1अगले दिन आईं मेरी ननद लाली, गुड्डी और जीत।पतली शिफान की गुलाबी साडी और मैचिंग ब्लाउज में उनका भरा बदन और गदराया लग रह। खूब देह से चिपकी...ब्लाउज से छलकते भरे भरे जोबन...।बांहों में भर के उन्हे चिढाती मैं बोली, बीबी जी....लगता है रात भर ननदोई जी ने चढाई की जो सुबह देर से उठीं और आने में..।बात काट के मुझे भी वो कस के भींच के मेरे कान में बोलीं,अरे तो क्या मेरे भाई ने छोडा होगा मेरी इस मस्त भाभी को।उन्हे छोड के एक बार मैने फिर उपर से निहारा....वास्तब में असली मजा औरतों को इस उमर में ही आता है...गोरे चिकने गाल, कटाव खूब भरे भरे खेले खाये उभार, भरे हुये कुल्हे...और उपर से कामदार साडी...और लाल चोली कट ब्लाउज,।सच में मैं गारंटी के साथ कहती हूं नजर न लगे आपको....आज जिस जिस मर्द ने देखा होगा ना आपको....सबका खडा हो गया होगा....इन्क्ल्युडिंग आपके गली के गधों के...वैसे ननद रानी मेरे पास होता ना तो मैं तो यहीं अभी ..।वो सच में शरमा सी गयीं लेकिन मैं छोडने वाली नहीं थी...और मेरे ख्याल से आपके भाई का भी आपको देख के.....मैने फिर छेडा। पर वो भी..।अरे तेरे ननदोई का तो एक दम खडा है और वो आज आये भी हैं इसलिये की सलहज कॊ अपनी पिचकारी का दम दिखायेंगें।वो तो मैं देखूंगी ही छोडूंगी थोडी आखिर छोटी सलहज हूं और होली का मौका है ...और फिर मैने गूड्डी की ओर देखा....।सफेद शर्ट और स्ट्राईप्ड स्कर्ट में वो भी गजब की लग रही थी...हल्का सा मेक अप....मैने उसे भी बांहों में ले के कस के भींच लिया पर तब तक मेरे नन्दोई जीत की आवाज आई,अरे भाभी मेरा नम्बर कब लगेगा....अपकी ननदें तो बडी लकी हैं...।और गुड्डी को छोड के मैने अपने बेताब नंदोई को बांहों में बांध लिया।भाभी मेरा कुछ....वो बिचारे परेशान ...और निगाहें साली के मस्त उभारों पे गडी...।देखूंगी....हो सकता है...मैं उनकॊ और परेशान कर रही थी...लेकिन ननदोई जी मेरी एक शर्त है..।अरे आपकी शर्त मंजूर हैं बस एक घंटे के लिये अकेले में ये साल्ली मिल जाय ना..।एक क्या पूरे तीन घंटे का सो करिये....लेकिन आज जीजा साले मिल के इस साल्ली की ऐसी सैंड विच बनाइये की चल ना पाये....आगे पीछे दोनो ओर से...मैने और आग लगाई।एक्दम ...वो बोले और कस के अपना ८ इंच का खूंटा मेरी जांघों के बीच में..।मैं जो खास डबल भांग वाली गुझिया बना के लाई थी वो ठंडाई के साथ ले आई।मेरी बडी ननद लाली को पूरा शक था...।देखॊ मैं भांग वांग....कहीं इसमें कुछ पडा तो नहीं हैं....वो चिहुंक के बोली।अरे नहीं आप को तो मालूम है मैं कूछ खुद नहीं ...और उन्होने एक गुझिया लेके खा ली।बेचारी उन्होने अपने ‘सीधे साधे भाई’ पे यकीन कर लिया।( मैं जानती थी इसलिये मैने पहले से उनसे बोल के रखा था....और बीबी के लिये आदमी थोडा बहोत तो झूठ बोल ही लेता है और भांग सिर्फ गुझिया में नहीं ठंडाई में भी पडी थी वो भी स्पेशल)ननद रानी आपने मेरे बात पे यकीन नहीं किया ना इसलिये एक मेरे हाथ से और खाइये और मैने जबरन एक गुझिया उनके मुंह में ठूंस दी।अरे ननदोई जी...बेचारे जीत लाली के सामने उनकी हिम्मत नहीं पड रही...साली ऐसे बैठी है, डालिये ना उसके मुंह में.....और फिर अपने हाथ से जीत ने गुड्डी को एक भांग भरी गुझिया खिला दी।फिर ठंडाई....थोडी देर में कस के सुरुर आने लगा।जीत गुड्डी को खुल के नान वेज जोक सुना रहे थे।ननद रानी, वो जॊ दूबे भाभी हैं ना आप को बहोत याद कर रही थीं, कह रही थीं की आप आयें तो मिलने के लिये मैं उन्हे बता दूं। तो मैने बोल दिया की नहीं हमीं दोनो आ के आप से मिल लेंगीं....या तो आप कहिये तो उन्हे बुला ही लूं।दूबे भाभी ....३४-३५ के दरमयान उमर, दीर्घ स्तना...३८ डी डी, खूब खुल के मजाक करने वाली, बडे नितंब...कन्या प्रेमी....और साथ में मर्द मार भी...कोई भी चीज शायद ही उनसे बची हो, लेकिन गाली गाने में खुले मजाक में...और`खास तौर से ननदों नन्दोईयों से...।नहीं नहीं तुमने ठीक सोचा....हमीं लोग चल के मिल आयेंगें अच्छा थोडी लगेगा...आखिर उमर में बडी हैं.....मेरा भी बडा मन कर रहा था ...मेरी शादी में उन्होने वो जलवे दिखाये थे.....लाली बोलीं।जब कल रात मैने सोचा तो मैं उन के मन की बात समझ गई थी.असल में खतरा उन्हे जीत से गुड्डी को नहीं था बल्की गुड्डी से जीत को था। वो ये समझ तो अच्छी तरह गयीं थीं की...लेकिन डर ये रही थीं की कहीं साली जीजा का कोई सीरियस चक्कर चल गया तो वो कहीं किनारे ना हो जायं....मध्यम उमर में कम उमर की लड्कियों से डर होना स्वाभाविक है और यही तीर मैने दूबे भाभी के लिये भी छोडा। वो जानती थी की अगर दूबे भाभी आ गयीं तो अपने नन्दोइ जीत को तो छोडेंगी नहीं और फिर होली का मौका....जीत भी दिल फेंक तो हैं हीं....इसलिये वो चट से चलने को तैयार हो जायेंगी और यहां उनका सीधा साधा भाई तो है ही..।बस थोडी देर में आते हैं हम लोग दूबे भाभी के यहां से, मैं बोली।बस पास में है १० मिनट....में आ ते हैं लाली बोलीं।दरवाजे के पास से निकलते हुये मैने मुड के देखा ....गुड्डी इनके और नन्दोइ जी के बीच में...जीत ने मेरी ओर देखा तो मैने अंगूठे और उंगली से चुदाई का इंटरनएशन्ल सिम्बल बना के लाइन क्लियर का इशारा दे दिया।ननद ने खेली होली २ जब हम लोग दूबे भाभी के यहां पहुंचे तो वो खुशी से फूली नहीं समाई। बस उन्होने मेरी बडी ननद को बांहों में भर लिया।अरे आओ ननद रानी....कितने दिन हुये तुमसे मिले...तुम्हारी शादी के बाद तो बस पहली बार मिल रही हो..।कस के उनके दीर्घ उरोज मेरी ननद लाली के गदराये जोबन् दबा रहे थे। लेकिन जब दूबे भाभी ने मुझे आंख मारी तो मैं समझ गयी की प्लान पक्का..।अरे भाभी हमारे नन्दोई इनको एक मिनट के लिये छोडते ही नहीं होगे इन बिचारी की क्या गलती - मैं बोली।अरे तो हमारे नन्दोइ जी की भी क्या गलती...इतनी गद्दर जवानी है हमारी ननद की...देख दबा दबा के कैसे नारंगी से काबुली अनार बना दिया है। दूबे भाभी अब सीधे आंचल के उपर से उनके उभार दबाते बोलीं।लेकिन चल जरा पानी वानी लाती हूं...व्ररना ननद रानी क्या कहेंगी की होली में आई और भाभी ने पानी भी नहीं पूछा।जैसे ही दूबे भाभी पानी ले के आयीं पता नहीं कैसे उन्हे पता चल गया...नहीं भाभी नहीं रंग नहीं...बडी महंगी साडी और इस पे रंग छूटेगा भी नहीं...झट से लाली पीछे हट गईं।सही बात है...और फिर रंग ननद से खेलना है उनकी साडी से थोडी...और मैने झट से आंचल पकड के खींचना शुरु कर दिया।और दूबे भाभी भी ग्लास एक ओर रख के पेटीकोट में फंसी साडी उन्होने कमर पे खोलनी शुरु कर दी...जैसे ही वो मेरा हाथ पकड्तीं तो दूबे भाभी...कमर पर से और झुक के वो दूबे भाभी को रोकतीं तो मैं चक्कर ले के....थोडी देर में ही पूरी की पूरी साडी मेरे हाथ में....और उस का गोला बना के उपर दुछत्ती पे...।सिर्फ साया ब्लाउज में मेरी ननद बेचारी खडी...और मेरी निगाहें....लो कट लाल ब्लाउज से छ्लकते दोनों उभारों पे..।पास आगंदके निपल के बस थोडा उपर ह्ल्के से मैने दबाते हुये शरारत से उनकी आंखों में आंखे डाल के देखा और कहा, क्यों दीदी...ग.ये ब्लाउज भी तो मैचिंग है....उतना ही महंगा होगा साडी के ही पीस का लगता है।मेरा मतलब समझ के घबडा के वो बोलीं....नहीं नहीं इसे नहीं...इसे रहने दो..।जब तक वो रोक पातीं दूभे भाभी ने पीछे से उनके दोनो हाथ पकड के मोड दिये।अरे क्यों शरमा रही हैं अंदर ब्रा वा नहीं पहनी हैं क्या...मेरी उंगली अब सीधे निपल तक पहुंच गई थी, उसे फ्लिक करते हुये मैने पूछा।वो कस मसा रही थीं हाथ छुडाने की कोशिश कर रही थीं ...पर दूबे भाभी की पकड।मैने आराम से धीरे धीरे उनके एक दो ...ब्लाउज के सारे बटन खोल डाले और बटन खोलने के साथ अब खुल के मेरी उंगलियां उनके उभारों को रगड रही थीं, छेड रही थीं। ब्लाउज निकाल के उनके हाथ तक ...।उधर दूबे भाभी ने उनके हाथ छोडॆ और इधर मैने ब्लाउज निकाल के ...वो भी सीधे दुछतॊ पे साडी के पास....।तेरी साडी भी तो कम अच्छी नहीं हैं...अब लाली का हाथ मेरी साडी पे...।मुझॆ लगा की दूबे भाभी मेरा साथ देंगी पर वो अंदर चली गयीं थी...और गुथम गुथा के बाद थोडी देर में मेरी हालत भी उन्ही के जैसी और जब दूबे भाभी लौटीं तो...।कुछ ही देर में हम तीनों ब्रा पेटीकोट में थे।लाली..टेबल पे रखे ग्लास को झुक के देख रही थी...जिस में रंग के डर से...।वो ग्लास खाली था। तब तक पीछे से मैने और दूबे भाभी ने उन्हे एक साथ दबोच लिया। दूबे भाभी ने गाढे लाल रंग की टुयूब मुझे पकडा दी थी और उनके दोनों हाथों मे तवे की गाढी कालिख....मेरे दोनों हाथ सीधे उनकी ब्रा में....बहोत दिनों के बाद होली में किसी ननद के गदराये जोबन मेरी मुटठी में थे...पहले तो मैने कस के कच कचा के दोनों हाथों का गाढा लाल रंग उनकी चूंचियों पे कस कस के रगडा, लगाया। एक द्म्म पक्का रंग...और उधर दूबे भाभी ने मेरी ननद के गोरे गाल काला करने में कोई कसर नहीं छोडी। वो छट्पटा रहीं थीं, गुत्थ्मगुथा कर रही थीं पर मैं और दूबे भाभी दोनो एक साथ पीछे से...मेरे हाथ ...उनके उरोजों के सीधे स्पर्श का अब मजा ले रहे थे ...खूब मांसल और कडे....निपल भी बडे बडॆ..।' ननद रानी मैं आपसे कहती थी ना अदला बदली कर लो ...अरे होली में जरा अपनी भाभी के भी सैयां का मजा ले के देखो....चलिये अभी तो भाभी से ही काम चलाइये...मैं बताती हूं की कैसे आपके भैया...जोबन मर्दन करते हैं....धीरे से मैने दोनो चूंचीयां नीचेसे कप कीं और पहले तो हल्के हल्के दबाया..और फिर थोडा सा दबाव बढा के अंगुठे और तर्जनी के बीच कस के निपल को दबा दिया...।उइइइ....उनके मुंह से चीख निकल पडी।अरे ये तो शुस्रुआत है और दूसरे निपल को खूब कस के खींच के जोर से पिंच किया। जिस तरह से ननद रानी के निपल खडे थे, ये साफ था की उनको भी जबर्दस्त मजा आ रहा है.फिर तो मैने खूब कस कस के उनके उभार दबाने शुरु कर दिये..।ऐसे दबाते मसलते हैं मेरे सैयां मैं उनके कान में बोली। कई बार तो सिर्फ छातियां मसल के झाड देते हैं...चलिये अगर आपको डलवाने में उनसे शरम लग रही हो तो बस एक बार दबवा के देख लिजीये..आपके भैया आपका कहना थोडे ही टालेंगें।मैने उन्हे कस के छेडा तब तक दूबे भाभी बोलीं, अरे तू अकेले ही इसके दोनो अनारों का मजा लेती रहेगी जरा मुझे भी तो स्वाद लेने दे..।एक्दम भाभी और मेरा बायां हाथ अब उनकी कमर को कस के पकड के चिकने गोरे पेट को लाल कर रहा था और दूसरा उभार अब दूबे भाभी के कब्जे मे था और उनकी रगडाई तो बडे बडे मर्दों को मात करती थी।चल देख ...कौन ज्यादा कस के दबाता है...इस ननद छिनाल के अनार...अरे बचपन से दबवा रही है जब टिकोरे थे...और आज मुझ से शरमा रही है।एक दम भाभी और मैने भी कस के दबाना मसलना शुरु कर दिया।पांच मिनट में ही जिस तरह से हम दोनों ने रगडाई मसलाइ की....उनके मुंह से चीख सिसकियां....निकलने लगीं।इसके साथ ही दूबे भाभी ने ढेर सारा सूखा रंग हरा, नीला बैंगनी उनकी ब्रा में डाल दिया, जिससे जैसे ही गीला रंग, पानी पडे ये सारा उनकी चूंचियों को रंग दे.और वो सूखा रंग आगे से मैं उनके पेटीकोट के अंदर भी घुसेड रही थी।
दूबे भाभी के दूसरे हाथ ने पीछे से उनका पेटीकोट उठा के पिछ्वाडा भी रंगना शुरु कर दिया था और फिर एक झटके में....पैंटी खींच के नीचे फेंक दी, अरे ननद रानी जरा बुल्बुल को हवा तो खिलाओ कब तक पिंजडे में बंद किये रहोगी। वो बोलीं और उनका लाली के चूतड को रगड्ना मसलना जारी था और मैने भी आगे से हाथ साये के अंदर डाल के वहां भी रंग लगाना...एक दम चिकनी मक्खन मलाइ थी...गुड्डी की तरह।तब तक वो थोडा चीखीं...और मतलब दूबे भाभी की बात से आ गया, अरे लाली...क्या बहोत दिनों से ननदोइ जी ने पीछे का बाजा नहीं बजाया है जो इतनी कसी है...' अरे भाभी...कोई बात नहीं आज हम दोनों मिल के ननद रानी की गांड मार के सारी कस्र पूरी कर देंगें। मैने इरादा साफ किया तो वो बोलीं....एक दम होली में ननद पकड में आये तो बिना उसकी गांड मारे छोड्ना तो सख्त ना इंसाफी है।और जब वो हम दोनों की गिरफ्त से छूटीं अच्छी तरह रंगी पुती तो मुझे लगा की कहीं गुस्सा ना हों...पर कुछ भंग का नशा, कूछ चूंचियों की रगडाई मसलाई....और सबसे बढ के होली का असर....उन्होने टेबल पे रखे रंग उठा के हम दोनों को रंगना शुरु कर दिया और यहां तक की देह में लगे रंग भी...हम दोनों की देह पे ...हमारी ब्रा भी उन के रंग में रंग के लाल पीली हो गई।फिर उन्हे धकेलते, पकड के हम आंगन में ले आये।दूबे भाभी का आंगन सारे मुहल्ले की औरतों में होली के लिये मशहूर था। सारी औरतें, ननद भाभीयां ....यहीं जमा होती थीं। उंची उंची दीवारे कोइ मर्द का बच्चा पर भी नहीं मार सकता था....एक छोटे तलैया से गड्ढे में भरा रंग....रंग खेलने और खाने पीने का पूरा इंतजाम....उस चहब्च्चे में सबकी डुबकी लगवाई जाती और ...मुझे याद था की १४ से ४४ तक की शायद ही कोई ऐसी मेरी मुहल्ले पडोस की ननद हो जिसकी मैने यहां होली में जम के उंगली ना की हो....कपडे तो किसी के बचते ही नहीं थे...और एक से एक गंदी गालियां....भाभी कोइ रिस्ते में ननद लगने वाली बच्ची भी क्यों ना हो उससे जब तक १०-५ गाली...और सीधे उसके भाई का नाम लगावा के ना दे देती हों....छोडती नहीं थी।आज सिर्फ हम तीन थे लेकिन इंतजाम होली से पहले होली का पूरा था।पहले तो हम दोनों ने हाथ पांव पकड के ....लाली की डोली कर के लाल रंग भरे चहबच्चे में जम के ६-७ डुबकियां लगवाईं और फिर उसी में छोड दिया।दूबे भाभी और मैं भी उस में घुस गये और फिर क्या ....थोडी देर में लाली की ब्रा मेरे हाथ में थी...और मेरी तो फ्रंट ओपेन होने के कारण एक झटके में ही खुल गई।और जब हम सब बाहर आये तो तीनों टाप लेस थे।ननद रानी के साथ होली की शुरुआत तो हो गई लेकिन मैने कुछ खिलाया पिलाया नहीं...और उन्होने वहीं रखी एक व्हिस्की की बोतल खॊली...।नहीं भाभी मैं ये नहीं ....लाली ने नखरा किया।अरे साल्ली...मुझे सब मालूम है नन्दोई जी को शौक है तो अब तक तुम्हे बिना पिलाये छोडा होगा क्या...दूबे भाभी बोली फिर अपने अंदाज में अपने दोनों टांगों के बीच इशारा करते हुये कहा...और ये नहीं तो ये शराब पिला दूंगी..सुनहरी शराब...बोल।अरे भाभी...मेरे लिये मौका अच्छा था...ननद रानी ये भी पियेंगी...अभी ये और बाद में वो। मैने छेडा।एक पेग के बाद जब दूसरे के लिये वो मना करने लगी तों दूबे भाभी बोलीं पी ले सीधे से वरना ....गांड में बोतल डाल के पूरी बोतल खाली कर दूंगी....जायेगी तो पेट में।कुछ ही देर में आधी से ज्यादा बोतल खाली थी और उसमें से भी ज्यादा लाली को हम दोनों ने जबरन , मना के पिला डाली।और थोडी देर में नशे का असर भी दिखना शुरु हो गया।जिस तरह दूबे भाभी....लाली के रंगे गद्रराये जोबनों की ओर ललचाइ निगाहों से देख रही थी...मैं समझ गयी की उनका इरादा क्या है।हम दोनों ने आंखॊं आंखों में इशारा किया और ....मैं सीधे लाली के पेटीकोट के पास...और मेरा इरादा समझ उन्होने उठने की कोशिश की लेकिन दूबे भाभी पहले से ही तैयार थीं....कस के उन्होने दोनो कंधे पकड के दबा लिये।अब मुझे कोई जल्दी नहीं थी। ह्ल्के ह्ल्के मैने पेटी कोट के नाडे पे हाथ लगाया और पूछा, क्यों ननद रानी...अब तक कौन कौन ये नाडा खोल चुका है..अच्छा चलिये पुरानी बात भूल जाइये....अबकी होली में आपकी भाभियां और हमारे देवर....आपको नाडा बांधने ही नहीं देंगे....है ना मंजूर...।देवर तो इसका मतलब जो इसके भाई लगते हैं...जान बूझ के दूबे भाभी ने कस के उनके निपल पिंच करते हुये अर्थाया...।और क्या....मेरे सारे देवर और सैंया हैं ही बहनचोद ....लेकिन उन बिचारों की क्या गलती मेरी साली छिनाल पंच भतारी ननदें हैं हीं ऐसी, कालीन गंज की रंडियों को मात करने वाली.....और अपनी ननदों का बखान करते हुए....मैने उनका नाडा खोल के पेटीकोट नीचे सरका दिया। और ढेर सारे सूखे गीले रंगो से सजी उनकी चूत ....जांघों को भींच के उन्होने छिपाने की कोशिश की पर उसके पहले मैने उसे दबोच लिया, अरे चूत रानी, आज आपने मुझे दर्सन दिया अब जल्द मेरे सैयां को भी दरसन दीजिये...और कस के रगड दिया।वो बिचारी तडप के रह गयीं। मेरे हाथ की गदोरी कस कस के चूत को रगड रही थी।कुछ मजे में कुछ छुडाने के लिये वो हाथ पैर पटक रही थीं।क्यों भाभी अगर कोई दूधारू गाय...दूध दुहाने में हाथ पैर पटके तो क्या करते हैं मैने आंख नचा के दूबे भाभी से पूछा।अरे तो उसका हाथ पैर बांध के दूहते हैं और क्या...वो बोलीं।और उसके बाद तो वहीं पडी लाली की रंग में डूबी ब्रा से ये कस के उन की मुश्के बांधीं की...वो बिचारी अपना हाथ एक इंच भी इधर उधर हिला नहीं सकती थीं। अब दूबे भाभी के दोनों हाथ खाली थे। और फिर कस क्स के दोनों चूंचिया रगडने लगीं...।दूध देने लायक तो एक दम हो गयी है ये....वो बोलीं।अरे घबराइये मत ये आई इसी लिये मायके हैं ....गाभीन होने। यहां से लौटने के ठीक ९ महीने बाद सोहर होगा इनके यहां....हां फिर ये सोचेंगी की बच्चे से मेरे सैंया को मामा कहल्वायें या बापू....है ना। मैने एक झटके में पूरी उंगली उनके चूत में पेलते हुये कहा। वो अच्छी खासी गीली थीं।अच्छा तो ननद रानी...मेरे सैयां के बारे में सोच के ही इतनी गीली हो रही है तो सोचिये जब दोनो चूंचियां पकड के वो पेलेंगें तो कित्ता मजा आयेगा है ना। मैं बोली।उनकी चूत कस के मेरी उंगली भींच रही थी। मैने दूसरे हाथ से उनकी पुत्ती कस के दबोच ली। थोडी देर अंदर बाहर करने के बाद रस से भीगी उंगली दूबे भाभी को दी तो वो ऐसे चूसने लगी जैसे शहद , फिर तो मेरे लिये रोकना बहोत मुश्किल हो गया....और मेरे नदीदे होंठों ने झट से उनके निचले होंठों को अपने कब्जे में कर लिया। वास्तव में बहोत रसीली थीं वो संतरे की फांके....कभी मैं चूसती, कभी चाटती...और फिर दोनों हाथों से दोनो पुत्तियों को फैला के जीभ अंदर पेल दी। लंबी मोटी जीभ लंड की तरह, कभी अंदर कभी बाहर...कभी गोल गोल...चारों ओर..।नहीं प्लीज छोडो ना ...मुझे ये सब ....नहीं नहीं....वो तडप रही थीं छटपटा रही थीं...।अरे क्या चीख रही है....अपने मुंह से उनका निपल निकालते हुये दूबे भाभी बोलीं....तूझे इस बात की तकलीफ है की तेरी भाभी मस्त चूत चूस रही है और तूझे कोइ चूसने को नहीं मिल रहा....बात तो तेरी सही है। बडी नाइंसाफी है चल तू मेरी चूस...और उनके मुंह पे चढ के ...वो लाख छट्पटायीं...कमर पटकीं....पर दूबे भाभी की तगडी मोटी जांघों के बीच फंस के आज तक कोई ननद बची थी जो लाली जी बचतीं। और अपनी झांटो भरी बुर कस कस के उन्होने उनके मुंह पे रगडना शुरु कर दिया...वो सर हिला के बचने की कोशिश करतीं तो उन्होने उनके बाल पकड के एक दो बार जो जोर से खींचे...तो उन्होने सर हिलाना बंद कर दिया।ये देख के मैं और जोश से भर गई और कस कस के चूसने लगी....एक दो बार मैं लाली को झडने के कगार पे ले गयी फिर रुक गई, पर दूबे भाभी ने आंख के इशारे से कहा चालू रह...फिर तो मैं कभी मेरी जीभ उपर नीचे कस क्स के लप लप चाटती...कभी दोनों होंठ...पूरे जोश से चूसते...और अब जब वो झडने लगी तो बजाय रुकने के मैं और जोर से चूसने लगी। वो चूतड पटक रहीं थीं कमर एक एक फीट जमीन से उठा रहीं थी....हाथ तो बेचारी के बंधे थे और मुंह पे दूभे भाभी चढी हुई थीं। जब उनका झडना थोडा कम हुआ तो मैने कस के कच कचा के उनकी क्लिट दोनों होंठ के बीच हल्के से काट ली और क्लिट चूसती रही। उधर दूबे भाभी भी उनके उत्तेजित निपल को मरोड रही थीं, पिंच कर रही थीं....लाली थोडी देर में दुबार झडने लगी। कुछ देर बाद तो हालत ये हो गयी थी कि उनका एक बार का झडना रुकता नहीं था और दूसरी बार का झडना चालू हो जाता। ४-५ बार के बाद तो वो लथपथ हो गयीं ....एक दम शिथिल तब भी एक बार और उन्हे झाड के ही मैने छोडा। जब मैने मुंह हटाया तो जैसे हनींमून से लगातार चुद के लौट के आई दुल्हन की चूत होती है वैसी ही उनकी भी थी...खूब रगडी....लाल लाल मेरे तो मुंह में पानी भर आया। मैं सोचने लगी की काश मैं वो सुपर डिल्डॊ ले आई होती १० इंच वाला...ले तो आई थी मैं डिल्डॊ भी और ढेर सारी चीजें....बट प्लग, एनल बीड्स....लेकिन यहां नहीं था...कमर में बांध के स्ट्रैप आन डिल्डो.....हचक हचक के चोदती....पूरे १० इंच तक पेल के...और इस हालत में वो ननद बेचारी कुछ कर भी नहीं पाती।और बेचारी क्यों....इसी के चक्कर में तो बेचारे मेरे नन्दोई अपनी साली का मजा खुल के नहीं ले पार रहे थे....मेरे आधे प्लान की किस तरह होली में खुल के गुड्डी को उसके भैया से रगडवाउंगी....और यहां तो बेचारी को अपने जीजा के साथ...।क्या सोच रही हो..दूबे भाभी बोलीं.।यही की जरा ननद रानी को ननदोई बन के मजा दिया जाय।एकदम ...नेकी और पूछ पूछ...चल चढ जा।अपनी कितनी छोटी ननदों को इसी तरह प्रेम लीला का पाठ पढा के मैने छिनाल बनाया था लेकिन किसी बडी ननद के साथ ये पहला मौका था।मैने दोनों टांगे उठा के अपने कंधे पे रखी....( ये सोचते हुये कि इस समय मेरे सैंया भी अपनी प्यारी बहना की चिकनी चिकनी जांघे फैला के टांगे कंधे पे रखे....) दोनो जांघों को फैलाया और फिर....पहले एक दो बार हल्के ह्ल्के ...फिर कस के रगडना शुरु कर दिया। जिस तरह मेरी चूत उनकी चूत पे घिस्सा मार रही थी...थोडी ही देर में वो कुन मुनाने लगीं...और फिर उनके चूतड अपने आप ही उठने लगे।पास में रखी व्हिस्की की आधी बची बोतल उठा के दो घूंट मैने सीधे बोतल से ही लिये और बोतल दूबे भाभी की ओर बढा दी।दो घूंट उन्होने भी ली और फिर एक पल अपनी चूत उनके मुंह से उठ के ...जब तक...। ननद रानी संहले संहले....बोतल का मुंह उनके मुंह में घुसेड दिया और घल घल कर के सारी की सारी बोतल खाली।बहोत कुछ उन्होने अपने मुंह में ही भरा था लेकिन बोतल के निकलते ही दूबे भाभी की चूत ने उनका मुंह सील कर दिया, बेचारी घूंट घूंट करके सब गटक कर गयीं।उनकी एक चूंची मेरे हाथ में थी और दूसरी दूबे भाभी की गिरफ्त में..और जब मैंने दूबे भाभी की ओर देखा तो ...उनके होंठ एक दम मेरे होंठों के पास...उन्होने होंठ बढा के चूम लिये। मैं क्यों पीछे हटती...मैने अपनी जीभ उनके मुंह में ठेल दी।
वो कन्या प्रेमी थीं तो मुझे भी दोनो तरह का शौक था। मुझे चूसना छोड के थोडी देर बाद दूबे भाभी ने लाली की ओर रुख किया। वो कस कस के अपनी चूत लाली के होंठॊ पे रगड तो रही थीं पर लाली उनका साथ नहीं दे रही थीं, सुन चूत मरानो, भंडुवों की चोदी, भोंसडी वाली...अब मैं कुछ नहीं करुंगी कमर भी नहीं हिलाउंगी...चल अब अपनी जुबान मेरी चूत में डाल के चाट...चूस....और वो न पसंद हो तो गांड चटा दूं...बोल...और तेरी ऐसी ही रगडाई होती रहेगी...जब तक तू मुझे झाड नहीं लेती। हां एक बात और अपनी गांड खोल के सुन....मुझे झाडना इतना आसान नहीं। दो तगडे मर्द घंटे भर चोदते हैं तब जा के मैं कहीं झडती हूं, चल शुरु हो जा।बेचारी ननद रानी...कभी दूबे भाभी की झांटो भरी बुर चूसतीं कभी चाटती...फिर जीभ अंदर घुसेड के....लेकिन थोडी देर में ही जिस तरह उनके चेहरे पे चमक थी, निपल तन्नाये थे....साफ था की चूत चूसने चाटने में उन्हे भी जम के मजा आ रहा है।मैं कभी अपनी चूत धीमे धीमे तो कभी तेज तेज, कभी हल्के हल्के से सहलाते हुये तो कभी कस के रगड के घिस्सा मार के...किसी मर्द से कम जोर से नहीं चोद रही थी मैं अपनी प्यारी ननद को।और साथ ही होली भी चल रही थी....चारों ओर रंग बह रहे थे, बिखरे पडे थे...बस उन्ही को हाथ से कांछ के, समेट के उनके पेट पे चूतडों पे चूंचियों पे....तब तक मुझे कुछ पक्के रंग के पेंट की ट्यूब दिख गयीं और मुझे एक आईडिया आया।ट्यूब से ही उनके जो अंग अक्सर खुले रहते थे....उन पर मैने एक से एक गालियां....पेट पे लिखा...राजीव की रखैल....अब वो जब भी साडी पहनतीं तो पेट तो दिखता ही...पर दूबे भाभी बोलीं, अरे ये भी कोई गाली हुयी...ले मुझे दे और फिर उन्होने उनके सीने पे और वो भी उपर वाले हिस्से में...जो ब्लाउज से भी झलकता...लिखा छिनाल ...लंड की दीवानी....और बाकी जगहों पे भी...चूत मरानो....भाई चोदी...।इन सब से बेखबर लाली कस क्स के दूबे भाभी की चूत को चाट रही थीं चूस रही थीं...।हम तीनों साथ साथ झडे...दूबे भाभी लाली के जीभ से और मैं और लाली चूत की रगड घिस्स से। दूबे, भाभी ने आशिर्वाद दिया, वाह क्या चूत चटोरी है...इस होली पे तुम्हे खूब मोटे मोटे लंड मिलें, तेरी चूत, गांड, मुंह कभी लंड से खाली ना हो .., अरे भाभी....मायके में तो इनके भाई ही मिलेंगे...मैने टोका तो वो हंस के बोली...अरे कया फरक पडता है...लंड तो लंड है।जब हम दोनों उठे तो कहीं जा के लाली ने सांस ली....हालांकि हाथ अभी भी ...हमने हाथ नहीं खोला था।कुछ देर बाद वो बोलीं, ये तो गलत है एक के उपर दो...।( मैने सोचा इसमें क्या गलत है, इस समय तुम्हारी छोटी बहन भी तो एक के साथ दो....एक में अपने जीजू का लंड और दूसरी ओर से अपने भैदोया का लंड गपागप लील रही होगी....तो बडी बहन ....चलो भैया न सही भाभी ही सही) लेकिन उपर उपर मैं बोली...हां एक दम सही चलिये हम लोग बारी बारी से...और बडी दूबे भाभी हैं इसलिये पहले उनका नंबर...वैसे भी इत्ती देर से चूत पे घिस्सा मारते मेरी जांघे भी थक गयी थीं लाली एक मिनट के लिये आंख बंद कर के आराम से लेट गईं....मुझे लगा की दूबे भाभी तो बस अब टूट पडेंगीं पर उन्होने भी आराम से एक हाथ से अपनी सारी चूडी कंगन , लाली की ओर पीठ कर के निकालीं...फिर पहले तो चारो उंगलियों में फिर पूरे हाथ को नारियल के तेल में कस के चुपोडा। मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था...ननद जी की चूत इतनी गीली हो गयी थी की उंगली तो आसानी से चली जाती....तो फिर ये नारियल का तेल उनहोने पूरे हाथ में क्यों वो भी कलाई तक....और फिर चूडी क्यों निकाल दी...दूबे भाभी ने मुझे उंगली के इशारे से चुप रहने का इशारा किया और फिर ननद जी की दोनो भरी भरी जांघे फैला के बैठ गयीं....जिस हाथ से उन्होने चुडियां उतार दी थीं उसे नीचे रखा, उनके चूतड के पास और दूसरे हाथ से लाली की चूत बहोत हल्के हल्के य्यर से सहलाने लगीं। मजे से लाली ने आंखे खॊल दीं, उन्हे फ्लाइंग किस लेते हुए दूबे भाभी ने जोर जोर से सहलाना शुरु कर दिया ...फिर उसी हाथ की एक उंगली , फिर दो उंगली....लेकिन कुछ देर बाद ही वो दोनो उंगलिया गोला कार घुमने लगीं,चूत को और चौडा करती...अचानक नीचे रखे हाथ की भी दो उंगलियां भी साथ साथ घुस गईं और चारों उंगलियां एक दम सटी मोटॆ लंड की तरह तेजी से अंदर बाहर.....फिर उसी तरह गोल गोल....कुछ देर बाद जब चूत को उसकी आदत पड गयी....तो उन्होने नीचे वाले हाथ की दो उंगलियां निकाल लीं और उपर वाले हाथ की तीन उंगलियां...अंदर बाहर...साथ में क्भी अंगुठे से क्लिट रगड देतीं। थोडी देर के बाद दूसरे हाथ की भी तीन उंगलियां...अब लाली को थोडा दरद हो रहा था...लेकिन मजा भी आ र्हा था..होंठ भींच के वो दरद पी ले रही थीं। भाभी ने अब उपर वाले हाथ की उंगलियां तो निकाल लीं...लेकिन नीचे वाले हाथ की सबसे छोटी उंगली भी अंदर ठेल दी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था एक साथ चार चार उंगलियां...लेकिन मैं अपनी आंखॊ से देख रही थी....गपागप सटासट....फिर उन्होने चारों उंगलियों को बाहर निकाला और थोडा मोड क्रे....जैसे चूडी पहनाने वालीयां हाथ मोडवाती हैं वैसे....और अब की जब चारों उंगलियांन अंदर गयीं तो साथ में अगूंठा भी था और वो बोल भी चूडी वालियों की तरह रही थीं...।हां हां बस थोडा सा ....थोडा सा हल्का सा दर्द होगा....बस अब तो पूरा चला गया....देखो कितना अच्छा लग रहा है....जरा सा और उधर देखॊ...।मैं सासं रोक के देख रही थी....अब मुझे कुछ कुछ समझ में आ रहा था। आखिर इतनी ब्लू फिल्में देखी थी ...लेकिन सचमुच आंख के सामने...।अब लेकिन अटक गया था....उंगलिया तो अंदर समा गयी थीं लेकिन आखिर नकल....तभी अचानक दूबे भाभी ने कस के दूसरे हाथ से पूरे ताकत से उनकी क्लिट पिंच कर ली और लाली कस के चीख उठी....जब तक वो संहले संहले ....पूरी मुट्ठी अंदर....पूरी त्ताकत लगा के उन्होने इस तरह पेला जैसे कोई किसी कच्ची कली की सुहाग रात के दिन झिल्ली तोड्ता हो...।( दूबे भाभी ने बाद में बताया की पहले तो सारी उंगलियां...खूब सिकुडी सिमटी रहती हैं...लेकिन चूत के अंदर घुसा के वो उसे धीरे से फैला देती हैं...।लेकिन भाभी इसी पे नहीं रुकी॑ं...धीरे धीरे...अंदर की ओर दबाते हुये....गोल गोल घूमा रही थीं...।सूत सूत वो और अंदर जा रहा था। बचपन से मेरी भाभियों ने सिखाया था, बीबी....तुम चूत रानी की महिमा नहीं जानती ....जिससे इत्ते बडे मोटे बच्चे निकलते हैं....जिससे पूरा संसार निकला है....ये कहना की ये नहीं जायेगा वो नहीं जायेगा....उन की बेइज्जती करना है...जो ये लडकी ये कहती है की हाय राम इतना मोटा कैसे जायेगा....समझॊ छिनाल पना कर रही है....बस उस्का मन कर रहा है गप्प करने का...।और आज मैं अपनी आंखॊ से देख रही थी। लाली ननद की बुर ने दूबे भाभी की पूरी मुट्ठी घोंट ली थी....और अब उन्होने आल्मोस्ट कलाइ तक...।फिर एक दो मिनट तक रुकने के बाद भाभी ने आगे पीछे करना शुरु कर दिया....पूरी मुट्ठी से वो उन्हे चोद रही थीं। ननद रानी के चेहरे पे दर्द था लेकिन एक अलग तरह की मस्ती भी थी। वो कराह भी रही थीं और सिसक भी रही थीं। मुझे भी देखने में बडा मजा आ रहा था।अरे तू क्यों खडी देख रही है...ननद तो तेरी भी हैं...चल पीछे वाला छेद तो खाली ही है लग जा....दूबे भाभी ने मुझे चढाया और दूसरे हाथ से लाली की गांड उपर कर दी। क्या मस्त चूतड थे, रंग, कालिख,पेंट से रंगे पुते...।अरे नन्द रानी ...एक जगह बची है अभी रंग से और मैने पहले तो जमीन पे गिरे रंग फिर से अपने हाथ में लगाये....और मंझ्ली और तर्जनी पे खूब ढेर सारा गाढा लाल रंग लगा के गांड के छेद बडी मुश्किल से टिप घुसी....और वी चीख उठीं।ये बेइमानी है ननद जी....दूबे भाभी की तो कलाई तक घोंट ली आपने और मेरी उंगली की टिप से ही चिहुंक रही है....ज्यादा नखडा करियेगा तो मैं भी पूरी मुट्ठी गांड में डाल के गांड मारुंगी.....भले बाद में मोची के पास जाना पडे। अरे ससुराल में तो देवरों ननदोइयों के साथ होली का मजा बहोत लिया होगा...अब इतने द्निनों के बाद होली में मायके आई हैं तो भाभियों के साथ भी होली का मजा ले लीजिये।मैने दूबे भाभी की ट्रिक सीख ली थी...थोडा आगे पीछे करने के बाद...गोल गोल घुमाना शुरु कर दिया। गांड की दिवारों से रगड के उसे चौडा करते ....और फिर एक उंगली और....गांड के छल्ले ने कस के उंगलियों को पकडा....लेकिन मैने पूरी ताकत से ठेला जैसे कोइ मोटे लंड से गांड मार रहा हो...और गप्प से वो अंदर...उंगली की टिप पे कुछ गीला गीला लगा तो...इसका मतलब की....मैने तीनों उंगलियों को आल्मोस्ट टिप तक खींच लिया और फिर पूरी ताकत से अंदर तक....वो चिलमिलाती रहीं...गांड पटकती रहीं ..पर इससे तो ननद की गांड में उंगली करने का मजा दूगना हो रहा था। मेरी उंगलियों में लगा रंग उनकी गांड में लग रहा था और उनकी गांड का...लिसड लिसड...मैने तीनों उंगलियों को चम्मच की तरह कर के नकल से मोड लिया....और फिर गोल गोल घुमा घुमा के जैस कोई टेढी उंगली से ....करोच करोच कर..।दूबे भाभी ये देख रही थीं और जोश में...अब क्च क्चा के कलाई तक अंदर बाहर कर रही थीं।दूबे भाभी की आंखो का मतलब मैं समझ गयी और बोली, अरे ननद रानी आपके चेहरे का तो काफी मेकप किया हम लोगों ने लेकिन मंजन नहीं कराया.....और गांड में से निकाल के उंगली सीधे मुंह में..।वो मुंह बनाती रहीं....बिल्बिलाती रहीं....लेकिन दूबे भाभी ने जिस तरह से कस के उनका जबडा दबाया ...उन्हे मुंह खोलना ही पडा और एक बार जब मेरी वो तीन उंगलियां मुंह में घुस गयीं तो रगड रगड के दांतो पे..।( और इसके बाद तो पूरे होली भर...जहां कोई ननद पकड में आती ...ये बात सारी भाभियों में मशहूर हो गयी थी...अरे ज्ररा नबद को मंजन तो कराओ...और फिर गांड से उंगली निकल के सीधे मुंह में....) और कस के मुंह दबाते हुये दूबे भाभी बोलीं....अरे जरा ननद छिनाल को चटनी तो चखाओ....और मेरी उंगली सीधे मुंह में...।ये सब देख के मैं भी उत्तेजित हो गयी थी....लाली ने दूबे भाभी को तो चूम चाट के झाडा था तो मैं ई क्यों बची रहती...।और मैं सीधे उनके उपर.....अरे ननद जी देखिये मैने आपकी चूत इतनी बार चूस चूस के झाडी तो एक बार तो आप .मेरी ...।कहने की देर थी ननद की तारीफ करनी होगी लप लप उनकी जीभ मेरी चूत चाटने लगी...और दोनों होंठ कस कस के चूसने लगे बहोत मजा आ रहा था लेकिन...ठंडाई, व्हिस्की...बीयर...मुझे बडी जोर की आ रही थी...।और मैं उठने लगी तो दूबे भाभी ने इशारे से पूछा क्या बात है...।वो चूत में से हाथ निकाल के मेरे पास ही आ के बैठी थीं।मैने उंगली से १ नम्बर का इशारा किया....तो उनकी आंखो ने मुझे कस के डांटा और उठ के मेरे दोनो कंधे कस के दबाते हुये कान में बोली, अरे होली का मौका है ....नीचे ननद है...इससे बढिया मौका ....चल कर दे....।लेकिन तब भी मैं उठने की कोशिश करती रही...।लेकिन दूबे भाभी से जीत पाया कोई आज तक..।उन्होने मेरे मूत्र छिद्र के पास जोर से सुर सुरी की और फिर मेरे लाख रोकते रोकते ...एक सुनहरी बूंद और फिर ...पूरी धार...।और बाद में दूबे भाभी ने उन्हे छेडा...क्यों ननद रानी कैसा लगा सुनहली शराब का मजा।Continued ...
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