Thursday, June 5, 2008

दूसरा पति

सब दोस्तों को दशहरे की शुभ कामनाओं के साथ मेरी एक रसीली कहानी का ये तोहफा दे रहा हु..
अब इस कहानी के बारे मे..वैसे ये कहानी नही है एक सच्ची घटना है..मेरा एक दोस्त है.हम दोनों एक ही शहर के रहने वाले है..और पिछले १५ साल से दोस्त है. हम दोनों को एक साथ ही नौकरी लगी थी..वो मार्केटिंग मे था इसलिए उसे ज़्यादातर टूर पर रहना पडता था.जबकि मै ऑफिस मे ही था.. उसका नाम है विनोद (असली नाम नही). ये कहानी है आज से ८ साल पहले की..उस वक्त मै किराये के घर मे रहता था और वो ख़ुद के फ़्लैट मे जो उसने शादी के बाद ख़रीदा था..उसकी शादी मेरी शादी से पहले हो चुकी थी..लेकिन हम लोग हर शनिवार को उसके ही फ़्लैट मे मिलते थे..क्युकी मै कुछ दोस्तों के साथ रहता था..विनोद की परिवार मे कुल तीन सदस्य थे विनोद उसकी पत्नी सरिता (नाम बदल दिए है) और उसका एक ३ साल का बेटा, मै शनिवार और रविवार उसके परिवार के साथ ही बिताता था..सरिता भाभी भी मुझसे सगे देवर जैसा ही बर्ताव करती थी. मै उसके घर मे पुरा दिन बिताता था..ताश खेलना..या फ़िर हँसी मज़ाक करना..मेरा खाना पीना सब वही होता था...
एक शनिवार मै सुबह उसके घर पहुँचा..दरवाजे की बेल बजाई...मै विनोद से मिलने ही गया था.. दरवाजा सरिता भाभी ने खोला. उन्होंने मुझे जल्दी से अन्दर बुला लिया और मुझे ड्राइंग रूम मे बैठने के लिए कहा...मैंने मेह्सुर किया की घर मे और कोई नही है..मैंने विनोद के बारे मे पूंछा ..तो सरिता ने कहा की वो तो कल शाम को ही अचानक किसी जरुरी काम से अपने पुश्तैनी शहर मे गया है..कुछ ज़मीन का मामला है..और सब कुछ थिक करके सोमवार को कोर्ट मे जाना है..और लड़का पड़ोसी के बच्चे के जन्म दिन के लिए उनके साथ पिकनिक पर गया है..
सरिता ने मुझसे पूछा "चाय पियोगे?" और बगैर मेरा जवाब सुने किचेन मे चली गई. और फ़िर चाय के दो कप ले कर आयी
"असल मे मै ख़ुद के लिए चाय बना रही थी." कहते हुए उसे टेबल पर रखा और ख़ुद सोफे पर बैठ गई और दोनों के कप मे चाय बनने लगी.
"इतनी जल्दी कैसे चाय बना लिया तुमने" मैंने अचरज से पूछा.
"अरे संजय तुम्हारे आने का यही तो वक्त है..और मुझे मालूम था तुम जरुर आओगे" उसने मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए तिरछी नज़र से देखा., मुझे वो आज कुछ ज्यादा ही खुश नज़र आ रही थी.और वो मुझे खुश करने के लिए कोशिश कर रही थी...मैंने उसकी तरफ़ अब ध्यान से देखा उसने काले रंग की सलवार और एक खुले गले का कमीज़ पहना था..जिसके ऊपर के बटन खुले थे....और वहाँ से उसके दोनों चुन्चियों की घाटी दिखायी दे रही थी..इस तरह के कपड़े वो कभी भी घर मे नही पहनती थी.. दुपट्टा भी इस तरह लिया था की वो दोनों स्तनों को ज्यादा उभार रहा था.. घर पर वो साधारणत: सादे कपड़े ही पहनती थी.
हम लोग चाय पीते हुए हम लोग इधर उधर की बातें करने लगे..उसके पति, बच्चा और परिवार..फ़िर मेरे परिवार की बातें की फ़िर वो उठी और टी वी के पास गई..उसे चालू किया और फ़िर सोफे पर मेरे पास ही बैठ गई..मुझे उनके शारीर की मादक खुशबू महसूस हो रही थी..हम बातें करते हुए टी.वी. देख रहे थे.
ऐसे ही बाते करते हुए हम टी वी देख रहे थे..तभी मैंने उसका हाथ अपने हाथ के ऊपर महसूस किया..मुझे पहले तो विश्वास ही नही हुआ..लेकिन कुछ देर के बाद उसने मेरे हाथ को दबाना शुरू किया..और सहलाने लगी..मेरे पुरे शरीर मे सनसनाहट दौड़ गई..उसने थोड़ा और दबाया...मै घबरा सा गया..और मैंने जल्दी अपना हाथ हटा लिया..मै नर्वस होने लगा...मैंने उठ कर टेबल पर से मेरा सिगरेट का पाकिट उठाया और एक सिगरेट निकालकर जलाया और तेज़ कश लेने लगा..वो बैठी थी.. उसके चहरे पर कशमकश दिख रहा था और वो थोड़ी सी मायूस भी दिखी..हम दोनों ही कुछ देर खामोश रहे..फ़िर उसने कहा.."संजय मै तुमसे एक बहुत जरुरी बात कहना चाहती हूँ. तुम मुझे ग़लत मत समझना" और वो उठ कर मेरे सामने एकदम क़रीब आ कर खड़ी हो गई..उसकी साँस बहुत तेज चल रही थी..दुपट्टा सीने से फिसल गया था और गोल गोल चुचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी..मै कुछ समझा नही..मैंने कहा "कहो..मै इंतज़ार कर रहा हूँ." वो अचानक मेरे एकदम क़रीब आ गई.और मेरे सीने से लगकर कहा.."संजय मै तुम्हे चाहती हूँ., तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो ये बात मै अब नही छुपा सकती..मै तड़प रही हूँ." इतना कह कर उसने शर्म से सिर नीचे झुका लिया..मै कुछ भी नही कह पाया..मै उसकी तरफ़ देखता रहा... उसे शर्म आ रही थी और वो मुझसे नज़रे चुरा रही थी.मैंने पूछा "ये कब से हुआ?" उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रखा और कहा जिस दिन मैंने तुम्हे पहली बार देखा था उसी दिन से.." उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे थे..मेरी समझ मे नही आ रहा था की मै क्या करूँ .उसने कहा "प्लीज मुझ से दूर मत जाना..मै मर जाउंगी.मुझे अपना लो संजय.." और वो मुझसे और चिपक गई.उसकी चुचियाँ मेरे सीने से टकरा रही थी..अब मैंने भी अपनी बाँहों का घेरा उसके चारो तरफ़ डाला और उसे अपने से और ज्यादा चिपका लिया..मेरे लंड मे हरकत होने लगी थी..वो भी पूरे जोश मे आने लगा था.. मेरी उँगलियाँ उसके खुले बालों के अन्दर खेलने लगी थी...मै सरिता के बारे मे बता दूँ..वो एक खूबसूरत औरत है और उसकी उमर थी क़रीब 33 -35 , गोरा रंग..मांसल बदन..सभी गोलाईयां मादक थी...कहने का मतलब ये की किसी भी मर्द को लुभाने वाला व्यक्तित्व था..सेक्सी होंठ..आंखे शराबी..और फूले हुए गाल.. उसने अपने आप को अभी तक 25 से आगे बढ़ने नही दिया था..बहुत ही छरहरा बदन था ..उसके लंबे काले बाल..और उसकी उंचाई शायद ५ फ़ीट और ३ इंच होगी.. उसके बदन का मुख्य आकर्षण था उसकी नोंकदार चुन्चियां और उसक उभरा हुआ नितम्ब..ऊऊऊउह् उसकी पतली सी कमर..एक बच्चे की माँ होने के बाद भी पेट एकदम सपाट.. लगता जैसे अभी भी कुंवारी है..काली आंखें और उनमे काजल..अब मई उसके बारे मे सोचने लगा .मैंने नज़र झुका के देखा ..उसके गुलाबी पतले होंठ कंप रहे थे...ऐसा लग रहा था की शराब मुझे बुला रही है..मैंने उसके चहरे को ऊपर उठाया और पूंछा "सरिता क्या तुमने इस रिश्ते के बारे मे सोचा कभी??" उसने वैसे ही जवाब दिया .."हाँ क्यों नही..100 से भी ज्यादा बार सोचा मैंने.".मैंने कहा.."लेकिन मेरी भी शादी तय हो चुकी है..और तुम हरा पति और बच्चे है...फ़िर ये सब कैसे हो गया?" "मुझे नही मालूम संजय..लेकिन तुम्हारे बिना मै अधूरी हूँ... मै क्या करूं? .उसने जवाब दिया..लेकिन ये हुआ कैसे? " मैंने पूंछा शरमाते हुए उसने कहा "वक्त आने पर बता दूंगी".मैंने कहा "सरिता मुझे भी तुम अच्छी लगती हो..प्यारी लगती हो..ऐसे ही मेरी बाहों मे रखूँ मेरा भी दिल करता है.. लेकिन मै तुम्हारी शादिशूदा जिन्दगी मे आग नही लगाना चाहता था.. .क्युकी मै तुम्हे प्यार करता हूँ..कहते हुए मैंने उसके गुलाबी होंठों पर मेरे होंठ रख दिए..और सरिता ने तुरंत ही मेरे होंठों को अपने प्यार का जवाब देना शुरू किया..वो मेरी बांहों मे थी..और उसके स्तन मेरे सीने मे दब रहे थे
..मैंने उसे कस के जकड लिया.उसका बदन बहुत ही मुलायम था..नरम एकदम रुई की तरह..अब मेरे सहन का अंत हो गया था..मेरा लंड पूरी तरह जोश मे आ चुका था..मै उसके कमर को सहला रहा था कितनी नरम ...ओह्ह जैसे कोई सिल्क का बदन हो..मेरे हाथ धीरे से उसकी चुन्चियों के ऊपर आ गए..मैंने उसके कमीज़ के ऊपर से उन्हें सहलाया..अभी भी हमारे ओंठ और जीभ चुम्बनो का आदान प्रदान कर रहे थे.. .और उस चुम्बन मे प्यार की गरमी थी... मेरे हाथ स्तनों पर जाते ही उसने हमारे बीच थोड़ी जगह बना दी ताकि मेरे हाथ उसके गदराये स्तनों को ठीक से पकड़ सके..जैसे ही मैंने उन्हें थोड़ा जोर से दबाया उसके मुह से आह्ह,,इस..स्स.स्.स्...की आवाज़ निकली.. मै बहुत हलके हलके दबा रहा था..और मेरी जीभ उसके मुँह मे डाल दी थी..वो मेरे जीभ को चूसने लगी थी..मेरे हाथों ने उसकी मद मस्त चूचियों पर अपना कब्जा कर लिया था..और उसके निपल कड़े होने लगे थे..मै समझ गया वो अब तैयार हो चुकी थी.. .मैंने उसकी तरफ़ देखते हुए पूंछा "क्या मै इन्हे देख सकता हूँ.? " उसने मेरी तरफ़ देखा और कहा "ऐसा क्यों सोच रहे हो..मै तो पूरी तुम्हारी हूँ.तुम जैसा चाहो प्यार करो " मैंने कहा "रानी यही तो प्यार का तरीका है..और मैंने अब जोर से उसके स्तन को दबा दिया....उसके मुँह से एक कराह निकली..ओह्ह संजय.. आह्ह.. लेकिन उसने अपनी चूची मेरे और क़रीब ले आयी मैंने उन्हें अब काफी जोर से मसलना शुरू किया और बदले मे उसने मेरे होंटों को काट लिया..उसकी चून्चियाँ बहुत ही सख्त थी.मख्खन की तरह..उसने अपनी जीभ मेरे मुँह मे डाल दी थी..मैंने उसके होंटों को चूमते हुए फ़िर पूंछा "सरिता क्या ये ठीक है?" "मुझे नही मालुम, लेकिन अब मै नही रूक सकती..हमे अब नही रूकना चाहिए.. " उसने कहा. मैंने अब उसके कमीज मे हाथ डालने की कोशिश की..लेकिन जगह नही थी क्युकी वो बहुत ही कसी हुयी थी..मैंने उसके पेट पर हाथ फेरा..उसने अपने
दोनों हाथ पीछे ले जा कर उसका जिप खोला मैंने अपना हाथ अन्दर डाला और उसके चिकने पेट पर हाथ फेरने लगा..पेट के नीचे का हिस्सा काफी सेक्सी था..मै सहलाने लगा और उसके मुह से अब सीत्कार निकल रही थी..
मेरे हाथ अब उसके स्तनों पर पहुँच चुके थे..उन्हें दबाते हुए मैंने उसका कमीज़ पूरा निकाल दिया.. काले ब्रा मे उसके बड़े बड़े स्तन आधे से ज्यादा बाहर निकले हुए थे..मै अब नियंत्रण से बाहर हो रहा था..मैंने उसके ब्रा का हूक निकालने की कोशिश मे जोर से खीचा और उसे तोड़ दिया..अब उसकी धुधिया चूची पूरी नंगी थी..निपल के चारों तरफ़ का भूरे रंग का वो घेरा उफ्फ्फ्फ़..मै तो टूट पड़ा और उसका एक निपल मुँह मे ले लिया उसने मेरा सिर अपने सीने मे दबाते हुये आह्ह..उउउम्म्म्म..ओह्ह..स्.स्.स्.स्.स्.स्. करने लगी..मेरा लंड पैंट के अन्दर तड़प रहा था....कहा उफ़ संजय.तुम्हारे इसी प्यार के लिए तो मै बेचैन थी..मुझे अपनी मज़बूत बाँहों मे पीस डालो..कहते हुए वो मुझसे चिपटने लगी..उसके मम्मे और गांड मुझे पहले से ही पसंद थे..उसे दबाते हुए मैंने फ़िर से पूंछा सरिता इस तरह के रिश्ते का क्या होगा ये सोचा तुमने? ..उसने कहा..अब मुझसे कुछ मत पूंछो...मुझे प्यार करो..सिर्फ़ प्यार..उसकी आवाज़ मे एक मदहोशी थी..उसकी चुन्चियों को मसलते हुए मै उसे चूमता जा रहा था..अब मैंने अपना चेरा निचे ला कर उसकी चुन्ची की निपल को मूंह मे लिया और जोर से चूसने लगा..वो तो पागल जैसी हो गई..उसने कहा..संजय और जोर से..आह्ह...माँ...ई.ई.ई.ई...उउउफ्फ्फ़.. , उसके बड़े बड़े स्तन मेरे हाथों मे थे और मै उन्हें जोर से मसलता जा रहा था...और बारी बारी से निपल को चूस रहा था..मैंने अब उसे अपने गोद मे उठा लिया और उसके बेड रूम मे ले जाकर..बेड पर लिटा दिया..वो ऊपर से पुरी नंगी हो चुकी थी..उसने मेरे शर्ट के बटन खोल के निकल दिए और मेरे सीने को चूमने लगी..फ़िर मेरे पैंट के बटन खोले..मैंने उसे नीचे निकल दिया..मैंने देखा की मेरा लंड आज असाधारण फूला हुआ था..सरिता ने मेरे अंडरवियर के ऊपर से उसे सहलाया..और कहा..संजय..एही है जिसके लिए मै तुम्हारी दीवानी हो गई हूँ..और उसे अंडरवियर के ऊपर से चूमा..फ़िर अंडरवियर नीचे खींचा और मेरे लंड को बाहर निकला.."उफ़ कितना मोटा है..इधर मेरे हाथ उसके पेट के नीचे पहुँच गए थे..मैंने और नीचे हाथ ले जाकर उसकी चूत के ऊपर रखा..और उसे मुट्ठी से दबाया..उसके मुह से एक सिस्कारी निकली..मैंने उसका सलवार खोल के निकाल दिया..अन्दर उसने अन्दर पैंटी नही पहनी थी..इसका मतलब वो आज मुझसे चुदवाने के लिए तैयार ही थी सरिता मेरे लंड से खेलने लगी थी..उसकी चमडी को आगे पीछे करते हुए उसने सुपाड़े को किस किया..फ़िर जीभ से छठा..मैंने कहा कभी मुँह मे लिया है..उसने कहा नही.मैंने पूंछा "विनोद का भी नही?' उसने कहा "उसका हाथ मे पकड़ के मुँह तक ले जाते जाते ही उसका सब पानी निकल जाता है.."मै उसकी बेताबी का कारण समझ गया..अब सरिता ने मेरा लंड मुह मे लिया और चूसने लगी..मोटा होने के कारण पूरा सुपादा अन्दर नही ले पा रही थी..इधर मैंने उसकी सलवार घुटनों के नीचे तक निकाल के उसकी चूत मे हाथ लगाया उसने अभी तक पैर चिपका के रखे थे इसलिये मेरा हाथ दरार तक ही पहुंचा..ऊह..उसने चूत के पूरे बाल आज ही साफ किए थे..एकदम चिकनी चूत..मैंने उसके पैरो को फैलाया.और मेरी ऊँगली से उसके दाने को सहलाया..चूत से पानी निकल रहा था..पूरी गीली थी चूत..उसके मुह से आह्ह..ओओओह..की आवाज़ निकलने लगी..अब उसने ख़ुद ही अपनी सलवार को पैरो से निकल दिया और पूरा पैर फैला दिया..मुझे अब उसके चूत को सहलाने मे आसानी हो रही थी..इधर मेरा लंड उसके मुह मे और ज्यादा सख्त और मोटा होता जा रहा था..मुझे लगा इसी तरह चुसाई जारी रही तो मै अभी झड़ जाऊंगा.. मैंने अपना लंड उसके मुह से बाहर निकाला और उसके पैरों के बीच मे आ गया
अब उसकी चूत मेरे सामने थी..उफ़ क्या चूत थी..मैंने अभी तक ऐसी सेक्सी चूत किसी कुंवारी की भी नही देखी थी..गुलाबी दरार..उसे मैंने उँगलियों से फैलाया..चूत के रस से सराबोर वो छोटा सा लाल छेद..मैंने झुक कर जैसे ही अपने होठ वहा रखे. सरिता उछल पड़ी..उईई..मैंने हलके से जीभ से उसके रस को चाटा..और जीभ की नोंक को कडा करके चूत के दाने को सहलाया..सरिता मचलने लगी.मैंने ऊपर हाथ करके उसके निपल को उँगलियों से मसलना शुरू किया और मेरी जीभ उसकी चूत से खेलने लगी..इसी तरह थोड़ी देर करते ही..सरिता कहने लगी..और अन्दर..और अन्दर...आह..ऊह्ह..तेज़.ज़.ज़.ज़..आह ऐसा मुझे कभी नही मजा आया..संजय..मै जानती थी सिर्फ़ तुम ही मुझे तृप्त कर पाओगे..आह्ह..उसका शरीर अकडने लगा..साँस तेज़ हो गई..मेरे सिर को चूत मे दबाने लगी..और फ़िर..अहह.ह.ह.ह.ह..मेरा हो रहा है..संजय.य.य.य.य.करते हुए उसने बड़े अजीब तरह से कमर को ऊपर उठाया ऐसा उसने दो तीन बार किया..और फ़िर शांत हो गई..

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........raj.........

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