Sunday, April 13, 2008

लेडीज़ टेलर (भाग दो)-----------2

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मैं उसका ब्लाउज़ सिलते हुये सोच रहा था कि वह सचमुच आज के घटनाक्रम के बाद अपनेआप और मुझ से नाराज़ हो गयी है और पता नहीं इसका परिणाम क्या होगा। करीब रात के आठ बजे होंगे कि अचानक मेरा मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी, उसी का फ़ोन था। वो बोली “मास्टर जी, मैं आपसे अपने बर्ताव के लिये शर्मिन्दा हूँ, सबकुछ अचानक से हुआ। मुझे बिना कुछ बोले चले आने के लिये माफ़ कर दीजिये”। मैं चुपचाप सुन रहा था। वो आगे बोली “मैं धैर्यहीन हो गयी थी और मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ , आयन्दा से ऐसा नहीं होगा”। मैने राहत की साँस ली और बोला “कोई बात नहीं ज्योति जी”। मैने बोला कि मैं अभी उन्हीं का ब्लाउज़ सिल रहा था एक घन्टे मे तैयार हो जायेगा। वह खुश हो गयी और बोली “तुम कितने अच्छे हो, मैं तुमसे…” वह बीच में ही रुक गयी। मैने उसे बात पूरी करने के लिये बाध्य नहीं किया और पूछा कि वह कल कब आयेंगी ब्लाउज़ लेने के लिये। उसने कहा “क्योंकि कल पार्टी है क्या तुम सुबह मेरे घर पर आकर दे सकते हो। मैने कहा “ठीक है, मैं दूकान खोलने के पहले करीब ११ बजे आऊँगा”। उसने धन्यवाद बोला। मैने कहा “ज्योति जी, आप मेरी वो वाली बात याद रखियेगा जो मैने आपके जाने से तुरन्त पहले बोली थी”। वो हँसी और बोली “तुम बड़े शरारती हो। ठीक है मैं कोशिश करूँगी”। इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया मैं ख़्यालों के सातवें आसमान पर पहुँच गया।

काला ब्लाउज़

अगली सुबह मैं करीब ११ बजे उसके घर पहुँचा और घन्टी बजाई। एक आदमी ने दरवाज़ा खोला जो सम्भवतः उसका पति था। जब मैने बताया कि मैं दर्जी हूँ तो उसने आवाज़ लगाई ज्योति और मुझको अन्दर आने के लिये बोला। ज्योति आयी और मैने उसे ब्लाउज़ दे दिया। जैसे ही मैं जाने लगा उसके पति ने बोला “ज्योति तुम इसे पहन कर फ़िटिंग देख क्यों नहीं लेतीं, अभी देख लो अगर कुछ कमी हो, नहीं तो पार्टी के लिये बहुत देर हो जायेगी”। वो बोली ठीक है और अन्दर कमरे में चली गयी। उसका पति भी दूसरे कमरे में कुछ काम से चला गया। मैं वहीं उसके आने का इन्तज़ार करने लगा। कुछ देर बाद वह बाहर आयी बोली “मास्टर जी, यह नीचे से थोड़ा ढीला है”। लेकिन उसने ब्लाउज़ पहन नहीं रखा था इसलिये मैनें पूछा “मैडम, कितना ढीला है?” तभी उसका पति बाहर आया और बोला “ज्योति, तुम इसे ब्लाउज़ पहन कर फ़िटिंग दिखा क्यों नहीं देतीं और हाँ मैं बाहर जा रहा हूँ शाम की पार्टी के लिये कुछ ठंडा लाना है”। उसने जाने से पहले मुझे बाहर ही इन्तज़ार करने को कहा जबकि ज्योति फ़िर से ब्लाउज़ बदलने अन्दर कमरे में चली गयी। शायद उसे अपनी पत्नी पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा था। जब ज्योति ब्लाउज़ पहन कर बाहर आयी तो पहले उसने जाकर बाहर का दरवाज़ा बन्द किया, फ़िर मुड़ी और मुस्कुराकर बोली “देखिये न कितना ढीला है”। वह काली साड़ी और काले ब्लाउज़ में बहुत ही कामुक लग रही थी। मैं उसके पास गया और उसकी नज़रों में नज़रें डाले उसकी साड़ी का पल्लू हटा दिया। वह कुछ नहीं बोली। मेरी आँखों के सामने एक अद्भुत नज़ारा था। उसकी क्लीवेज दिख रही थी और उसके स्तनों के ऊपरी उभार मुझे उकसा रहे थे। दरअसल ब्लाउज़ ज़रा भी ढीला नहीं था एकदम फ़िट था। मैनें ब्लाउज़ के नीचे से अपनी दो उंगलियाँ घुसा दीं और पूछा “ज्योति जी, कहाँ से ढीला है?” अब तक मेरा दिल अन्दर ही अन्दर खुशी और उत्तेजना से जोरों से धड़कने लगा था। एक खूबसूरत और कामुक घरेलू औरत मेरे सामने बहकने को तैयार खड़ी थी। उसका पति घर से बाहर था और वह मेरे आगोश में आने को बेताब थी। मेरी दोनों उंगलियाँ नीचे से उसके स्तनों को ब्रा सहित स्पर्श कर रही थीं और वह मुझसे नज़रें चुराती हुयी नीचे देख रही थी। मुझे पता था कि आज समय कम है इसलिये मैं बिना समय गँवाए बहुत कुछ करना चाहता था। मैनें अपनी उंगलियाँ एक एक करके उसके दोनों स्तनों पर फ़िरायीं और बोला “ज्योति जी, ये ब्लाउज़ बस इतना ही ढीला है कि मेरी उंगलियाँ अन्दर जा सकें”। वह थोड़ा मुस्कुराई पर शर्म के मारे नीचे ही देखती रही। अब मैने हिम्मत जुटाके एक और कदम आगे बढ़ाते हुये अपना दूसरा हाथ उसकी जांघों के बीच ले गया और उसकी योनि को साड़ी के ऊपर से ही सहलाते हुये बोला “आपका ब्लाउज़ भी बस इतना ही ढीला है जिसमें मेरी दो उंगलियाँ जा सकें”। वह मुस्कुराई और शर्माते हुये जल्दी से मुझसे लिपट गयी। मैं एक एक करके उसकी पीठ, नितम्ब और योनि को कपड़ों के ऊपर से ही सहला रहा था। उसके दोनों स्तन मेरी छाती से दबे हुये थे और उसकी साँस भी तेज़ हो गयी थी क्योंकि मेरा लिंग उसकी योनि से बार बार रगड़ खा रहा था। ज्योति मुझसे लिपटे हुये अपनी पीठ और कूल्हों पर मेरी मसाज़ का भरपूर आनन्द ले रही थी और मेरे पूर्णतया उत्तेजित लंड को महसूस कर रही थी। तभी अचानक दरवाजे की घन्टी बजी और हमदोनों जल्दी से अलग हो गये, ज्योति ने अपना पल्लू सही किया और दरवाज़ा खोलने चली गयी। दरवाज़े पर अपनी पड़ोसी सोनिया को देखकर उसने राहत की साँस ली। उन्होनें धीमी आवाज़ में कुछ बात करी और जल्द ही वह वापस लौट गयी। जैसे ही ज्योति ने फ़िर से दरवाज़े का कुण्डा लगाया मैने आँख मारते हुये उससे बोला ” ज्योति जी, अपने पतिदेव को फ़ोन करके कुछ और ज़रूरी सामान लाने के लिये बोल दीजिये ताकि उन्हें बाज़ार से आने में एकाध घन्टा और लग जाय”। ज्योति भी थोड़ा सा हँसी और फ़िर फ़ोन लगा कर अपने पति से बात करने लगी। जब वह अपने पति से बात कर रही थी मैने पीछे से जाकर उसे अपनी बाँहों मे ले लिया और उसकी नंगी कमर को सहलाने लगा। वह थोड़ा हड़बड़ाई पर फ़िर सामान्य होकर अपने पति से बात करते हुये मेरी हरकतों का आनन्द लेने लगी। मैं उसकी नाभि में उंगली डालकर दूसरे हाथ से उसके स्तनों को दबाते हुये सोच रहा था कि क्या किस्मत पायी है मैनें कि एक औरत मुझसे सम्बन्ध बनाने के लिये अपने पति को बेवकूफ़ बना रही है। यह सोच कर मैं और भी कामोत्तेजित हो गया और उसकी योनि को पीछे से सहलाने लगा। इस हालत में वह चाहकर भी अपने पति से ठीक से बात नहीं कर पा रही थी इसलिये उसने यह कहते हुये फ़ोन रख दिया कि टेलर ब्लाउज़ देने के लिये उसका इन्तज़ार कर रहा है।

मैं अबतक काफ़ी उत्तेजित हो गया था और अब इस बेवफ़ा पत्नी से अशिष्ट भाषा में बात करना चाहता था। मैं बोला “क्यों ज्योति जी, गीली हो गयी है क्या?” वो कुछ नहीं बोली और आँखें बन्द किये हुये अपना चेहरा मेरे सीने पर रखकर मेरे हाथों से आनन्द लेती रही। मैं चाहता था कि वह मेरी अभद्र बातों का उत्तर दे इसलिये मैनें और जोरों से उसकी योनि और स्तनों को मसलना शुरू कर दिया और बोला “ज्योति जी आप बहुत मस्त हैं, क्या मैं आपको रानी कह सकता हूँ?” उसने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई। मैने फ़िर खुशी से देर तक उसके गर्दन और कानों को चूमा और इस बीच अपने हाथों को उसके बदन की मसाज़ में व्यस्त रखा। फ़िर मैने बात शुरू करते हुये पूछा “ज्योति रानी, बताओ ना अब तो, गीली हुयी या नहीं”। उसने अनजान बनते हुये भारी आवाज़ में पूछा “क्या गीली हुयी?” मैं इसी मौके की तलाश में था, मैने उसकी योनि को थपथपाते हुये कहा “आपकी चूत, ये जिसकी मैं इतनी देर से मालिश कर रहा हूँ”। वह चूत का मतलब जानती थी इसीलिये बस सिर हिला कर हाँ बोल दिया और आँखें बन्द किये हुये आनन्द उठाती रही। मैनें उसके शरीर के कामोत्तेजक भागों को छेड़ना जारी रखा जबकि मेरा पूरी तरह से खड़ा हुआ लिंग उसके शरीर से टकराता रहा। उसकी साँस बड़ी तेजी से चल रही थी, उसके दोनों हाथ मेरे कंधों पर थे और वह कामोत्तेजना की वज़ह से अपने होठों को चबा रही थी। मेरी मसाज़ के साथ अपने नितम्बों को हिलाते हुये आखिरकार वह बोल पड़ी “ओह मास्टर जी, आप ये क्या कर रहे हैं, आपने मुझे कामवासना में पागल कर दिया है, प्लीज़्… वो अभी आते ही होंगे”। पर जिस तरह से वह शरीर हिला हिला कर मेरा साथ दे रही थी मैं जानता था कि वह चाहती है कि मैं यह सब जारी रखूँ। फ़िर मैनें अपना एक हाथ उसके ब्लाउज़ और ब्रा के अन्दर डाल दिया। पहली बार उसके नंगे मखमली स्तनों के स्पर्श से मैं और उत्तेजित हो गया और उसके निप्पलों को चुटकी में दबाते हुये बोला “रानी, ये तो बस शुरुआत है किसी और दिन दिखाऊँगा कि मैं तुम्हारे इस सुन्दर बदन के साथ क्या क्या कर सकता हूँ”। वह आहें भरते हुये मेरी मसाज़ के साथ हिलहिलकर मेरे करामाती हाथों को अपने स्तन और निप्पल पर महसूस करती रही। वह सच में एकदम गीली हो चुकी थी और कामोन्माद की चरम सीमा पर पहुँचने वाली थी। वो बोली “मास्टर जी प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिये वरना हम दोनों पकड़े जायेंगे”। पर उसने अलग होने के लिये कोई शारीरिक प्रयत्न नहीं किया। मैं जानता था कि वह आनन्द की चरम सीमा के नज़दीक है इसलिये मैने उसकी योनि और स्तनों को रगड़ने की गति और तेज़ कर दी। मैं चाहता था कि अपने पति के आने से पहले वह कामोन्माद की चरम सीमा पर पहुँच कर शांत हो जाये अतः मैनें अपना काम जारी रखा। उसकी साँसें और तेज हो गयीं और उसने एक सिहरन के साथ मुझे जकड़ लिया। उसके स्तन मेरी सीने पर बहुत अच्छा अनुभव दे रहे थे उसके कोमल नितम्बों के स्पर्श से मेरा लिंग भी बेकाबू हुआ जा रहा था। जब मैनें देखा कि वह मुझसे स्वयं अलग नहीं हो रही है तो मैं उसकी पीठ और नितम्बों को सहलाते हुये बोला “ज्योति जी आप ठीक तो हैं न, आपके पति कभी भी आ सकते हैं उसके पहले आप सामान्य हो जाइये”। मुझे छोड़ने के बजाय उअसने मुझे और कसकर जकड़ लिया और बोली “नहीं”। मैं मुस्कुराता हुआ बोला “ज्योति जी मैं जानता हूँ कि अभी आपकी योनि में रसवर्षा हो रही है। इससे पहले कि आपके पति आपकी पैंटी देखें या फ़िर उन्हें इसकी महक आये आप जाकर इसे धो लीजिये”। मेरी इस बात का उस पर कुछ असर हुआ और वह मुझसे अलग होकर अपने आपको सम्हालते हुये अपना पल्लू उठाकर बाथरूम की तरफ़ भाग गयी। मैनें मुस्कुराते हुये बोला “मैडम, मैं आपके ब्लाउज़ का इन्तज़ार कर रहा हूँ”। ज्योति अभी बाथरूम के अन्दर थी, क्योंकि उसका पति अभी तक नहीं आया था मैने मुख्य दरवाज़े का कुण्डा खोल दिया ताकि उसे किसी प्रकार का शक न हो। थोड़ी देर में उसका पति आया और मुझे देख्कर थोड़ा मुस्कुराया फ़िर ज्योति को आवाज़ लगाई। ज्योति बाथरूम से बाहर निकलकर मुझे ब्लाउज़ देते हुये बोली “मास्टर जी क्या आप आज शाम ५ बजे से पहले इसे ठीक करके दे देंगे”। मैनें कहा “ठीक है मैडम, मुझे मालूम है कि आपको यह पार्टी में पहनना है”। यह कहते हुये मैनें उसे आँख मारी, उसका पति यह सब नहीं देख पाया क्योंकि वह मेज़ पर रखे सामान को व्यवस्थित करने में व्यस्त था। ज्योति ने बड़ी सहजता से मेरी इस हरकत को नज़र अंदाज़ कर दिया। मैनें अपना सामान उठाया और बाहर जाने लगा। दरवाजा बन्द करने आती ज्योति को मैने फ़िर से शरारती ढंग से आँख मारी जिसे देखकर वह भी हल्का सा मुस्कुरा दी।

(क्रमश:…)

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