Sunday, March 16, 2008

हवालात मे चुदाई

हवालात मैं चुद गई"
उसदीन कुछ अच्छा नही लग रह था। सुबह से ही मन् में भारीपन लग रहाथा. ऐसे ही अलसाई हूई अपने रुम में सोयी पडी थी. काम करने में जीं नहींलग रह था. तभी ग्ली में शोर होने लगा. अपने पलंग से उठकर बरामदे कीखिड़की से ग्ली में झाँकने लगी.बाबु के माकन के सामने भीड़ एक्कठी हो रही थी. क्या हुआ होगा सोचकरअपनी आंखें उनके गेट पेर गडा दी. भीड़ में फुसफुसाहट हो रही थी. तभीखिड़की के सामने से एक आदमी गुजरा तो उससे पूछ लीया, "आरे भैया, क्या होगया?"आदमी ने चलते-चलते जवाब दीया, "किसी ने बाबु को चाक़ू मार दीया."यह सुनकर मैं डर्र गयी. दीन-दहाड़े ग्ली मे हत्या. उफ़! क्या हो गया है इसदुनीया को. बाबु से हमारे घरवालों की जमती नही थी. अब घरवाले कौन?एक मेरा मरद और दूसरी में. अभी तीन-चार दीन पहले ही मेरे मरद,का झगड़ा बाबु से कुछ लें- दें को लेकर हो गया था. लेकीन इससे क्या?आखीर ग्ली में किसी की हत्या हो तोः बुरा तोः लगता ही है.मैं मन् ही मन् डर्र रही थी. सोच रही थी की श्याम जल्दी घर आजाये तोअच्छा है. लेकीन उन्हें तो शाम को ही आना था. दुसरे गांव गए हुये थे. ऐसाही बोल कर सुबह जल्दी निकल गए थे.थोड़ी देर बाद वापस खिड़की खोल कर बाबु के घर की और झाँका तोः देखाआदमी तोः ज्यादा नही थे बल्की ६-७ पुलिस वाले जरूर खडे थे. अब हत्या हूईहै तोः पोलीस वाले तोः आएंगे ही. तभी देखा ३- ४ पुलिसवाले मेरे घर कीतरफ आ रहे है. मेरा मन् और खराब होने लगा. पोलीस वाले मेरे घर कीतरफ क्यों आ रहे है? मैं झट से खिड़की बंद करके वापस अपने कमरे की तरफबढने लगी.दुसरे पल ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी. मैं झट से कमरे की जगहअपने घर के मैं दरवाजे की तरफ बढ गयी और गेट खोल दीया. पुलिस वालेधद्धादते हुये घर में घुस गए.मैंने हडब्डाकर उनसे पूछा, "आरे ये क्या कर रहे हो?"एक पोलीस वाला कड़कती आवाज में पूछा, "श्याम कीधर है?"मैंने वापस पूछा, "क्या काम है मेरे मरद से?"तभी दूसरा पोलीस वाला दहडा, "साली, हमसे पूछती है क्या काम है?कीधर छुपा कर रखा है अपने मरद को?"मैं सहमकर बोली, "वो तोः घर पर नही है. दुसरे गांव गए हुये है. शामको आएंगे?"तभी उसने कठोरता से पूछा, "साली, घर में छुपा कर रखा है और बोलतीहै की नहीं है. बता कीधर छुपाया है.""साहेब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ. वो तोः सुबह से ही गए हुये है. लेकीनबात क्या है?"तभी तीसरे पोलीस वाले ने कहा, "तेरा मरद शाम है ना?"जवाब में मैंने अपना सीर हाँ में हिला दीया."साले ने बाबु का ख़ून कीया है."मेरे ऊपर मनो पहाड़ गीर गया. लेकीन सँभालते हुये बोली, "कैसे साहेब? वो तोसुबह से ही यहाँ नही है.""कैसे नही है. बहार कई लोगों ने उसे अभी थोड़ी देर पहले ही उसे भागते हुयेदेखा है. वो कोई झूठ नहीं बोल रहे हैं."मेरी तोः आवाज ही बंद हो गयी. तभी एक पोलीस वाला पूरा घर दूंधने के बादबोला, "इधर तोः श्याम नही है. लगता है साला भाग गया."तोः दुसरे पोलीस वाले ने उससे कहा, "जा साहेब को बता कर आ."
मैं चुप-चाप जमीन पेर बैठ गयी और रोने लगी. वीशवाश ही नही हो रहाथा. जरूर कीसी ने अपना बदला निकलने के लीये झूठ-मूठ पोलीस वाले को कहदीया होगा. श्याम के साथ मेरी शादी को सिर्फ ६ महिने ही हुये थे. इन् ६महीनो में हमने ख़ूब मज़ा कीया. ३-४ महीने तक तोः वो घर से बहार बहुत हीकम वक़्त के लीये बहार निकलता था. हम दोनो दीन-रात बिस्तेर पर, kitchen में,बाथरूम में और यहाँ तक की आंगने में मज़ा लूट ते रहते थे. वक़्त कब कानिकल गया समझ में ही नहीं आया. लेकीन आज..श्याम २५ साल का एक गबरू जवान था. कसरती बदन और थोडा सांवले रंग कालेकीन मजबूत मरद था. बिस्तर पर उसका कोई जवाब ही नही था. उसका हथियारभी उसके बदन जैसा मूसल और लम्बा-मोटा. मेरे बीते भर से बड़ा और मेरीकलाई से आधा. उसके साथ ब्याह होने के बाद में अपने पुरे जीवन को भूल चुकीथी.हाँ. मैं शादी होने के पहले अपने दो-तीन दोस्तो से यारी कर बैठी थी. औरउनके साथ हम्बिस्तर भी. लेकीन श्याम से शादी होने के बाद मैंने कभी भीउनको याद नहीं कीया. अब जो कुछ भी था तोः वोह श्याम ही था.श्याम और मेरे पुराने यारों की नज़रों मे मैं गोरी चिठ्ठी हसीं गुदिया थी.मेरे लंबे-लंबे बाल, मेरे गोरे-गोरे गाल, मेरे मद्मुस्त होठ, मेरे अनार जैसेकड़क संतरे की साइज़ के मुम्मे, भरी हूई झंघे. ऐसा ही कहते थे वोह सुब.और मैं अपनी प्रसंसा सुनकर फूला नही समाती थी.तभी थानेदार की कड़कती हूई आवाज़ ने मुझे जगा दीया, "कहां है उसकी बीबी?"मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आंखें मेरे जिस्म पर गीद्ध की आँखों जैसे चिपकगयी.तभी मुझे एक पोलीस वाले ने पकड़ कर खड़ा कर दीया और बोला, "येही है उसकीबीबी."थानेदार मेरे जिस्म को तौलता हुवा बोला, "कहां है श्याम?"मैंने सहमते हुये कहा, "मुझे नही मालूम. वोह तोः सुबह से बहार गए हुयेहै.""बता दे वर्ना मुझे और भी तरीके आते है." थानेदार ने गरजती हूई आवाज़में पूछा.मैं चुप-चाप खडी रही. बहार भीड़ देख कर थानेदार ने और तोः कुछ नहीबोला लेकीन मैं मेह्शूश कर रही थी उसकी नज़रों को अपने जिस्म में धंसतेहुये. थानेदार अपने आदमियों को कुछ बताने लगा और मुझे घूरते हुये बहारचला गया.शाम की ४-५ बज गयी. पोलीस party अपने थाने चली गयी. मैंने चेन की सांसली. लेकीन रात को ८-८.३० बजे फीर एक पोलीस वाला आया. मुझसे श्याम के बारेमें पूछने लगा. मैंने ना में जवाब दीया."ऐसे कैसे हो सकता है. तू सुबह बोल रही थी ना की वोह शाम को वापस आएगा.अब तोः रात हो चुकी है," पोलीस वाले ने पूछा."उन्होने सुबह ऐसा ही कहा था," मैंने जवाब दीया."लगता है तू ऐसे नही मानेगी. अब तेरे से हाथ-लात से बात करनी पडेगी,"उसने घुड्ते हुये कहा.मेरी धुक-धुक बढने लगी. मुझे श्याम पर ग़ुस्सा आ रहा था. अब तक नही आया.ग्ली मैं एक ख़ून हो गया और बीबी घर में अकेली. लेकीन उसका कोई पता हीनही. तभी फीर सोचा. उससे क्या मालूम की हत्या हो गयी है. अगर मालूम होतातोः दोपहर में ही नही आजाता. क्या उसने ही हत्या..."साली को थाने ले चल," पोलीसवाला अपने साथी से कहा. "साहेब ने कहा है अगरश्याम नही मीलता तो उसकी बीबी को थाने लेकर आना."मैं तो यह सुनकर रोने लगी."चल. चल. ज्यादा नाटक नहीं कर," एक पोलीस वाला मेरी कलाई पकड़े हुये बोला.और फीर जोर-जबरदस्ती से मुझे पोलीस-वन में बैठा दीया और थाने पहुंचगए हम लोग."क्या हुवा श्याम नही मीला?" थानेदार ने मुझे देखते हुये ही पूछा.
जवाब में ना में सीर हीला दीया पुलिसवाले ने."चल साली को लाक-उप में बंद कर. अपने आप ही इसका मरद आएगा इसकोछुड़ाने," थानेदार ने अपनी seat पर बैठे बैठे कहा.मुझे लाक-उप में दाल दीया जोकी उसकी सात के सामने ही थी. पोलीस स्टेशन उसथानेदार के अलावा ५ हवालदार थे. कोई थाने में अंदर आ रहा था तोः कोईबहार जा रहा था. रात के ११ बजने में आ रही थी. इन् २ घंटों मेंथानेदार मुझे १०० बार घूर चूका था. मुझे अपनी आंखों से तौल रहा था.ऐसे मर्दों की आँखें मुझे पता है कैसी होती है. बाज़ार जाते हुये यामंदीर जाते हुये ऐसी ही नज़रों का सामना में कब से कर रही हूँ. लेकीन तबऔर आब में सिर्फ एक फरक था. तब मैं अपनी मर्जी की मालीक होती थी और अब्बहवालात में बेबस कैदी की तरह थाने में.तभी थानेदार ने अपने हवाल्दारों को बुलाया और २-२ की २ team बाना कर एक कोमेरे घर के पास छुपने को कह दीया और दुसरे को बस्स स्टैंड जाने को कह दीया.साथ ही हिदयात देदी की सुबह तक निगरानी रखनी है. अब बचे एक हवालदार केकान में कुछ कहा और वोह हवालदार भी बहार चला गया.थाने में मैं और वोह थानेदार दो ही बचे थे. हवालात में और कोई कैदीभी नही था. मुझे उसके इरादे अच्छे नही लग रहे थे. वोह अपनी कमीज उतारकर कोई filmi गाना गाते हुये अपनी seat पर बैठ गया और मुझे घूरने लगा.अब थानेदार मुझे लगातार घूर रहा था और उसके होंठों में एक कुटीलमुस्कान आ रही थी और जा रही थी.तभी लास्ट वाला हवालदार एक कागज का पैकेट थानेदार के हाथ में पकडा दीयाऔर एक ग्लास और पानी की बोत्त्ले उसकी टेबल पर रख दीया. फीर हवालदारथानेदार का इशारा पाकर थाने से बहार चला गया. थानेदार ने कागज केपैकेट से एक बोत्त्ले बहार निकली."दारु!" मैं मन् में सोचकर कांप उठी. "दारु पीकर थानेदार अकेलेहवालात में और मैं भी थाने में अकेली..."थानेदार ने आधे गांठे में ४-५ पैग बाना कर दारु पी डाली और उठ खड़ाहुवा. उसकी चाल में कोई फरक नही था लेकीन आंखों में दारु का नशा औरवासना दोनो झलक रहा था. उसने मैं गेट के पास जाकर गेट को बंद कीया औरकड़ी लगा दी. अब मेरे हवालात की तरफ आ कर उसका ताला खोल कर मैन गेट परलगा दीया और चाबी जेब मैं दाल ली. फीर मेरी तरफ बढने लगा. मेरी रूहकांप रही थी."बोल कीधर है तेरा मरद."मैं चुप चाप रही."अबे साली, तेरा मरद है की नही?""......""लगता है तेरा मरद नही है. अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.""......."मेरे नजदीक आ कर मेरे हाथों को पकड़ लीया और झुमते हुये बोला, "कीसी काहाथ पकडा नही या हाथ छोड़ कर चला गया."मैंने अपने हाथ को चुडाते हुये कहा, "साहेब आपने पी ली है. अभी बात नहीकरो मुझसे.""वह... क्या idea दी है तूने. अभी बात में time वास्ते नही करने का... अभीकाम करने का...""साहेब छोडो मुझे.""क्या बोली तुम. चोदो मुझे," बड़ी बेशर्मी से हँसते हुये थानेदार बोला."ऐसी गंदी बात करते हुये तुम्हे शरम नही आती..." मैंने वीरोध कीया."अच्छा तुझे मालूम है की क्या गंदी है और क्या अच्छी. यानिके तुझे सुबमालूम लगता है. चोदो... चुदाई... सुब मालूम है तुझे," बड़ी बेशर्मी सेबोलता जा रहा था.मैंने अपने कान बंद कर लीये और मदद के लीये चिल्लाने लगी. तभी एकझन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गलों पर पड़ा."साली. रांड. चील्लाती है. एक तो श्याम का पता नहीं बता रही है औरपूछताछ में चिल्लाती है," कहते हुये थानेदार मेरी साड़ी को खींचने लगाऔर बोला, "चिल्ला. जीतना चिल्लाना है चिल्ला. देखता हूँ मैन कौन आता हैइधर."मैन बेबस चिल्लाना भूलकर अपनी साड़ी को उससे छुडाने मे लग गयी लेकीन उसनेअपने दम पर मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दीया. अब मैन अपने पेतीकोअत औरब्लौस मे उसके सामने रोते हुये खडी थी. अपने हाथो को अपने सीने से लगा कररखा था लेकीन थानेदार ने मेरे एक हाथ को पकड़कर उल्टा मोड़ दीया तोः दरदके मारे अपने दुसरे हाथ से उसको छुडाने लगी. इस्सका फायदा उठाते हुये उसनेमेरे ब्लौसे के सामने के सारे हूक झटक कर तोड़ दीये. अब मेरा ब्लौसे एक-दोहूक के सहारे झूल रहा था.अपने दुसरे हाथ से जब ब्लौस को बचने गयी तोः बेदरद थानेदार ने मेरेपहले वाले हाथ को और जोर से मोड़ दीया. मैन दर्द से कराह उठी और ब्लौस कोछोड़ अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस्सी तरह करते हुये उसने मेराब्लौस और मेरी चोली दोनो को मेरे बदन से जुदा कर दीया. अब मैन अपने दोनोहाथों से अपने दोनो मुम्मो को छुपाते हुये इधर से उधर दौड़ने लगी. लेकीनथानेदार हँसता हुवा मेरे पीछे-पीछे भागता हुवा कीसी भी तरह से हाथको छुदाता और मेरे मुम्मो को मसल देता. मैन चीख कर दया की बीख माँगकर अपने को बचाती और भागती. ऐसे में थानेदार को मज़ा आ रहा था औरमैन रोती हूई इधर-उधर भाग रही थी.थोड़ी देर खेल ऐसे ही चलता रहा. फीर थानेदार ने मुझे छोड़ मेरे जमीनपर पडे ब्लौस और चोली को उठा कर उन्हें सुन्घ्ता हुवा अपनी डेस्क पर गया औरपैग बनाकर और दारु पीने लगा. फीर कुछ रूक कर मुझसे पूछा, "तू भीपीयेगी?""......""आरे पी ले. नशे में बड़ा मज़ा आता है चुदवाने में."
मैन जोर से रो पडी. मेरे आंशु थमने के नाम ही नही ले रहे थे. मैंनेगिद्गीदते हुये कहा, "मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा. क्यो मेरी इज़्ज़त के पीछेपडे हो?""तूने नही बिगडा. तेरे नशीली हुस्न ने बिगाड़ा है मेरा," कहते हुये अपनी पैंटकी चेन पर हाथ रखते हुये बोला, "देख कैसे फाड़- फाडा रहा है लंडवा मेरा.इसका बिगडा है तेरी जवानी को देख कर. अब इसको ठण्डा कर...."उसका लंड पैंट के ऊपर से ही ताना हुवा दीख रहा था. मानो पैंट को फाड़ करबहार आ जाएगा. अपनी जवानी को अब लूटने के करीब देख कर मेरा धीरज जवाबदेर रहा था. मैन अपने को बचने के लीये जोर से चिल्लाई, "कोई है.... बचाओमुझे..."थानेदार दारु की बोत्त्ले पकड़े हुये मेरे पास आया और फीर जोरदार का थप्पड़मारा. इस बार उसने दारु की बोत्त्ले उठा कर जोर से बोला, "चुप होती की साली यामारू इस बोत्ल को तेरे सीर पर."मैन एक दम से चुप्प्प्प्प्प्प.फीर उसने मेरे सीर को पकड़ कर बोत्त्ले मेरे मुहं में लगा दी. मैन अपना मुहंहीला-हीला कर बोत्त्ले से अपने मुहं को हटाने की कोशीश करने लगी लेकीन उसनेजबरदस्ती करके डेड-दो पैग मेरे अंदर उधेल ही दीया. छाती जलने लगी. उबकाईआने लगी. सीर चकराने लगा. पेट गरम हो उठा. पहली बार दारु पेट में गयीथी. चिल्ला रही थी लेकीन थानेदार हंस रहा था.बोत्ल का जो कुछ भी बचा-खुचा था वोह थानेदार ने पी लीया और बोत्ल कोअपनी डेस्क के नीचे लुढ़का दीया. फीर सीधे मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे मुम्मे कोमसलने लगा. दोनो हाथो में मेरे दोनो मुम्मे. आटे की तरह गुन्थ्ने लगा. फोकटका माल जो मील रहा था. दारु अंदर जाने के बाद ऐसे हमले के लीये मैन तयारनही थी. और अपने आप को बचा नही पा रही थी. उसने एक मुम्मे को अपने हाथमें पकड़ दुसरे मुम्मे को अपने होंठों के बीच ले चूसना शुरू कर दीया. मेरेसंतरे उसके लीये चूसने वाले संतरे बन गए.
मैन दारु के झटके खाती हूई अपने हाथ से अपना सीर पकड़े हुये थी. अपनाबचाव भी नही कर पा रही थी. तभी दुसरे हाथ से थानेदार ने मेरेपेट्तिकोअत के नाडे को झटके से खोल दीया. मैन मानो नींद से जाग उठी. ना जानेकितनी ताक़त आयी होगी मुझ में जो थानेदार को अपने ऊपर से नीचे गीरा करउठकर भागने लगी. लेकीन अफ्शोश. खुला हुआ पेट्तिकोअत मेरी टांगों में फँसगया और मुहं के बल धदम से जा गीरी. मेरी रही-सही सारी ताकत खतम होगयी.थानेदार ग़ुस्से में ब्ड्ब्डाता हुवा और गाली देता हुवा मेरे बालों को झटकेदेते हुये मुझे उठाया, "साली मादरचोद. मेरे को धक्का देती है साली. रंडी.अब मैन देता हूँ तेरे को मेरे लंड का धक्का.. साली छीनल. मेरे को धक्कादेती है. अब देखता हूँ कैसे बचती है चुदने से.."उसने मुझे बलों पकड़ कर मेरे चहरे को अपनी और घुमा कर मेरे गलों और मेरेहोंठों को चूमने लगा. मैन २-३ मिनुतेस बाद फीर कसमसाई और छुडाने कीकोशीश करने लगी. लेकीन उसने मुझे अपनी गिरफ्त में रखा और मेरे अनार जैसेकड़क मुम्मो को अपने मुहं में दबा कर चूसने लगा. अब वोह दांतो से मेरेप्यारे-प्यारे गोरे-गोरे मुममो को कटने लगा. जैसे काटा वैसे ही मेरी चीखनिकली. लेकीन उसे क्या परवाह थी. थोडी देर में मेरे एक मुम्मे पर जोर से काटखाया तोः मेरी जोरदार चीख़ निकल गयी."चुप. आवाज़ नही. अबके चीखी ना तोः पुरा तेरा काट के अलग कर दूंगा, सालीरांड," कड़क आवाज़ में बोला थानेदार....!!!सहमकर चुप हो गयी मैन लेकीन सिस्कियां आ रही थी. थानेदार ने मुझे पकड़कर नीचे सुला दीया और अपनी पैंट खोल दीया. अब वोह भी सिर्फ़ अंडरवियर मैं औरमैन भी अंडरवियर में. उसने नीचे झुकते हुये मेरा अंडरवियर एक झटके मेंनीचे खींचा तोः वोह घुटने पर जा कर अटक गया. फीर मेरी टांगो को ऊपरकर उसे बहार निकाल फेंका. अब थानेदार मेरे पुरे नंगे जिस्म को उपर सेनीचे देखता हुआ अपने हाथ से अपने अंडरवियर में पड़े अपने लंड को दबानेलगा."उफ़. क्यया जवानी है तेरी. एक मरद से नही संभल सकती ऐसी जवानी. कितनेमर्दो को अपनी जवानी का रुस पिलाया है तुने," नशे मैं झूमता हुवा अपने लंडको दबाता हुवा बोल रहा था थानेदार.
मैन चुप चाप पडी उसको देख रही थी. दारु की वजह से सीर घूम रहा था.आंखें बार-बार खुल बंद हो रही थी.उसने अपना अंडरवियर निकला और उसका लंड खुली हवा मैं सांस लेने लगा. उसकालंड मेरे श्याम या कहूं मेरे पुराने यारों जीतना ही लुम्बा था यानी बीतते सेबड़ा लेकीन मोटा पुरा ग्हधे की तरह था.....!!!थानेदार घुटनों के बल बैठकर मेरे नंगे सुलगते जिस्म को ऊपर से नीचेचाटने लगा. उसकी जीभ की हरकत और दारु का नशा मेरी रही सही ना-नुकर कोभी बंद कर दीया. वोह अपनी जीभ से मेरे गालों, गर्दन, मुममो, मेरा पेट, मेरीचूत और मेरी जांघों को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर चाट रहा था.लगता था की कई लड़कियों को इसी तरह थाने मैं चोद-चोद कर परफेक्ट खिलाडीबन चूका है. फीर अपनी जीभ को मेरी चूत के पास ला कर अपने लंड को मेरेगालों पर रगड़ने लगा."मुहं मैं ले इसको," थानेदार गरजा."किसको?""अबे साली नखरे नही दीखा. ले मुहं मैं मेरे लाव्दे को." और मेरे मुहं मैंअपने लंड के सुपाङा को फंसा दीया.मोटा लंड कैसे जाता मेरे मुहं मैं."ले साली मुहं मैं. खबरदार अगर तुने इसको दांत गद्य तोः.." थानेदार नेहिदयात भी देर दी.मैन नशे मे अपने मुहं को पूरा खोली और उसका लंड मेरे अंदर जा कर फँसगया. तभी थानेदार लंड को अंदर जाते देख मेरी चूत के दाने को मसलनशुरू कर दीया और अपनी जीभ से मेरे चूत के lips को चाटना. मेरे जिस्म मैंहलचल मचल गयी. अगर लंड मुहं मैं नहीं होता तोः यकीनन मेरी सिस्कारीनिकल पड़ती. अब दोनो ६९ पोसिशन मैं एक दुसरे के लंड और चूत को चूस औरचाट रहे थे.
तभी थानेदार उठा और मेरी दोनो टांगो को घुटने से मोड़कर मेरी जांघों कोफैला दीया और अपना मूसल मेरी चूत के दरवाजे पर रख दीया. मुझ मैंदारु के नशा अपनी पूरी रवानी पर था और लंड अपनी पूरी जवानी पर. उसनेअपना थूक अपने लंड के सुपाङा पर लगाया और एक करारा झटका दीया.सेर्र्र्र्र्र्र...... अध लंड अंदर.जोर की चीख़ नीक्ली मेरी. ऐसे मूसल लंड से पहली बार साबका पड़ा था मेरीचूत का. लेकीन थानेदार को इससे क्यया. उसने मेरे मुम्मे एक हाथ से और एक टांगको दुसरे हाथ से और फीर एक जोरदार झटका.सेर्र्र्र्र्र्र...... पूरा लंड अंदर.मेरी बोलती बंद हो गयी. थानेदार ने अब मेरी दोनो टांगो को पकड़ करदादा-दादा धक्के मरने शुरू कर दीये. इन धक्कों के साथ मेरी सिस्कारियां भीशुरू हो गयी."धीरे... धीरे... जोरसे धक्क्का ना मरो... अह्ह्ह... फट जायेगी... मेरीचूत...प्यार से चोदो... देखो थोडा धीरे... तुम्हारा लंड बड़ा मूसल है...गधे जैसे लंड से गधे जैसे नही चोदो मुझे... उफ्फ्फ... अह्ह्ह..." मेरे मुहंसे ना जाने कहां से लंड, चूत जैसे words नीक्लने लगे. यह उसकी झन्नाटेदारचुदाई का ही असर था."साली.. कितने मर्दो को खा चुकी.. फीर भी कहती है धीरे. धीरे.. रांड.खा मेरे धक्के.. आज से तेरी चूत मैं ही चोदुंगा रोज.. मेरा लंड तेरी चूतका सारा कास-बल नीकाल देगा.. चुदाई क्यया होती है ये तुझे मेरा लंड हीबतायेगा.. चुदा. चुदा." थानेदार जमकर धक्के मरते हुये मेरी चूत मैंअपना लंड पेलता रहा.Full speed. जमकर चुदाई. येही चली १५-२० मिनट तक. मेरी चूत इस बीच अपनेपानी से भरपूर गीली हो चुकी थी. जिससे उसके मूसल लंड को भी आराम से लेरही थी और मज़ा भी ख़ूब आने लगा."है. है. क्यया चोद रहे हो थानेदार.. ख़ूब जबर्दुस्त लंड है तेरा.. ओह्ह.मेरा पानी निकला.. निकला.. निकलाआया." यह कहकर मेरी चूत अन्पा पानी उसकेलंड पर बरसाने लगी. लेकीन उसके धक्के दारु के नशे मैं और बढते गए.मेरी चूत का पानी उसके लंड के नशे को और बढ़ा दीया लगता था. लेकीन मेरेपानी नीक्लने से मेरी जकदन कमजोर हो गयी तोः उसने अपना लंड बहार निकल दीया.उसका लंड और मोटा लग रहा था. मानो मेरी चूत का सारा पानी उसकी पिचकारीमैं चला गया हो.उसने खडे हो कर मुझे बैठा दीया और मेरे मुहं मैं अपनालंड ठूंस दीया. उसके लंड से मेरी चूत की स्मेल आ रही थी. लेकीन मुझे उससमय उसके जैसा लंड कीसी मिठाई से कम नही लग रहा था. सो मैंने गुप्प सेअपने मुहं मैं लेकर चूसना शुरू कर दीया. ५-७ मिनट मैं उसने अपना लंडबाहर नीकाल लीया. तोः मुझे लगा वोह अब झड़ने वाला है. लेकीन मैं गलतसाबीत हूई. उसने मुझे doggy स्टाइल मैं कर मेरी चूत मैं अपना लंड पीछेसे दाल दीया और चोदने लगा.थानेदार ने २५-३० धक्कों के अपना लंड बहार नीकाला और मेरी चूत मैं अपनीदो अंगुली फंसा कर उसकी सारी मलाई अपनी अंगुली मैं लपेट ली और लंड परचीपुद्ने लगा. मैं कुछ सोच पाती उससे पहले उसने अपने लंड को मेरी गांड केछेद मैं फंसा कर एक जोर दार झटका मारा. मेरी चीख़ निकल पडी.
यह चीख़ अब तक की मेरी सबसे जोरदार थी. मेरी आँखों से आंसू थमने कोनाम ही नही ले रहे थे. मैं चीखती हूई उससे गलियन देने लगी,"आरे साले गांडू.....फाड़ दी मेरी गांड.......!!!आरे क्यो मारी. नीकाल मेरी गांड से. लंड को नीकाल मादरचोद...........बहन की गांड मैं दे ऐसे मूसल लंड को॥अपनी माँ की गांड मैं दे अपने लंड को.. नीकाल गांडू.. मर जाऊंगी मैं..नीकाल अपने लाव्डे को.. फट गैईई............ .."लेकीन थानेदार ने मेरे बालों को कास-कास कर पकड़ते हुये मेरी गांड मारनी चालूरखी. मेरी गांड मैं भयंकर दर्द हो रहा था. उसने स्पीड कम की फीर बढ़ायीफीर कम कर दी. इस तरह मुझे कुछ आराम मीला. हल्का-हल्का दर्द हो रहा था.लेकीन हल्का-हल्का मज़ा भी आ रहा था. उसने स्पीड बढ़ायी तोः मज़ा भी बढगया. फीर उसने अपने लंड को बहार नीकला और उसी पोसिशन मैं मेरी चूत मैंफीर से दाल दीया.गांड मैं दरद तोः नही था. साथ ही अब चूत मैं लंड के जाते ही पुरेबदन मैं चुदाई का नशा छाने लगा. तभी थानेदार ने अपने धक्को की फुल्लस्पीड करते हुये अपनी पिचकारी छोड़नी चालू कर दी. उसका फव्वारा धुच से मेरीचूत के अंदर जा रहा था जिससे मेरी चूत भी झड़ने लगी. दोनो निढाल हो करहवालात की जमीन पर लेट गए.मैं बुद्बुदाई, "वाकई मैं तुम्हारा लंड कमाल का है. आज तक कीसी ने भीमुझे ऐसा नही चोदा."थानेदार ने लेटे लेटे ही जवाब दीया, "अब मौका मिलने पर इससे जोरदार चोदुंगातुझे. आज तो हवालात था लेकीन कभी बिस्तर पर मुझसे चुदोगी ना बड़ा हीमज़ा आएगा तुझे.""मैं इंतज़ार करूंगी," मैंने उसके होंठों को चूमते हुये कहा.थानेदार मेरे दोनो मुममो को चूमता हुवा उठा. मेरे ब्लौस और चोली को मेरेपास फेंका और अपने कपडे पहनने लगा. मैं कह्राती हूई उठी. अब दारु कानशा कम हो चूका था. लेकीन चुदाई की मस्ती छायी हूई थी. उठी तोः कदमलाद्खादा रहे थे. गांड पहली बार कीसी ने मारी थी वोह भी मूसल लंड से.चलने के लीये दोनो टांगो को थोडा चौड़ा करना पड़ रहा था जीसे देखकरथानेदार हंसने लगा. मेरे कपडे पहनते ही उसने पोलीस स्टेशन का गेट खोलदीया. मुझे हवालात मैं ही नींद आ गयी.सुबह श्याम की आवाज सुनकर मेरी आंखें खुली. श्याम ने मुझे उठे हुये देखकर कहा, "डरो नही. अब कुछ तकलीफ नही होगी. वोह रंगीला ने जान्भुझ्करमेरा नाम लीया था. लेकीन असली कातील खुद रंगीला ही था. पोलीस ने उसको पकड़लीया है. अब घर चलो."थानेदार मुझे देखकर मुस्करा रहा था. मैं मन् ही मन् सोच रही थी कीहाँ अब तकलीफ नही होगी पर कीसे. थानेदार के मूसल लंड को या मेरी रसीलीचूत को........!!!! !कहानी ख़तम , पैसा हजम !! दोस्तो,आपको आज की कहानी कैसे लगी ज़रूर लिखना

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