटे चुचचो को देखता हुआ बोलता

"ठण्डा कर दु तुझे"

"कैसे करेगा ठण्डा" ?????

"डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झाल देता हु", फेन चलाने पर तों इस्त्री ही ठण्डी पर जायेगी"

"रहने दे तेरे डंडे वाले पंखे से भी कुछ नही होने जाने का, छोटा सा तों पनख़ा है तेरा"

कह कर अपने हाथ ऊपर उठा कर माथे पर छलक आये पसीने को पोछ्ती तों मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पुरी भीग गई है और उसके ग्र्द्न से बहता हुआ पसीना उसके ब्लौस के अंदर उसके दोनो चुचीयों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लौस को भेगा रहा होता घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तों कभी पहनती नही थी इस कारण से उसके पतले ब्लौस को पसीना पुरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचीया उसके ब्लौस के ऊपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो हलके रंगा का ब्लौस पहनी होती तों उसके मोटे मोटे भूरे रंग के नीप्प्ल नज़र आने लगते. ये देख कर मेरा लंड खडा होने लगता था. कभी कभी वो इस्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटीकोट को उठा के पसीना पोछने के लीये अपने सीर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौक़े के इंतज़ार में बैठा रहता था, क्योंकी इस व्क्त उसकी आंखे तों पेटीकोट से ढक जाती थी पर पेटीकोट ऊपर उठने के कारण उसका टांगे पुरा जगह तक नंगी हो जाती थी और मैं बीना अपनी नजरो को चुराए उसके गोरी चीटटी मखमली जह्न्घो को तों जीं भर के देखता था. भाभी अपने चहरे का पसीना अपनी आंखे बंद कर के पुरे आराम से पोछ्ती थी और मुझे उसके मोटे कंडली के खभे जैसे जगहों को पुरा नज़ारा दीखती थी. गांव में औरते साधारणतया पैंटी नही पहनती है और कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झातो की हलकी सी झलक देखने को मील जाती. जब वो पसीना पोछ के अपना पेटीकोट नीचे करती तब तक मेरा काम हो चूका होता और मेरे से बर्दास्त करना संभव नही हो पता मैं जल्दी से घर के पिछ्वाडे की तरफ भाग जाता अपने लंड को थोडा ठण्डा करने के लीये. जब मेरा लंड down हो जाता तब मैं वापस जाता. भाभी पूछती कहा गया था तों मैं बोलता "थोडी ठण्डी हवा खाने बडी गरमी लग रही थी"

" ठीक कीया बदन को हवा लगते रहने चाहीये, फीर तू तों अभी बाडा हो रहा है तुझे और जयादा गरमी लगती होगी"

" हां तुझे भी तों गरमी लग रही होगी भाभी जा तू भी बहार घूम कर जा थोडी गरमी शांत हो जायेगी" और उसके हाथ से इस्त्री ले लेता. पर वो बहार नही जाती और वही पर एक तरफ मोधे (प्लंग) पर बैठ जाती अपने पैरो घुटने के पास से मोड कर और अपने पेटीकोट को घुटनों तक उठा के बीच में समेट लेटी. भाभी जब भी इस तरीके से बैठती थी तों मेरा इस्त्री करना मुस्कील हो जाता था. उसके इस तरह बैठने से उसकी घुटनों से ऊपर तक की जानघे और दीखने लगती थी.

"अरे नही रे रहने दे मेरी तों आदत पर गई है गरमी बर्दास्त करने की"

"क्यों बर्दाश्त करती है गरमी दीमाग पर चढ़ जायेगी जा बहार घूम के जा ठीक हो जाएगा"

"जाने दे तू अपना काम कर ये गरमी ऐसे नही शांत होने वाली, तेरा भाई अगर समझदार होता तों गरमी लगती ही नही, पर उसे क्या वो तों पडी देसी पी के सोया परा होगा" शाम होने को आई मगर अभी तक नही आया"

"आरे, तों इसमे भाई की क्या गलती है मौसम ही गरमी का है गरमी तों लगेगी ही"

"अब मैं तुझे कैसे समझाऊ की उसकी क्या गलती है, काश तू थोडा समझदार होता" कह कर भाभी उठ कर खाना बनाना चल देती मैं भी सोच में परा हुआ रह जाता की अखीर भाभी चाहती क्या है.

रात में जब खाना खाने का time आता तों मैं नहा धो कर kitchen में जाता, खाना खाने के लीये. भाभी भी वही बैठा के मुझे गरम गरम रोटीया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो पेटीकोट और ब्लौस में ही होती थी क्यों की kitchen में गरमी होती थी और उसने एक छोटा सा पल्लू अपने कंधों पर डाल रखा होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोछ्ती रहती और खाना खीलाती जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.

मैंने मज़ाक करते हुए बोलता " सच में भाभी तुम तों गरम इस्त्री (वूमन) हो". वो पहले तों कुछ समझ नही पाती फिर जब उसकी समझ में आता की मैं iron इस्त्री ना कह के उसे इस्त्री कह रहा हु तों वो हँसने लगती और कहती.

"हां मैं गरम इस्त्री हु", और अपना चेहरा आगे करके बोलती "देख कीतना पसीना रहा है, मेरी गरमी दूर कर दे"

"मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठण्डी चीज़ खाया कर"

"अच्चा, कौन से ठण्डी चीज़ मैं खाऊ की मेरी गरमी दूर हो जायेगी"

"केले और बैगन की सब्जीया खाया कर"

इस पर भाभी का चेहरा लाल हो जाता था और वो सीर झुका लेटी और धीरे से बोलती " अरे केले और बैगन की सब्जी तों मुझे भी अच्छी लगती है पर कोई लाने वाला भी तों हो, तेरा भाई तों ये सब्जीया लाने से रहा, ना तों उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगन"

"तू फीकर मत कर मैं ला दूंगा तेरे लीये"

"हाय, बाडा अच्चा है, भाभी का कीतना ध्यान रक्त है"

मैं खाना खतम करते हुए बोलता, "चल अब खाना तों हो गया खतम, तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले", "अरे नही अभी तों तेरा भाई देसी चढा के आता होगा, उसको खीला दूंगी तब कहूंगी, तब नहा लेती हु" तू जा और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है". मुझे भी ध्यान गया की हां कल तों नदी पर भी जाना है मैं छत पर चला गया. गरमीयों में हम तीनो लोग छत पर हाय सोया करते थे. ठण्डी ठण्डी हवा बह रही थी, मैं बीस्तर पर लेट गया और अपने हाथो से लंड मसलते हुए भाभी के खूबसूरत बदन के ख्यालों में खोया हुआ सपने देखने लगा और कल कैसे उसको बदन को जयादा से जयादा नीहारुन्गा ये सोचता हुआ कब सो गया मुझे पता हाय नही लगा.

सुबह सूरज की पहली कीरन के साथ जब मेरी नींद खुली तों देखा एक तरफ भाई अभी भी लुढ़का हुआ है और भाभी शायद पहले उठ कर जा चूकी थी मैं भी जल्दी से नीचे पंहुचा तों देखा की भाभी बाथरूम से के हैंडपंप पर अपने हाथ पैर धो रही थी. मुझे देखते हाय बोली "चल जल्दी से तयार हो जा मैं खाना बाना लेती हु फीर जल्दी से नदी पर नीकल जायेंगे, तेरे भाई को भी आज शहर जाना है बीज. लाने, मैं उसको भी उठा देती हु". थोडी देर में जब मैं वापस आया तों देखा की भाई भी उठ चुक्का था और वो बाथरूम जाने की तैयारी में था. मैं भी अपने काम में लग गया और सरे कप्डो के गाठेर बाना के तैयार कर दीया. थोडी देर में हम सब लोग तैयार हो गए. घर को ताला लगाने के बाद भाई बस पकड्ने के लीये चल दीया और हम दोनो नदी की ओर्र. मैंने भाभी से पूछा की भाई कब तक आयेनेगे तों वो बोली "क्या पता कब आएगा मुझे तों बोला है की कल जाऊंगा पर कोई भरोसा है तेरे भाई का, चार दीन भी लगा देगा, ". हम लोग नदी पर पहुच गए और फीर अपने काम में लग गए, कप्डो की सफ़ाई के बाद मैंने उन्ह एक तरफ सूखने के लीये डाल दीया और फीर हम दोनो ने नहाने की तैयारी शुरू कर दी. भाभी ने भी अपनी साड़ी उतर के पहले उसको साफ कीया फीर हर बार की तरह अपने पेटीकोट को ऊपर चढा के अपनी ब्लौस नीकाली फीर उसको साफ कीया और फीर अपने बदन को रगड रगड के नहाने लगी. मैं भी बगल में बैठा उसको नीहरते हुए नहाता रहा बेख्याली में एक दो बार तों मेरी लुंगी भी मेरे बदन पर से हट गई थी पर अब तों ये बहुत बार हो चुक्का था इसलीये मैंने इस पर कोई ध्यान नही दीया, हर बार की तरह भाभी ने भी अपने हाथो को पेटीकोट के अंदर डाल के खूब रगड रगड के नहाना चालू रखा. थोडी देर बाद मैं नदी में उतर गया भाभी ने भी नदी में उतर के एक दो दुब्कीया लागे और फीर हम दोनो बहार गए. मैंने अपने कपडे change कर लीये और पज्मा और कुरता पहन लीया. भाभी ने भी पहले अपने बदन को तोवेल से सुखाया फीर अपने पेटीकोट के इज़र्बंद को जिसको की वो छाती पर बाँध के रखती थी पर से खोल लीया और अपने दांतों से पेटीकोट को पाकर लीया, ये उसका हमेशा का काम था, मैं उसको पठार पर बैठ के एक तक देखे जा रहा था. इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गए थे अब सुने ब्लौस को पहन ने के लीये पहले उसने अपना बाय हाथ उसमे घुसाया फीर जैसे हाय वो अपना दाहिना हाथ ब्लौस में घुसाने जा रही थी की पता नही क्या हुआ उसके दांतों से उसकी पेटीकोट छुट गई और सीधे सरसराते हुए नीचे गीर गई. और उसका पुरा का पुरा नंगा बदन एक पल के लीये मेरी आँखों के सामने दीखने लगा. उसके बडी बडी चुचीया जीन्हे मैंने अब तक कप्डो के ऊपर से ही देखा था और उसके भरी बहरी चुतड और उसकी मोटी मोटी जंघे और झट के बाल सब एक पल के लीये मेरी आँखों के सामने नंगे हो गए. पेटीकोट के नीचे गीरते ही उसके साथ ही भाभी भी हाय करते हुए तेजी के साथ नीचे बैठ गई. मैं आंखे फाड फाड के देखते हुए गूंगे की तरह वही पर खडा रह गया. भाभी नीचे बैठ कर अपने पेटीकोट को फीर से समेटती हुई बोली " धयान ही नही रहा मैं तुझे कुछ बोलना चाहती थी और ये पेटीकोट दांतों से छुट गया" मैं कुछ नही बोला. भाभी फीर से खडी हो गई और अपने ब्लौस को पहनने लगी. फीर उसने अपने पेटीकोट को नीचे कीया और बाँध लीया. फीर साड़ी पहन कर वो वही बैठ के अपने भीगे पेटीकोट को साफ कर के तर्य्यर हो गई. फीर हम दोनो खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद हम वही पेर की छाव में बैठ कर आराम करने लगे. जगह सून सान थी ठण्डी हवा बह रही थी. मैं पेर के नीचे लेते हुए भाभी की तरफ घुमा तों वो भी मेरी तरफ घुमी. इस व्क्त उसके चहरे पर एक हलकी सी मुस्कुराहट पसरी हुई थी. मैंने पूछा "भाभी क्यों हँस रही हो", तों वो बोली "मैं कहा हँस रही हु"

"झूठ मत बोलो तुम मुस्कुरा रही हो"

"क्या करु, अब हँसने पर भी कोई रोक है क्या"

"नही मैं तों ऐसे ही पूछ रहा था, नही बताना है तों मत बताओ"

"अरे इतनी अच्छी ठण्डी हवा बह रही हाय चहरे पर तों मुस्कान आएगी ही"

"हां आज गरम इस्त्री की साड़ी गरमी जो नीकल जायेगी,"

"क्या मतलब इस्र्त्री की गरमी कैसे नीकल जायेगी याहा पर याहा तों कही इस्त्री नही है"

"अरे माँ तुम भी तों इस्त्री हो, मेरा मतलब इस्त्री मने औरत से था"

"चल हट बदमाश, बाडा शैतान हो गया है मुझे क्या पता था की तू इस्त्री माने औरत की बात कर रहा है"

"चलो अब पता चल गया ना"

"हां, चल गया, पर सच में याहा पेड की छाव में कीतना अच्छा लग रहा है, ठण्डी ठण्डी हवा चल रही है, और आज तों मैंने पुरा हवा खाया है" भाभी बोली

"पुरा हवा खाया है, वो कैसे"

"मैं पुरी नंगी जो हो गई थी, फीर बोली है, तुझे मुझे ऐसे नही देखना चाहीये था,

"क्यों नही देखना चाहीये था"

"अरे बेवक़ूफ़, इतना भी नही समझता एक भाभी को उसके देवर के सामने नंगा नही होना चहीये था"

"कहा नंगी हुई थी तुम बस एक second के लीये तों तुम्हारा पेटीकोट नीचे गीर गया था" (हालांकी वही एक second मुझे एक घंटे के बराबर लग रहा था).

"हां फीर भी मुझे नंगा नही होना चाहीये था, कोई जानेगा तों क्या कहेगा की मैं अपने देव्र के सामने नंगी हो गीई "

"कौन जानेगा, याहा पर तों कोई था भी नही तू बेकार में क्यों परेशां हो रही है"

"अरे नही फीर भी कोई जान गया तों", फीर कुछ सोचती हुई बोली, अगर कोई नही जानेगा तों क्या तू मुझे नंगा देखेगा क्या", मैं और भाभी दोनो एक दुसरे के आमने सामने एक सूखे चादर पर सून-सान जगह पर पेड के नीचे एक दुसरे की ओरे मुँह कर के लेटे हुए थे और भाभी की साड़ी उसके छाती पर से ढलक गई थी. भाभी के मुँह से ये बात सून के मैं खामोश रह गया और मेरी सांसे तेज चलने लगी. भाभी ने मेरी ओरे देखते हुए पुच्चा "क्या हुआ," मैंने कोई जवाब नही दीया और हलके से मुस्कुराते हुए उसकी छातीयों की तरफ देखने लगा जो उसकी तेज चलती सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे. वो मेरी तरफ देखते हुए बोली "क्या हुआ मेरी बात का जवाब दे ना, अगर कोई जानेगा नही तों क्या तू मुझे नंगा देख लेगा" इस पर मेरे मुँह से कुछ नही नीकला और मैंने अपना सीर नीचे कर लीया, भाभी ने मेरी ठोदी पाकर के ऊपर उठाते हुए मेरे आँखों में झांकते हुए पुच्चा, "क्या हुआ रे, बोल ना क्या तू मुझे नंगा देख, लेगा जैसे तुने आज देखा है," मैंने कहा "हाय, भाभी, मैं क्या बोलू" मेरा तों गला सुख रहा था, भाभी ने मेरे हाथ को अपने हाथो में ले लीया और कहा "इसका मतलब तू मुझे नंगा नही देख सकता, है ना" मेरे मुँह से नीकल गया

"हाय भाभी, छोरो ना," मैं हकलाते हुए बोला "नही भाभी ऐसा नही है"

"तों फीर क्या है, तू अपनी भाभी को नंगा देख लेगा क्या"

"ही, मैं क्या कर सकता था, वो तों तुम्हारा पेटीकोट नीचे गीर गया तभ मुझे नंगा दीख गया नही तों मैं कैसे देख पता,"

"वो तों मैं समझ गई, पर उस व्क्त तुझे देख के मुझे ऐसा लगा जैसे की तू मुझे घूर रहा हाय……… ……..इसीलीये पूछा"

"हाय, भाभी ऐसा नही है, मैंने तुम्हे बताया ना, तुम्हे बस ऐसा लगा होगा,"

"इसका मतलब तुझे अच्चा नही लगा था ना"

"है, भाभी छोरो", मैं हाथ छुरते हुए अपने चहरे को छुपाते हुए बोला"

भाभी ने मेरा हाथ नही छोरा और बोली "स्च स्च बोल शरमाता क्यों है"

मेरे मुँह से नीकल गया "हां अच्चा लगा था", इस पर भाभी ने मेरे हाथ को पाकर के सीधे अपनी छाती पर रख दीया, और बोली "फीर से देखेगा भाभी को नंगा, बोल देखेगा,"

मेरी मुँह से आवाज नही नीकल पा रहा था. मैं बडी मुस्कील से अपने अपने हाथो को उसके नुकीले गुदज छातीयों पर स्थीर रख रहा था. ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता,

मेरे मुँह से एक कराहने की सी आवाज नीकली. भाभी ने मेरी ठोदी पाकर कर फीर से मेरे मुँह को ऊपर उठाया और बोली "क्या हुआ बोल ना शरमाता क्यों है, जो बोलना है बोल". मैं कुछ नही बोला थोडी देर तक उसके चचीयों पर ब्लौस के उपार से ही हल्का सा मैंने हाथ फेरा. फीर मैंने हाथ कीच लीया. भाभी कुछ नही बोली गौर से मुझे देखती रही फीर पता नही क्या सोच कर वो बोली "ठीक है मैं सोती हु याहा पर बडी अच्छी हवा चल रही है, तू कप्डो को देखते रहना और जो सुख जाये उन्हें उठा लेना, ठीक है" और फीर मुँह घुमा कर एक तरफ सो गई. मैं भी चुप चाप वही आंख खोलें लेटा रहा, भाभी की चुचीयाँ धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रही थी. उसने अपना एक हाथ मोड कर अपने आँखों पर रखा हुआ था और दुसरा हाथ अपने बगल में रख कर सो रही थी. मैं चुप चाप उसे सोता हुआ देखता रहा, थोडी देर में उसकी उठती गीर्ती चचीयों का जादू मेरे ऊपर चल गया और मेरा लंड खडा होने लगा. मेरा दील कर रहा था की काश मैं फीर से उन चुचीयों को एक बार छू लू. मैंने अपने आप को गालीया भी नीकाली, क्या उल्लू का पठा हु मैं भी जो चीज़ आराम से छूने को मील रही थी तों उसे छूने की बजाये मैं हाथ हटा लीया.

पर अब क्या हो सकता था. मैं चुप चाप वैसे ही बैठा रहा. कुछ सोच भी नही पा रहा था. फीर मैंने सोचा की जब उस व्क्त भाभी ने खुद मेरा हाथ अपनी चुचीयों पर रखा दीया था तों फीर अगर मैं खुद अपने मन से राखु तों शायद डंतेगी नही, और फीर अगर डंतेगी तों बोल दूंगा तुम्ही ने तों मेरा हाथ उस व्क्त पकर कर रखा था, तों अब मैंने अपने आप से रख दीया, सोचा शायद तुम बुरा नही मानोगी. यही सब सोच कर मैंने अपने हाथो को धीरे से उसकी चुचीयों पर ले जा के रख दीया, और हलके हलके सहलाने लगा. मुझे गज़ब का मजा रहा था मैंने हलके से उसकी साड़ी को पुरी तरह से उसके ब्लौस पर से हटा दीया और फीर उसकी चुचीयों को दबाया. ऊओह् इतना गज़ब का मजा आया की बता नही सकता, एकदम गुदाज़ और सख्त चुचीयां थी भाभी की मेंरा लंड खडा हो गया, और मैंने अपने एक हाथ को चुचीयों पर रखे हुए दुसरे हाथ से अपने लंड को मसलने लगा. जैसे जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी वैसे वैसे मेरे हाथ दोनो जगहों पर तेजी के साथ चल रहे थे. मुझे लगता है की मैंने भाभी की चुचीयों को कुछ जायद ही जोर से दबा दीया था, शायद इसीलीये भाभी की आंख खुल गई. और वो एकदम से हर्बरा कर उठ गई और अपने अचल को सँभालते हुए अपनी चुचीयों को ढक लीया और फीर, मेरी तरफ देखती हुई बोली, "है, क्या कर रहा था तू, है मेरी तों आंख लग गई थी" मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चहरे का रंग उड गया था. भाभी ने मुझे गौर से एक पल के लीये देखा और सारा माजरा समझ गई और फीर अपने चहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट बीखेरते हुए बोली "ही, देखो तों सही क्या सही काम कर रहा था ये ल्डका, मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था"………….
Contnd……

No comments:

Post a Comment

कामुक कहानियाँ डॉट कॉम

राज शर्मा की कहानियाँ पसंद करने वालों को राज शर्मा का नमस्कार दोस्तों कामुककहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम में आपका स्वागत है। मेरी कोशिश है कि इस साइट के माध्यम से आप इन कहानियों का भरपूर मज़ा ले पायेंगे।
लेकिन दोस्तों आप कहानियाँ तो पढ़ते हैं और पसंद भी करते है इसके साथ अगर आप अपना एक कमेन्ट भी दे दें
तो आपका कया घट जाएगा इसलिए आपसे गुजारिश है एक कमेन्ट कहानी के बारे में जरूर दे

460*160

460*60

tex ade

हिन्दी मैं मस्त कहानियाँ Headline Animator

big title

erotic_art_and_fentency Headline Animator

big title