Friday, April 18, 2008

एक फूल, दो कलियां -LAST PART

एक फूल, दो कलियां -LAST PART
 
 
 
पूरी तरह तृप्त होकर मैं पड़ा पड़ा हांफ़ता रहा. फ़िर भाभी को बोला. "भाभी आपका दहेज तो लाखों का नहीं, करोड़ोम का निकला. मुझे अब अपना बेटा समझिये, जमाई समझिये या गुलांअ समझिये, एक ही बात है. आप तीनों की खिदमत मैं जीवन भर करूंगा."

भाभी भी अपनी कमसिन बच्ची की गांड चुदते देख बहुत गरम हो चुकी थीं. उनकी चूत मैने चूसी जिससे उन्हें भी तृप्ति मिली और मुझे ढेर सा चिपचिपा बुर का रस. अपना झड़ा लन्ड मैंने सीमा की गांड में ही रहने दिया क्योंकि एक बार और मैं उसकी मारना चाहता था. वह भी तैयार थी. कुछ देर बाद लन्ड खड़ा होकर जब फ़िर सीमा के चूतड़ोम के बीच गहरा उतर गया तो मैने उसकी गांड कुतिया स्टाइल में मारी. वह पलन्ग पर घुटनों और कोहनियों पर झुक कर जम गई और मैं उसके पीछे घुटने टेक कर उसके चूतड़ पकड़कर उसकी गांड मारने लगा. इस आसन में काफ़ी मजा आया क्योंकि मुझे अपना लन्ड सीमा के नितम्बोम के बीच घुसता निकलता देख कर बड़ा मजा आ रहा था. इसी समय मैने भाभी को बाजू में खड़ा कर के उनकी चूत भी चूस ली.

उस रात मैने चुदाई नहीं की क्योंकि दूसरे दिन मैं और मीनल हनींऊन पर जाने वाले थे. हनींऊन में मीनल की अच्छी चुदाई करने के लिये फ़िर लन्ड को आराम देना जरूरी था. हम सब काफ़ी थक गये थे इसलिये सभी ने सिर्फ़ आराम किया और खूब सोये.

आखिर हम दोनों हनींऊन पर निकले. भाभी और सीमा ने हमें बिदाई दी. साथ बस एक ही छोटा सूटकेस लिया था. जब सीमा तरह तरह के कपड़े पैक कर रही थी तो मैने ही मना कर दिया. बोला "तेरी दीदी को मैं अधिकतर नंगा ही रखूंगा, दिन रात चोदूंगा, सिर्फ़ दो जोड़ी काफ़ी हैं बाहर जाने के लिये, तो क्यों ज्यादा कपड़े रखती है मेरी प्यारी गुड़िया साली?" सुनकर सीमा हम्सने लगी और मीनल को खिजाने लगी. "दीदी तेरे तो अब मजे हैं हफ़्ते भर, पर जरा संहल के रहना, जीजाजी का यह हलब्बी लन्ड जो आज तक हम तीनों मिल कर संहालते थे, अब सिर्फ़ तेरे पीछे पड़ेगा."

सीमा के कान में मैने कुछ कहा और उसकी आंखें शैतानी से चमकने लगीं. मेरी कही चीजेम उसने चुपचाप सूटकेस में रख दीं. बेचारी मीनल के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह डरकर ऐसे रोने लगी जैसे दुल्हन बिदा के वक्त रोती हैं जबकि हम हफ़्ते भर बाद यहीं वापस आने वाले थे.

मीनल टैक्सी में बैठी तब तक भाभी ने मेरे कान में कहा. "मजा करो बेटा, और मीनल की बिलकुल परवाह करने की जरूरत नहीं है, जरा ज्यादा ही नाजुक है, सीमा जैसी चुदैल नहीं है. उसे मस्त चोदो और एक पत्नी के सब कर्तव्य सिखा दो. रोती है तो रोने दो, बल्कि और रुला रुला के भोगो. आगे तेरे काबू में रहेगी. अपने दिल की हर मुराद पूरी कर लो, कितनी ही कांउक क्यों न हो. यहां मैं आराम से अपनी छोटी बेटी के साथ मजे करूंगी. अकेले में उससे मनचाहा सम्भोग करने का यही अच्छा मौका है."

जब हम ट्रेन में अपने कूपे में पहुम्चे तो मीनल सिमट कर एक कोने में बैठ गई. ट्रेन शुरू होने के बाद मैने दरवाजा लगा लिया और उसे भींच कर चूमने लगा. वह अभी भी घबरा रही थी कि मैं वही उसकी गांड न मारने लगूम. पर मैंने उसे प्यार से खूब चूमा और कहा कि ट्रेन में तो मैं उसे चोदूंगा भी नहीं, सिर्फ़ चूसूंगा और चुसवाऊंगा. अब मैं उसके बुर के रस का दीवाना हो चुका था इस्लैये सीधे उसकी साड़ी ऊपर की और उसमें घुस गया. उसकी पैंटी खींच कर निकाली और उसकी बुर पर टूट पड़ा. घबराहट के बावजूद मेरी रानी भी काफ़ी उत्तेजित थी और बुर में से रस टपक रहा था. वह शरमा कर नहीं नहीं करती रही और मैं उसपर ध्यान देकर उसकी हफ़्ते से अनछुई बुर पर मुंह लगाकर बैठ गया और उस खजाने पर ताव मारने लगा.

मैंने उसे घम्टे भर जरूर चूसा होगा. वह भी झड़ झड़ कर निहाल हो गई. उसकी सुख भरी सीत्करियां सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा क्योंकि मैं जानता था कि होटल पहुम्चने पर हनींऊन में मैं उस का क्या हाल करने वाला हूं इसलिये अभी तो उसे भरसक सुख पहुम्चाना मेरा कर्तव्य था.

जब मुझसे और सहन नहीं हुआ तो मैंने उसे उठने को कहा और खुद आराम से सीट पर बैठ गया. अपना लौड़ा पैम्ट में से निकाला और मीनल को नीचे अपने सांअने बिठा कर उसे चूसने को कहा. वह बड़ी खुशी से मेरा लन्ड मुंह में लेकर चूसने लगी. पहले वह सिर्फ़ सुपाड़ा लेकर चूस रही थी. मैने उसका सिर पकड़ कर जबरदस्ती अपनी गोद में भींच लिया. पूरा लन्ड धीरे धीरे मेरी रानी के मुंह में उतर गया. उसे पूरा लन्ड मुंह में लेने में काफ़ी तकलीफ़ हुई, दम घुटने से वह गोंगियाने लगी और छूटने को हाथ पैर मारने लगी पर मैने उसके गले में लन्ड जड़ तक उतार ही दिया. फ़िर धक्के दे देकर उसका मुंह और गला चोदने लगा

बहुत आनन्द आया उसके गीले तपते मुंह को चोद कर. आखिर वह थक कर निढाल हो गई और छूटने की कोशिश बन्द करके चुपचाप चूसने लगी. झड़ कर मैंने करीब पाव कटोरी वीर्य उसके गले में फ़ेम्का जो वह चुपचाप पी गई. जब उसे छोड़ा तो अपने गले को मलती हुई वह मुझे उलाहना देने लगी पर झूटे गुस्से से. मुझे मालूम था कि उसे मेरा वीर्य बहुत अच्छा लगता था और उसे पीने के लिये वह अपनी गले की चुदाई बरदाश्त कर सकती थी.
रास्ते भर हमारा यह मुंह से चूसना और चुसवाना चलता रहा. हम सुबह होटल पहुम्चे और खाना खा कर सीधे सो गये. शांअ को उठे, नहाया और जल्दी खाना खाकर फ़िर कमरे में आ गये. मीनल बेचारी घूमने जाना चाहती थी पर मैं तो अब उसके शरीर को पूरी तरह बिना किसी हिचक भोगने को आतुर था. इसलिये उसकी बात टाल कर कमरे में ले आया.
रास्ते में मैने उससे पूछा. "आज की रात तुंहारी मेरी जान, जो बोलोगी वह करूंगा. कल से मेरी बारी, मस्त मसल मसल कर चबा चबा कर भोगूंगा तेरी जवानी, इसलिये आज मजा कर ले." कमरे में आकर दरवाजा लगाकर मैं तुरम्त नंगा हो गया. फ़िर मीनल के भी कपड़े उतार दिये. वह फ़िर दुल्हन जैसी शरमा रही थी पर उत्तेजित भी थी." डार्लिंग, आज मैं चाहती हूं कि आप मेरी खूब चूसेम और जीभ से मुझे चोदेम, फ़िर अपने इस लन्ड से भी चोदिये. पर प्लीज़ मेरी गांड मत मारिये, बहुत दुखता है."
मैंने उसे विश्वास दिलाया कि आज उसकी गांड सलांअत रहेगी. उसकी इच्छानुसार मैने उसकी चूत चूसना शुरू कर दिया. मैंने ठान ली थी कि आज मीनल की इतनी चूसूंगा कि गिड़गिड़ाने लगेगी. इसलिये पहले मैंने उसे पलन्ग पर लिटाकर उसकी बुर चूसी और जब वह गरम हो गई तो सीधा लेटकर उसे अपने मुंह पर बिठा लिया. मेरे मुंह पर चूत जमाकर उछल उछल कर उसने खूब हस्तमैथुन किया. फ़िर मैने एक छोटे लन्ड जैसे अपनी जीभ बाहर निकाली और उसे बुर में लेकर मेरी पत्नी ने उसे खूब चोदा. मैं भी जीभ दुखने के बावजूद उसे कड़ा किये उसकी बुर में घुसाया रहा जब तक वह सम्तुष्ट नहीं हो गई.
फ़िर उसे कुर्सी में टांगेम फ़ैलाकर बिठाया और उसके सांअने नीचे बैठकर उसकी चूत चूसी. अब वह लस्त हो गई थी और झड़ झड़ कर परेशान हो गई थी. इसलिये छोड़ने को कहने लगी. मैने एक न सुनी और फ़िर उस उठा कर पलन्ग पर ले गया और जबरदस्ती उसके चूत अपने मुंह में लेकर चूसता रहा. वह हाथ पैर पटकने लगी क्योंकि उसकी बुर अब इतनी सम्वेदन्शील हो चुकी थी कि मेरे होंठ या जीभ लगते ही वह सिसक उठती थी.

आखिर जब वह रोने को आ गई तब मैंने चूसना बन्द करके अपना लन्ड उसकी बुर में डाला और उसपर चढकर चोदने लगा. यह चुदाई भी उसकी झड़ी बुर को सहन नहीं हो रही थी इसलिये वह बार बार मुझसे याचना करती रही पर मैं बोला. "आज तो तेरे हनींऊन का पहला दिन है रानी, आज छोड़ दूंगा तो तेरी मां और बहन कहेगी कि उनकी बेटी को प्यासा ही वापस ले आये, इसलिये चोदूंगा जरूर." और उसका मुंह अपने होंठों से बन्द करके मै उसे जोरोम से चोदने लगा.
घम्टे भर चोदने के बाद जब मैं झड़ा तो देखा तो मीनल बेहोश हो गई थी. मैं भी तृप्त होकर पति का सब कर्तव्य पूरा कर के सो गया.
दूसरी रात से असली हनींऊन शुऊ हुआ. मेरी आंखों में भरी कांउकता से पहले ही मीनल समझ गई थी कि अब उसकी खैर नहीं और जब मैं उसे नंगा कर रहा था तभी वह घबरा कर रोने लगी. मैंने उसे कुछ न कहा और सूटकेस में से सीमा और भाभी की पहनी हुई, मैली पैंटी और ब्रेसियरेम निकालीं. यह मैंने खास सीमा से अपनी मीनल के लिये रखवाए थे. पहले ब्रेसियर से उसकी मुश्कें बांध डालीं. फ़िर उसे मुंह खोलने को कहा और उसमें भाभी और सीमा की पैंटी ठूम्स दी जिससे वह चिल्ला न सके.
मीनल को पलन्ग पर पट लिटा कर मैंने उसके चूतड़ मसलना और चाटना शुरू कर दिये. आज वे सांवले चिकने नितम्ब गजब के लग रहे थे. सकरे गुदा को जब मैने चूसना शुरू किया तो मीनल को भी मजा आया. मैं जीभ डाल डाल कर उसकी गांड चूस रहा था. उस सौम्धी खुशबू और कसैले स्वाद से मेरे मन में बड़े गम्दे कांउक विचार आने लगे. मैने भी निश्चय कर लिया कि अब तो वह सब कर के रहूंगा जो मन में आये.

गांड चूस चूस कर काफ़ी गीली हो गई थी. मैंने अब अपना लन्ड उसमें घुसेड़ना शुरू किया. आज कोई मक्खन लगाने का इरादा नहीं था. सूखी मार कर मजा लेना चाहता था. पूरा लन्ड डालने में आधा घंटा लग गया. एक तो मीनल की गांड आराम मिलने से फ़िर टाइट हो गई थी. फ़िर कुछ चिकनाई भी नहीं थी. सुपाड़ा अन्दर डालने में ही दस मिनट लगे. मीनल तो ऐसे छटपटा रही थी जैसे बिन पानी की मछली. मुंह से गोंगियाती और आंखों में आंसू भरी हाथ पैर बन्धी उस सांवली युवती को देख देख कर मैं और उत्तेजित हो रहा था
सुपाड़ा अन्दर जाते ही वह एक दबी चीख के साथ बेहोश हो गई. होश में आने तक मैं रुका जिससे मेरी प्यारी अपनी गांड में पति का मोटा लन्ड उतरने की पीड़ा भरी क्रिया का पूरा आनन्द ले सके. आखिर जब लन्ड जड़ तक उसके चूतड़ोम के बीच घुस गया तो मैं उसकी गांड मारने लगा. पहले धीरे धीरे शुरू किया क्योंकि सूखी गांड में लन्ड फ़म्सा था और फ़िसलता नहीं था. दूसरे यह, कि इतना मजा आ रहा था कि मैं झड़ न जाऊम इसका डर मुझे था. सूखे मखमल जैसी उस टाइट गांड में लन्ड अन्दर बाहर होता तो था पर बड़ी मुश्किल से.

शुरू शुरू में तो मीनल खूब छटपटाई. सूखी गांड मराने में उसकी हालत खराब थी. पर कुछ देर में उसे अपनी गांड में होते दर्द का आदत हो गई और उसका रोना बन्द हो गया. मैं तो आज उसे बिलखता रखना चाहता था इसलिये अब उसकी चूचियों को मसलना शुरू कर दिया. एक दो हाथों में ही वह फ़िर बिलबिला उठी और कांअ शुरू हो गया

कुछ देर बाद मैं रुका और उसके पैर खोल दिये. धीरे से उसे पकड़े हुए ही पलन्ग से उतारा और बोला. "चल रानी, बिस्तर पर बोर हो गया, अब खड़े खड़े मारूंगा." उसे ढकेलता हुआ मैं दीवार की ओर ले गया. गांड में लन्ड गड़ा होने से हर कदम पर उसे पीड़ा होती और वह कसमसा कर रुक जाती. मुंह में मां और बहन की पैंटी ठुम्सी होने से कुछ बोल तो सकती नहीं थी. उसे आगे चलाने को मैं फ़िर उसकी चूची कस कर मसलता और निपल को खींचता, तो न चाहते हुए भी वह अगला कदम रखने को विवश हो जाती.

आखिर किसी तरह बेचारी दीवार तक पहुम्ची. मैंने उसे दीवार से सटाया और फ़िर आगे पीछे होते हुए उसकी गांड में अपना लन्ड पेलने लगा. यह आसन मस्त था और मैं करीब करीब पूरा लन्ड बाहर खींच कर फ़िर उसे एक धक्के में मीनल के गुदा में पेल देता. यह धक्के उसके लिये ज्यादा ही कठोर थे और हर धक्के में वह दर्द से तड़प कर रह जाती. उस बिचारी को सिर्फ़ यही सम्तोष होगा कि इस आसान में उसकी चूचियां दीवार से दबी होने से मेरे हाथों से बची रहीं.
बीच में झड़ने के करीब आकर जब मैं रुक गया था और सुस्ता रहा था तो प्यार से उसके आंसुओम से गीले गाल चूमता हुआ बोला. "मजा आ रहा है ना मेरी रानी, यह तो सिर्फ़ शुरुवात है, अभी तो अपनी इस जान के बदन को मैं कैसे कैसे भोगता हूं, देख. तुझे भी कोई आसन सूझता हो तो बता."
आखिर जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने मीनल को वहीं दीवार से बाजू करके फ़र्श पर पटक दिया और उसपर चढ बैठा. वहीं फ़र्श पर पटक पटक कर मैने उसकी खूब गांड मारी. मम्मे भी मन भर कर दबाये. कड़े ठम्डे फ़र्श पर मेरे नीचे उसका गरम कोमल शरीर गद्दे का कांअ कर रहा था. उस बेचारी को जरूर फ़र्श पर मेरे नीचे पिसते हुए तकलीफ़ हुई होगी पर मैं इतना उत्तेजित था कि मैंने कोई परवाह नहीं की.

झड़ने के बाद मैं उसे पलन्ग पर ले गया. लन्ड गांड में ही रहने दिया. अब उसकी मुश्कें खोल दीं और मुंह में से पैंटी भी निकाल ली. मुंह खुलते ही वह रोने लगी. "मुझे माफ़ कीजिये, मुझे मां के पास भेज दीजिये, यहां मैं जिम्दा नहीं बचूंगी, कितनी बेदर्दी से मेरी गांड मारी है और स्तन कुचले हैं. मुझे छोड़ दीजिये प्लीज़" मैने उसे विश्वास दिलाया कि छोड़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. हफ़्ते भर मैं ऐसे ही भोगूंगा और इसके लिये उसकी मां की परमिशन मैने पहले ही ली है.

उस रात मैंने उस पर जरा भी दया नहीं की. रात भर उसकी गम्ड मारी. पर अब वहीं पलन्ग पर मारी, ज्यादा आसनों के चक्कर में नहीं पड़ा. सुबह उठने के बाद मीनल को उठा कर बाथरूम ले जाना पड़ा क्योंकि वह तो चल नहीं पा रही थी. मैने उसे नहलाया, नितम्बोम की मालिश की, मसली हुई लाल लाल चूचियों को क्रींअ लगाई और गुदा में भी क्रींअ लगी दी कि कुछ आराम मिले. नाश्ता कमरे में ही बुलवा लिया और थकी हारी बुरी तरह से चुदी मेरी दुल्हन सो गई. मैंने उसे शांअ तक सोने दिया और खुद भी आराम किया.

रात को फ़िर वही क्रम चालू हो गया. मीनल बिचारी हताश हो गई थी और उसने हार मान ली थी. आज वह कुछ न बोली और चुपचाप गांड मराती रही. मुझे उसका मुंह भी नहीं बांधना पड़ा. रोई बिलबिलाई भी जरा कम. मै खुश था कि सबक सीख रही है और हर रात पति की सेवा की अच्छी ट्रेनिंग ले रही है.

अगले दिन से मैने भी उसे थोड़ा कम मसला और कुचला. गांड मारी तो गोद में बिठा कर जैसे सीमा के साथ किया था. उसके पहले उसकी चूत चूसी. दो दिन बाद बिचारी को कुछ यौन सुख मिला और मेरे मुंह में तुरम्त झड़ गई. गांड में लन्ड डाल कर गोद में बिठाने के बाद मैने उसे खूब चूमा और धीरे धीरे नीचे से गांड मारने के साथ उसकी बुर को भी उंगली कर कर के झड़ाया. उंगली से ही मैने उसका घी जैसा चिपचिपा रस चाटा तो चार दिनों में पहली बार मेरी दुल्हन कुछ हम्सी.

शांअ को हम घूमने गये. वहां एक झाड़ी के पीछे मैने उसकी चूत चूसी और उसे अपना लन्ड चुसवाया. वापस आते समय अच्छे मोटे केले दिखे तो मैने खरीद लिये. मीनल पूछने लगी क्योम. रात को उसे जवाब मिल गया जब फ़िर से गांड में लन्ड डाल कर मैने उसे गोद में बिठाया और फ़िर केला छीलकर उसकी रिसती चूत में डाल दिया और उससे उसकी मुठ्ठ मारने लगा. मुलायम केले से चुदना उसे बड़ा अच्छा लगा और वह मुंह घुमा कर मुझे चूमते हुए स्खलित हो गई.

केला मैने बुर के अन्दर ही रहने दिया. गांड मार कर झड़ने के बाद मैने उसे कुर्सी में बिठाकर उसकी चूत चूसते हुए उसमें से केला निकाल कर खाया. मीनल के बुर के पानी से भीगा चिपचिपा केला ऐसा मस्त स्वादिष्ट हो गया था कि अब यह क्रीड़ा मैं कई बार करता. सादा केला तो मैने खाना ही बन्द कर दिया, खाता तो मीनल की बुर में डाल कर ही. मीनल को भी केले से हस्तमैथुन करने में मजा आता था. मेरी फ़रमाइश पर वह मेरे सांअने बैठ कर मुठ्ठ मार कर दिखाती थी. गांड मराने में उसे अभी भी दर्द होता था पर अब वह चुपचाप सहती थी क्योंकि अब मैं उसे चोदता बहुत कम था. गांड मारता और चूत चूसता, इसी में मुझे मजा आता था.

एक रात ऐसे ही मीनल रानी को गोद में बिठाकर गांड मारते हुए और केले से चोदते हुए मैंने घर का फ़ोन लगाया. भाभी स्पीकर फ़ोन पर आयीं. मेरी आवाज सुनकर खुश हो गईं. उन्होंने मीनल से पूछा. "क्या हाल है मेरी बेटी का" मीनल बेचारी अपनी गांड से मेरे लन्ड को पकड़ते हुए बोली "ठीक है मां, अब मजा आ रहा है. पर पहले दो दिन बहुत दर्द हुआ, मैं मर ही जाती, मेरी गांड को इन्होंने चोद चोद कर खुरच दिया है." "अच्छा अभी बता क्या चल रहा है? अनिल का लन्ड गांड में है या बुर मेम?" सुधा भाभी ने पूछा.

मीनल बोली "गांड में है मां, और नीचे से ही मेरी मार रहे हैं, स्तन भी मसल मसल कर लाल कर दिये हैं. पर ममी, केले से मेरी बुर को चोद रहे हैं, इतना अच्छा लग रहा है कि पूछो मत, और फ़िर केला ये मेरी बुर में से ही खा लेंगे, साथ साथ चूत का रस भी पी लेंगे, इन्हें इतना पसम्द हैं मेरी बुर में डला केला कि दिन में दो तीन बार ऐसे ही खाते हैं."

भाभी सिसकते हुए बोली. "वाह बेटी, ऐसे ही पति की सेवा कर, उसे जो चाहिये वह दे." मैने पूछा "भाभी, आपकी आवाज ऐसे क्यों कांप रही है? और सीमा रानी किधर है?" भाभी सीत्कारी भरती हुई बोली. "मेरी टांगों के बीच बैठकर मेरी बुर चूस रही है शैतान, अनिल यह लड़की बुर चूसने में माहिर है, इतना मस्त झड़ाती है, पिछले एक घम्टे से मेरी चूत मुंह में लिये है और मुझे दस बार झड़ा चुकी पर छोड़ती ही नहीं अपनी मां की चूत, चूसे जा रही है."

मैंने कहा "उस चुदैल बच्ची की तो मैं वापस आकर ले लूंगा पूरी. पर आप भी उसे इनाम दीजिये, यही केले वाला, केले से मुठ्ठ मार कर देखिये, आप दोनों नाम नहीं लेंगी फ़िर उंगली से मुठ्ठ मारने का. अपनी बुर में से केला खिलाइये, देखिये कैसी चहकती है, और खुद भी उसकी चूत में का केला खा कर देखिये." फ़ोन रखने पर मैं अति उत्तेजित था. जब मैने अपनी मां की जांघों के बीच बैठी बुर चूसती उसे बच्ची की कल्पना की तो मेरा लन्ड ऐसा उछला कि सीधा झड़ गया.



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