Sunday, April 6, 2008

ट्रेन में चोदना सीखा- दूसरा अध्याय

ट्रेन में चोदना सीखा- दूसरा अध्याय


ट्रेन के डिब्बे में माहॉल शांत होता जा रहा था क्योंकि रात काफ़ी हो चली थी और अधिकतर लोग सोने लगे था या सोने की तैयारी कर रहे थे। मैं भी सोने की कोशिश करने लगा पर नींद थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही उधर लॅंड कुछ देर पहले के सीन को याद कर के टनटनाता जा रहा था। फिर धीरे धीरे मेरी भी पलकें भारी होने लगी। जैसे ही नींद का झोंका आया तभी लगा कि किसी ने मुझे उठा दिया है। आँखे खोली तो आंटी सामने खड़ी थी और फिर वो बाथरूम की तरफ चली गयी। मैं उसे देखता ही रहा, समझ मैं नही आ रहा था कि क्या करना चाहिए। तभी उसने पलट कर देखा और मुझे पीछे आने का इशारा किया। मैं उसके पीछे पीछे टाय्लेट में जा घुसा। शुक्र था किसी ने देखा नहीं। उसने मेरे अंदर घुसते ही दरवाज़ा बंद कर दिया और झट से मेरा लंड पकड़ लिया। लंड तो पहले से टनटनाया हुआ था। उसने मेरी पैंट खोल कर नीचे खिसका दिया और गीला अंडरवेयर भी नीचे कर दिया। फिर उसे कसके पकड़ के उपर नीचे करने लगी पर मुझे कभी कभी दर्द भी होता क्योंकि लौड्‍ा तो खड़ा होने के बाद बिल्कुल पेट से जा लगता था। और किसी ने उसकी इस तरह मालिश नहीं की थी। आंटी ने अब अपना चेहरा मेरे लंड पर झुकाया तो मैं बोला कि ये गंदा हो रहा है मैने अभी इससे नही धोया है।
वो कहने लगी –अरे इसको गंदा नहीं कहते। इसमें ही तो सारा मज़ा है। कितनी प्यारी गंध आ रही है इसमें से। ऐसा कहते हुए उसने मेरे लंड का टोपा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं बड़ी तेज़ी से झड़ने की ओर बढ़ने लगा।
मैने कहा- आंटी रुक जाओ नहीं तो मेरा माल फिर से निकल जाएगा।
आंटी ने लोड्‍ा चूसने की रफ़्तार तो कम कर दी पर चूसना जारी रखा। वो इस तरह चूस रही थी कि मुझे लगा कि मैं ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाऊंगा। जब मेरा स्खलन नज़दीक आ गया तो मैंने चाहा कि उसके मुँह से लंड निकाल लूं पर उसने दाँत से हल्के से काट कर इशारा किया कि ऐसे ही रहो। इससे पहले कि मैं कहता कि निकलने वाला है उसे पहले ही लंड ने रस की बौछार करनी शुरू कर दी।
आंटी तो एक नम्बर की लंड चूसक्कर थी। एक भी बूँद नीचे नहीं गिरने दी।
मैं लंबी लंबी साँसें ले रहा था और उसने अपना मुँह खोल कर मेरा रस मुझे दिखाया फिर उसने गले के नीचे उतार लिया। कैसा टेस्ट था- मैंने कहा। कहने लगी बहुत अच्छा तुम भी चाखोगे क्या।
अपना नहीं पर आपका। मैंने कह दिया कि जो होगा देख जाएगा पर अगर इसने चूत दिखा दी तो जिंदगी की पहली चूत के दर्शन हो जाएँगे।
फिर उसने मेरे लंड को सहलाते हुए कहा कि यहाँ जगह नहीं है और वक़्त भी। फिर कभी देखेंगे, मन वहाँ से जाने का बिल्कुल ही नहीं हो रहा था। लंड ने इस बार खड़ा होने में थोड़ी देर लगाई पर फिर पहले की तरह टनटना गया।

मेरे उछलते हुए लंड को देख कर आंटी ने कहा कि उसे कम उमर के लड़के इसीलये तो ज़्यादा पसंद हैं क्योंकि कई बार झड़ने के बाद भी उनका लंड ज़रा सा हाथ लगते ही खड़ा हो जाता है।
फिर वो झुक कर खड़ी हो गयी और कहा कि पीछे से डालो।
मैंने पीछे से लंड सटा कर धक्का मारा तो उसके गांड के छेद से रगड़ ख़ाता हुआ चूत को रगड़ता हुआ निकल गया। वो समझ गयी कि लाड़ला बहुत ही अनारी है।
उसने हाथ नीचे से लगा कर अपने चूत के छेद पर भिड़ाया और कहने वाली थी कि अब डालो पर सुनने की फुर्सत किसे थी।ये डर था कि कहीं चूत में घुसने से पहले ही मामला खराब न हो जाए।
लेकिन जैसे ही आंटी ने अपने छेद पर रखा । लौड्‍ा सरसराता हुआ चूत को चीरता हुआ जड़ तक समा गया।
इतना अनुभवी होने के बावजूद उसके मुँह से कराह निकल गयी। मार डाला। धीरे डाल।। फाड़ेगा क्या।
मैं अपनी धुन में धक्के पर धक्के लगाया जा रहा था। अब मेरे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था कि मैं इतनी उमर की औरत को इतनी अच्छी तरह चुदाई कर रहा हूं। मैं और कस कस कर धक्के मार रहा था। तभी आंटी का शरीर अकड़ने लगा। पूछा कि क्या हुआ आंटी तो कहने लगी गयी … गयी … आज तो मधु ..... समझ में नहीं आ रहा था कि अब ये मधु कौन है और कहाँ गयी।
मेरा ध्यान चोदने पर नहीं था पर मैं कस कस कर धक्के पर धक्के लगाये जा रहा था। तभी आंटी के शरीर ने झटका लिया और वो शांत पड़ गयी। चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था जिसे पूरी चूत बुरी तरह फिसल रही थी। तभी मैंने ज़ोर ज़ोर से झटके मार मार के अपना ढेर सारा रस भी उसकी चूत में डाल दिया। हम दोनो हाँफ रहे थे।
जैसे तैसे साँसों पर काबू पाया और फिर मुँह धोते हुए कहने लगी कि अब तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है।
मेरी भी टाँगों में सिहरन हो रही थी।
फिर ये कहती हुई कि थोड़ी देर बाद आना वो दरवाज़ा खोल कर निकल गयी।
2 मिनिट बाद मैं निकला। आस पास सब सोए पड़े थे । शुक्र मनाता हुआ अपनी सीट पर जा कर लेट गया।

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