Sunday, June 1, 2008

जुनून भाग १ - मुम्बई आगमन

इस कहानी की शुरुवात अगस्त १९९८ से होती है जब मैं बिहार के एक छोटे से शहर से अपने भैया के पास मुम्बई आई । इसी साल मेरी BA की परिक्षा खतम हुई थी । मेरा मुम्बई आने का एक ही मकसद था कि मैं stage कलाकार बन जाऊँ । बचपन से ही मेरी कला में बहुत रुचि थी। हमारे विद्यालय के वार्षिकोत्सव में हर साल मै नाटक में अभिनय करती थी।

नाटक के पात्र का विशलेषण करना फिर उस पात्र को नाटक खतम होने तक अपने जीवन में जीना, मानो यही मेरे जीवन क एक मात्र लक्ष्य था। इस प्रकार बचपन की रुचि कब मेरा जुनून बन गयी मुझे पता ही नहीं चला। और अब मै सपनों की नगरी मुम्बई में थी अपने सपनो को साकार करने के लिये।

मुम्बई पहुंचने के बाद मेरे भैया मुझे अपने खार स्थित घर में के गये। उस घर में उनके साथ उनका एक मित्र भी रहता था। वह मुम्बई में किसी कम्पनी में बहुत उँचे पद पर कार्यरत था। जब हम घर पहुँचे तो शाम ढल चुकी थी और मेरे भैया के मित्र घर आ गये थे। दिखने में वह काफ़ी आकर्षक थे और उनकी कद काठी भी काफ़ी अच्छी थी। मेरे भाई का घर दूसरी मंजिल पर था इसलिये मेरे भैया के घर के अन्दर आने से पहले मै घर मे पहुँच गयी। मुझे दरवाजे पर देख कर मेरे भैया के मित्र पहले तो एकदम सकपका गये। शायद उन्हे मालूम नहीं था। फ़िर एकदम उनकी आँखों मे एक अजीब सी चमक आ गयी। वे मेरे पास आकर बोले - आपको किससे मिलना है ? उनके शरीर के हावभाव देखकर मेरे पूरे शरीर में एक सिरहन सी दौङ गयी। मै एकदम घबरा गयी और् कुछ बोल ना पाई। पता नहीं क्यों अन्दर से मुझे उन आँखों की चमक में कुछ अजीब लगा। इतने मे मेरे भैया ऊपर आ गये और उन्होने अपने मित्र से मेरा परिचय कराया। जब मेरे भैया के मित्र, जिनका नाम आदित्य है, को पता चला की मै उनके मित्र की बहन हूँ, उनकी आँखों मे फिर वही अजीब सी चमक आ गयी। ऐसा प्रतीत हो रहा थ मानो उन्हें बहुत बङा खजाना मिल गया हो। खैर लम्बे सफर के कारण हम बहुत थक गये थे तो हम सोने चले गये।

अगले दिन मानो सब कुछ सामान्य हो गया। हमारे भैया और आदित्य दोनो ही सुबह सुबह काम पर चले जाते हैं । हमने उनके जाने के बाद अपना पूरा दिन आराम करने और घर के आसपास विचरण में व्यतीत किया। पूरा अगस्त महीना इसी प्रकार निकल गया।

ईसके पश्चात हमें यह लगा की अब काफ़ी मौज मस्ती हो गयी है और हमें अपने मकसद की और अग्रसर होना चाहिये। हमारे भैया तो काम पर जा चुके थे तो हम उन्के आने का इंतजार करने लगे। शाम को लगभग ७:३० की बात है, हमारे भैया और आदित्य दोनो बैठक में बैठे थे। हमने दोनो को चाय दी और भैया को हमारे मकसद के बारे में बताया। हमारे भैया तो पूरी बात सुनकर कुछ सोचने लगे परन्तु आदित्य एकदम बोले -

अरे कुनाल!  तुम्हारी बहन तो बहुत समझदार है। आजकल जब हर लङकी सिनेमा और माडलिङ्ग मे जाना चाहती है तुम्हारी बहन कला की सेवा करना चाहती है। यह तो बहुत अच्छी बात है।

पर हमारे भैया कुछ नहीं बोले और उन्होने बात को वहीं छोङ दिया। रात में जब हम सोने जा रहे थे तो हमारे भैया हमारे कमरे में आये और बोले की ये नाटक आदि सब कुछ बेकार है अगर हमें कला का शौक है तो हम MA(Fine Arts) करले। हमारे तो मानो सब कुछ लुट गया। हमारे सपने बिखर गये और हम रात भर रोते रहे।

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