हमारे भैया के मना करने के बाद अगले दिन हम बहुत उदास थे। हमारी उदासी शाम को आदित्य के आने पर भी बरकरार थी। हमारे मुम्बई आने के बाद आज पहली बार ऐसा हुआ की भैया देर से घर आने वाले थे। मै और आदित्य घर में अकेले थे। हम तो कल के वाक्या से बहुत उदास थे। आदित्य हमारी उदासी भाँप गया और हमसे उसका कारण पूछ्ने लगा। पहले पहल तो हमने कुछ बताने से मना कर दिया परन्तु उसके बहुत प्यार से पुछने पर और लगातार पूछने पर हमने सब कुछ बता दिया। इस पर आदित्य एक दम चौक गये। वे बोले की हमारे भैया भी अजीब हैं। आखिर रंगमंच में बुराई क्या है। उनकी बात सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा और उम्मीद भी जागी कि शायद कुछ हो सकता है।
फ़िर आदित्य बोले -
देखो क्षमा! क्योंकि तुम्हारे भैया ने मना कर दिया है, तो मैं तुम्हारी प्रत्यक्ष रूप में तो सहायता नहीं कर सकता, परन्तु तुम्हें अपने एक मित्र से परिचय करवा सकता हूँ जो रंगमंच से सम्बन्ध रखता है। जो कुछ करना है तुम्हे खुद करना है।
मैं तो खुशी से उछल गयी। मैने तुरन्त ही हामी भर दी। अगले दिन भैया के जाने के बाद एक मयंक नाम का पुरुष हमारे घर आया। आदित्य ने बताया कि मयंक उनका मित्र है और उसने पूना से एक्टिंग स्कूल से कोर्स किया है। अब तो मेरा मन में खुशी के मारे पागल सा हो रहा था। मै सोच रही थी कि शायद मुझे मेरा लक्ष्य मिल गया है।
मै उन लोगों के लिये चाय लायी, फ़िर हमारी बातें होने लगी।
मयंक - चलिये ये परिचय आदि तो बहुत हो गया, कुछ काम की बात की जाए। क्षमा तुम रंगमंच का अभ्यास कहाँ करोगी, अपने घर पर या मेरी कार्यशाला में।
मै एकदम सोच में पढ गयी। बहुत सोच विचारकर मैने निश्चय किया कि मयंक को अपने घर ही बुला लिया जाये। फ़िर मैने मयंक से कहा कि अगर उन्हें परेशानी ना हो तो क्या वे मुझे सिखाने यहीं आ सकते हैं। मयंक बोले कि कोई बात नहीं और हमारी ट्रेनिंग आज ही से शुरु होगी। इतने में आदित्य बोले कि उन्हें काम पर जाना है और वे चले गये।
अब घर पर मै और मयंक थे।
मयंक - तुमने पहले अभिनय किया है।
मैं - हाँ बहुत बार। हमारे विद्यालय के वार्षिकोत्सव में हर साल मैं अभिनय करती थी।
मयंक - बहुत अच्छी बात है। तब तो तुम्हारा अभिनय के प्रति बचपन से ही रुझान है। परन्तु विद्यालय स्तर पर तो ज्यादातर बचकाने नाटक होते हैं, इसके अलावा अभिनय का कोई तजुर्बा।
मैं - हमारे घर में किसी को हमारा अभिनय करना पसंद नहीं है तो विद्यालय के अतिरिक्त तो हमारा कोई अनुभव नहीं है।
मयंक - कोई बात नहीं हम अभिनय के प्रथम चरण से प्रारम्भ करेंगे। चलो सर्वप्रथम तुमको एक माँ का अभिनय करना है जिसका लङका अभी अभी युद्ध में मारा गया है।
इसके पश्चात उन्होंने मुझे संवादो का पुलिन्दा दे दिया। मैने अपनी पूरी मेहनत लगा कर अभिनय किया। कुछ बार गल्तियाँ हुई तो मयंक ने मुझे सही करा और इस प्रकार ४-५ घंटे की मेहनत के बाद मैने पूरा दृश्य एकबार में कर दिया।
इसके पश्चात तो यह सिलसिला चल पङा। हर रोज ४-५ घंटे की मेहनत और मैने कई किरदारों को जी लिया।
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