Sunday, March 30, 2008

ननद ने खेली होली 1-2

ननद ने खेली होली

सबसे पहले तो मुझे अप सब लोगों का धन्यवाद देना चाहिए की अप ने किस तरह से मैंने अपनी किशोर ननद को ट्रेन किया ....लेकिन अचानक हम लोगों को वापस आना पड़ा| जैसा की तय हुआ था की होली में जब हम लोग आएंगे तब तक उस का इन्ट्र्कोरस मेरा मतलब है इंटर का कोर्स खत्म हो चुका होगा और वो साल भर के लिए हम लोगों के पास आके रहेगीं जब हम उस की अच्छी तरह कोचिंग करायेंगें|

शादी में आप सब को ये भी याद होगा की मेरी ननद गुड्डी ने अपने जीजा जित से भी वादा किया था की ....इस साल जब वो होली में आयेंगे तो वो उनसे जम के होली खेलेगी,और आखिर खेलेगी भी क्यों नहीं, क्यों की उन्होंने ही तो उसकी सील पहले पह्लाल तोडी थी, और उस के बाद जो उसने चलना शुरू किया तो अपने प्यारे भइया और मेरे सेक्सी सैंया के साथ चुदावा के दम लिया. लेकिन वादा होली का इस लिए भी था की जब वो नौवें में थी और जीत उस के जीजा पहली बार होली खेलने आये तो , होली में जीत का हाथ साली के चिकने गाल से फिसल के फ्राक के अन्दर नए उभरते मॉल तक पहुँच गया और एक बार जब जीजा का हाथ साली के मॉल तक पहुँचा जाय, मामला होली का हो, भंग की तरंग का हो, तो बिना रगडन मसलन के ....लेकिन बुद्धू साली बुरा मान गई ....और वो तो जब शादी के माहोल में अपनी उस बुद्धू ननद को बुर के मजे के बारे में बताया तो ख़ुद वो अपने जीजा से सैट और पट गई ....लेकिन ये सारी बातें तो मैं आपको बता ही चुकी हूँ ननद की ट्रेनिंग में ....अब दास्ताँ उसके आगे की ....कैसे होली में हम फ़िर दुबारा उनके , राजीव के मायके गए, और राजीव मेरी ननद कम .गुड्डी के लिए तो ललचा रहे ही थे, मेरी नई बनी बहन और अपनी एक लौटी छोटी साली, मस्त पंजाबी कुड़ी अल्पना और ....उस से भी ज्यादा उस की छोटी बहन कम्मो के लिए, जिसके लिए मैंने कहा था की होली में जब आयेंगे तो ....मैं उस की भी दिल्वौंगी . तो क्या हुआ जब होली में मैं अपने ससुराल गई साजन के साथ और कैसे मनी होली मेरी ननद की ....तो ये साडी दस्ताना ....ननद ने खेली होली ....

राजीव बड़े बेताब थे और बेताब तो मैं भी थी .होली का मजा तो ससुराल में ही आता है ....ननद, नन्दोई, देवर ....और एक तरह से अब वो उनकी भी ससुराल ही हो गयी थी ....नहीं मैं सिर्फ़ उनके माल के बारे में बात नहीं कर रही थी, आख़िर वहाँ मेरी मुंहबोली छोटी बहन अल्पी भी तो थी ....जिसने ना सिर्फ़ उनकी साल्ली का पूरा पूरा हक़ अदा किया था, बल्की मेरी ननद को फंसाने पटाने में भी ....और उसकी छोटी बहन कम्मो ....थी तो अभी कच्ची कली .....लेकिन टिकोरे निकालने तो शुरू ही हो गये थे और जब से उन्होंने एक सेक्स सर्वे में ये पध्हा था की मंझोले शहरों में भी २ फीसदी लडकियां अपना पहला सेक्स संबध १४ से १६ साल की उमर में बना लेती हैं तो बस ....एक दम बेताब हो रहा था उनका हथियार. मैं चिढाती भी थी ....तय कर लो होली किसके साथ खेलनी है मेरी छिनाल ननद गुड्डी के साथ या सेक्सी साली अल्पी के साथ या सबसे छोटी साली उस कमसिन कम्मो के साथ .तो वो हंस के बोलते तीनों के साथ।

और मैं हंस के बोलती लालची ....और गप्प से उनके मोटे मस्ताये लंड का सुपाड़ा गडप कर लेती.

तो हम लोग पहुँच गये होली के ६ दिन पहले ससुराल मैं ये नहीं बताऊंगी की होली के पहले मैंने क्या तैयारी की, भांग की गुझिया, गुड्डी, अल्पी और कम्मो के लिए खूब सेक्सी ड्रेसेस और भी बहोत सारी चीजें ....ये सब मैं अपने सुधी पाठकों के लिए छोड़ती हूँ, होली का किस्सा सुनाने की जल्दी मुझे भी है और सुनाने की बेताबी आपको भी ....हाँ एक बात जरुर ज़रा कान इधर लाइये थोडी प्राइवेट बात है ....ससुराल पहुँचने के पहले बेचारे वो पाँच दिन पूरे उपवास पे थे...मेरी मासिक छुट्टी जो थी, और मैं बस उनसे ये कहती थी अरे चलिए ना वहाँ मेरी ननद बेताब होगी, इस होली में अपने भैया की पिचकारी का सफ़ेद रंग घोंटने के लिए.

सबसे पहले रास्ते में अल्पी का घर पङता था. मैंने कहा, पहले अल्पी के यहाँ रुक लेते हैं, वो बिचारी बेताब भी होगी और उसके लिए जो गिफ्ट लिया था वो दे भी देंगें।

उनकी तो बांछे खिल गयीं...अरे नेकी और पूछ पूछ...और गाडी उस के घर की और मोड़ ली।

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शाम होने को थी, उसके घर पहुँच के हमने दस्तक दी, और दरवाजा खोला कम्मो ने,

सफ़ेद ब्लाउज और नेवी ब्लू स्कर्ट में क्या गजब लग रही थी. राजीव बिचारे उनकी निगाहें तो बस दोनों...अब टिकोरे नहीं रह गये थे....कबूतर के बच्चे...और चोंचें भी हल्की हल्की ...टेनिस बाल की साइज...

अल्पी है....दरवाजे पे खडे खडे उन्होंने पूछा।

और अगर मैं कह दूँ नहीं है तो....बढ़ी अदा से अपने दोनों हाथ उभारों के नीचे क्रॉस कर उन्हें और उभारते हुए वो आँख नचा के बोली, तो क्या फ़िर आप अन्दर नहीं आयेंगें. और फ़िर दोनों हाथों से उनका हाथ पकड़ के बडे इसरार से बोली,

जीजू अरे अन्दर आइये ना,कब तक खडे रहेंगे बाहर और फ़िर आख़िर आपकी सबसे छोटी साली तो मैं ही हूँ ना.

एकदम....और फ़िर साली अन्दर बुलाए और जीजा मना कर दे ये तो हो नहीं सकता. राजीव कौन सा मौका चुकने वाले थे. वो बोले और हम दोनों अन्दर घुस गये।

असल में जीजी एक गाइड कैंम्प में गयी है, कल दोपहर तक आयेगी. मैं भी अभी स्कूल से आई ही हूँ. सोफे पे राजीव के ठीक सामने बैठ के वो बोली. उसने टाँगे एक के ऊपर एक चढ़ा रखी थीं, जिससे स्कर्ट और ऊपर चढ़ गयी. उसकी गोरी गोरी जांघे साफ साफ दिख रही थीं, खूब चिकनी और थोड़ी मांसल भी हो गयी थीं. उसने दोनों हाथों से पकड़ के स्कर्ट थोड़ी नीचे भी करने की कोशिश की पर....

और मम्मी कहाँ हैं...सो रही हैं क्या मैंने पूछा।

जैसे मेरे सवाल के जवाब में फोन की घंटी बज उठी.

अच्छा मम्मी....नहीं कोई बात नहीं....कम्मो बोल रही थी.

हाँ मैं अभी स्कूल से आई...आप ६ सात बजे तक आंटी के यहाँ से आने वाली थीं ना....क्या सब लोग उस के बाद सेल में....हाँ आज तो आख़िरी दिन है....

साध्हे सात, आठ तक....कोई बात नहीं .....अरे मेरी चिंता मत करिये ....अब मैं बड़ी हो गयी हूँ.

धत मम्मी ....कोई बात नहीं दूध पी लूंगी मैं. बाई...और उसने फोन रख दिया. और अब की आके सीधे राजीव के पास ....एक दम सट के बैठ गयी और बोली .....मम्मी का फोन था।

इतना तो हम भी समझ गये थे.

अरोडा आंटी के यहाँ आज किटी थी....तो साध्हे छ तक लेकिन वहाँ से सेल में जा रही हैं साढे सात आठ तक....

मेरी निगाह सामने रखी घड़ी पे पढी....साढे चार...इसका मतलब....कम से कम तीन घंटे पूरे .....आल लाइन क्लियर....और जिस तरह से वो फोन पे मम्मी के लेट आने की बात जोर से दुहरा रही थी और फ़िर अब ख़ुद....और अचानक मैंने बाहर के दरवाजे की और देखा...सिटकनी भी बंद...अब इससे ज्यादा वो क्या सिगनल दे सकती थी और इसका मतलब वो सिर्फ़ शरीर से ही नहीं मन से भी बढ़ी...

और राजीव भी ये सब इशारे अच्छी तरह समझ रहे थे. वो एक दम सट के बैठ गये थे और एक हाथ कंधे के ऊपर....

जाइये जीजू मैं आपसे नहीं बोलती, इतरा के वो बोल रही थी. आपने कहा था ना की होली में जरुर आयेंगें...जब से फागुन लगा.....और जब से अल्पी दीदी के बोर्ड के इम्तहान खत्म हुए...हर रोज हम दोनों गिनते थे होली अब कितने दिन है....

आ तो गया ना अपनी प्यारी साली से होली खेलने....उसके किशोर गुलाबी गाल पे दो उंगलिया रगड़ते वो बड़े प्यार से बोले।

पता है जीजू, मेरी क्लास की लडकियां सब किस्से सुनाती थीं, उन्होंने जीजू के साथ कैसे होली खेली, कैसे जीजू को बुध्दू बना के अच्छी तरह रंगा और उनके जीजू ने भी....खूब कस कस के उनके साथ....मेरा तो कोई जीजा था नहीं...पर अबकी ....मैंने खूब उन सबों से बोला....मेरे जीजू इत्ते हैंडसम हैं स्मार्ट हैं....

अरे तू अपने जीजू की इत्ती तारीफ कर रही है ज़रा इनसे पूछ की होली के लिए कोई गिफ्ट विफ्त लाए हैं की नहीं....या इत्ती मेरी सुंदर सी बहन से वैसे ही मुफ्त में होली खेल लेंगें, मैंने कम्मो को चढाया।

बढ़ी उत्सुकता से उसने राजीव की और देखा।

एकदम लाये हैं....मेरी हिम्मत...और अब उनका एक हाथ खुल के उस किशोर साली के गुलाबी गाल छू रहा था सहला रहा था और दूसरा....उसकी बस खिलने वाली कलियों के उपरी और....एक दम चिपक के वो बैठे थे...लेकिन पहले मेरी एक पहेली बूझो....

इट इज लांग, हार्ड एंड .....लिक्स....बताओ क्या...और इगलिश में ना आए तो.....

धत जीजू....मैं इंग्लिश मीधियम कान्वेंट में पढ़ती हूँ और दो साल में कालेज में पहुँच जाउंगी...मुझे सोचने दीजिये...लांग....लंबा है कडा है....और क्म्मों की निगाहें जाने अनजाने राजीव के बल्ज की और चली गयी।

टाईट लीवैस की जींस में साफ दिख रहा था...और ऊपर से राजीव का एक हाथ अब सीधे वहीं पे....दो उंगलियाँ उस उत्तेजित शिष्ण के किनारे....

अब फंस गयी लौन्डीया .....मैंने सोचा और भुस में और आग लगाई....

देखो....तुम्हारे जीजा के पास है और मेरे पास नहीं,

हाँ और लडकियां जब हाथ में काढा काढा पकड़ती हैं तो उन्हें अच्छा लगता है, कुछ तो होंठों से भी लगा लेती हैं, वो बोले।


धत जीजू आप भी...जाइये मैं नहीं बोलती आप ऐसी वैसी बातें करते हैं....कम्मो बोली, लेकिन निगाह अभी भी टेंट पोल से चिपकी।

अरे इसमें शरमाने की क्या बात है.....जीजा साली में क्या शरम और वो भी होली में....आख़िरी क्लू .....वो होली में तुम्हारा गिफ्ट भी है....वो बेचारी और शरमा गयी.

लो पकडो ये पे....देखो है ना लांग और हार्ड ...और जब तुम अपने हाथ से ले के दबाओगी तो लीक भी करेगा....है ना.....इम्पोर्टेड है....वैसे तुम क्या सोच रही थी लांग और हार्ड....उन्होंने उसे और छेडा।

अरे लिख के देख ले कहीं तुम्हारे जीजा ने नुमाइश का माल न पकड़ा दिया हो. मैंने उसे चढाया।

ठीक कहती हो दीदी....क्या भरोसा...और लिखने के लिए उसने एक कागज़ निकालते हुए उन्हें चिढाया, इम्पोर्टेड ...चीन का बना है क्या....बारह आने वाला...क्यों जीजू।

अरे वाटरमैन है नामी देखो उस पे नाम लिखा भी है, चलो अच्छा लिखो।

क्या....पेन कागज़ पे लगा के वो बैठी...
आई उन्होंने बोला.

आई बोल के उसने लिखा और उनकी और सिर उठा के देखा. किशोर होंठों पे पेन लगाए वो बढ़ी सुंदर लग रही थी।

एल ओ वी ई वाई.....वो बोल रहे थे...

और वो ध्यान से लिख रही थी... एल ओ वी ई वाई

अचानक वो समझ गयी ...ये क्या लिखवा रहे हैं...और अचानक पेन के पिछले हिस्से से ढेर सारा गुलाबी रंग सीधे उसके चहरे......

हंसते हुए वो बोले अरे बुरा ना मानना साली जी होली है.....होली की आपके लिए ख़ास गिफ्ट...मैंने सोचा होली की शुरुआत सबसे पहले सबसे छोटी साली के साथ करते हैं....

उसके गाल गुलाब हो हाय थे. और रंग सिर्फ़ उसके गुलाबी गालों पे नहीं पढा था बल्की सफ़ेद ब्लाउज पे भी, और उसके अधखिले उरोज भी लाल छीन्टो से.....बस लग रहा था अचानक जैसे कोई गुलाब खिल उठा हो. कुछ तो वो शरमाई, सकुचाई पर अगले ही पल, कातिल निगाहों से उन्हें देख के बोली,

मुझे क्या मालुम था की....जीजू का इतनी जल्दी, हाथ में पकड़ते ही गिर पढेगा।

उस का ये द्वि अर्थी दाय्लोग सुन के मुझे लगा की सच में ये मेरी छोटी बहन होने के काबिल है. मुस्कराके मैंने उसे और चढाया,

अरी कम्मो, सुन अरे ज़रा अपने जीजा को भी रंग लगा दे सीधे अपने गाल से उनके गाल पे, वो भी क्या याद करेंगें किस साली से पाला पढा है।



एक दम दीदी और आगे बढ़ के उसने अपने गोरे गुलाबी रंग से सने गाल ....सीधे उनके गालों पे, ....राजीव की तो चांदी हो गयी. इस चक्कर में अब वह कैसे उनके सीधे गोद में आ गयी उस बिचारी को पता भी नहीं चला.और गालों से गाल रगड़ते अचानक दोनों के होंठ एक पल के लिए ....कम्मो को तो जैसे करेंट लग गया ....वो वहीं ठिठुर गयी ....पर राजीव कौन रुकने वाले थे. उसके उरोजों की और साफ साफ इशारा कर के बोले,

अरी साली जी रंग तो यहाँ भी लगा है ....ज़रा इससे भी लगा दीजिये ना

वो बिचारी क्या बोलती, मैं बोली उस की और से।

अरे सब काम साली ही करेगी आख़िर तुम जीजा किस बात के हो और फ़िर तो सीधे उनके हाथ उस नव किशोरी के उभरते जोबन पे
चालाक वो बहुत थी. तुरंत बात पलटते हुए बोली ।

अरे जीजू आप इत्ती देर से आए हैं आप को अभी तक पानी भी पिलाया ....आप क्या सोचेंगें की अल्पना दीदी नहीं है तो कोई पूछने वाला नहीं है और उन की गोद से उठ के वो हिरनी ये जा ....वो जा।

और पीछे से उसके कड़े कड़े छोटे मटकते गोल नितम्बो को देख के तो राजीव की हालत ही ख़राब हो गयी. उनका बालिष्ट भर का खूंटा अब जींस के काबू में नहीं आ र्रहा था।

उसके पीछे पीछे मैं भी किचेन में पहुँची, आ चल थोड़ी तेरी हल्प करा दूँ और पास में आ के उस के कान में हल्के से कहा, अरे तू भी तो अपने जीजू का जवाब दे दे। होली का मौका है कया ऐसे ही सूखे सूखे जाने देगी उनको।

वही तो कर रही हूँ दीदी। और उसने ग्लास की और इशारा किया। जब मैंने ग्लास में झांका तो मुस्कराये बिना नहीं रह सकी।
अच्छा ये बता की कुछ कोल्ध ध्रिंक विंक है क्या। ... मैं नाश्ते का इतजाम करती हूँ और तू कर अपने जीजा का।

मेरी अच्छी दीदी. ...कोल्ध ध्रिंक फ्रिज में है और फ्रिज . वो बोली।

अरे मालुम है मुझे पहली बात नहीं आ रही हूँ, और मैं बगल के कमरे में गयी जहा फ्रिज रखा था।

स्प्राईट की एक बढ़ी बोतल निकाल के तीन ग्लास में। तब तक मेरी निगाह बगल में रखी ड्रिंक कैबिनेट पे पढी. ...उसे खोला तो वोडका। ... जिन - फ़िर क्या था. ...स्प्राईट के साथ. कुछ स्नैक्स रख के जब मैं बाहर पहुँची तो कम्मो बढ़ी अदा से सीधे अपने उरोजों से सटा के ग्लास रख के पूछ रही थी,

क्यों जीजू बहोत प्यास लगी है।

हाँ. ...बहोत। कौन जीजा मना करता।

गुलाबी रंग से उसका सफ़ेद ब्लाउज एक दम चिपक गया था और उसके किशोर उभारों की पुरी रूप रेखा, कटाव यहाँ तक की ब्रा की लाइन भी साफ साफ दिख रही थी। रगड़ा रगडी में ऊपर के एक दो बटन भी खुल गए थे। और हल्का हल्का क्लिवेज - साफ साफ. ...और जैसे ये काफी ना हो, उसने दांतों से हलके से अपने गुलाबी होंठ काटते फ़िर पूछा।

तो जीजा बुझा दूँ. ...ना

और जैसे ही उन्होंने हाथ बढाया. ....पूरा पूरा का ग्लास भर। जाडा लाल रंग उनकी झाक्काक सफ़ेद रंग की शर्त पुरी तरह लाल। और हम दोनों जोर जोर से हंसने लगे।

ये हुयी ना पूरी होली। ...देखा मेरी बहन का बदला। तुमने तो पूरा ही ढाला था और यहाँ इस ने पूरा का पूरा और क्या जीजी। और अभी तो ये होली की शुरू आत है। ... हंस के वो मेरे पीछे छिपती हुयी बोली।

अरे साली. ...बताता हूँ तुझे. ...और पकड़ के अब वो दुबारा उनकी गोद में. ...और इस धर पकड़ में स्कूल ड्रेस की ब्लाउज के एकाध बटन और...

अच्छा चलो. ....पहले ये कोल्ड ड्रिंक पी के थोड़ा गरमी कम करो. ...और मैंने आँख मार के राजीव को इशारा किया, और उन्होंने पकड़ के ग्लास कम्मो के होंठों पे. ....जबरन ...

स्प्राईट बुझाये प्यास बाकी सब बकवास। ...मैं हंस के बोली.

स्प्राईट कम। वोडका ज्यादा।

उन्ह। ...उन्ह. ...ये तो उसने बुरा सा मुंह बनाया.

अरे पी ले पी ले वरना ये मुझे चिढायेंगे. ...कैसी साली है ज़रा सा जीजा के हाथों. ...मैं बोली और राजीव को मौका मिल गया, एक हाथ से कास के उसकी ठुड्डी पकड़ के दूसरे से ग्लास आधी से ज्यादा खाली कर दी।

अरे आप भी तो पीजिए और अब कम्मो का नम्बर था उसने बाकी बची ग्लास अपने हाथों से अपने जीजा के मुंह से लगा के खाली कर दी..

चल अब जैसे तूने अपने गाल का रंग मेरे गालों पे रगड़ा था ना मेरी शर्त का रंग. वो लाख ना नुकुर करती रही लेकिन अपनी चौढी मजबूत छाती से उसका सीना. ....मैं जानती थी ना उनकी पकड़ की ताकता. ...अच्छी खासी औरतें भीं और ये तो बिचारी अभी बछ्डी थी।

उसके ब्लाउज के सारे बटन टूट ....यहाँ तक की सफ़ेद टीन ब्रा के स्ट्रैप भी हल्की हल्की गुलाबी हो रही थी।

अच्छा चलो अब बहोत हो गया. ...इत्ती सीधी साधी साली मिल गयी तो. ...चलो कुछ खा पी लो. ...ले कम्मो. ...मेरे हाथ से. ...और मैंने एक समोसा उस के मुंह में डाल दिया।

ओन्ह्म्मा. ...उसने मुंह बनाया तो मैंने हड़का लिया. ...अरे अभी जीजा डालते तो पूरा का पूरा गप्प कर लेती और यहाँ मैं दे रही हूँ तो मुंह बना रही है।

वो यहाँ लगी थी और उधर उन्होंने अपनी जेब से गाढ़ा लाल रंग निकाल के दोनों हाथों पे ...

अरे ये भी तो ले देख सट से अन्दर चला जायेगा. ....और फ़िर वोड़का मिली स्प्राईट. ...आधी ग्लास एक झटके में।

वो दोनों हाथ से ग्लास पकडे थी की उनका लाल रंग पुता हाथ पहले इस कमसिन किशोरी के चिकने गाल और जब तक वो समझे सम्हाले. ...सीधे ब्रा के अन्दर घुस के उस के उभारों को लाल. ...कुछ रंग से कुछ रगड़ से. ...बिचारी के दोनों हाथ तो फंसे थे. ...और राजीव ने एक हाथ से कास के उसकी पतली कमर पकड़ रखी थी।

जीजू ये फाउल है. ...ग्लास रख के वो बोली।

सब कुछ जायज है. ...होली में और साली के साथ. ...और उन के हाथ उस के अधखिले कच्चे गुलाबों का. ...रस ले रहे थे।

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वो छटपटा रही थी. ...कसमसा रही थी. ...मचल रही थी

जीजू. छोडो ना. ...क्या करते हो वहाँ नहीं. ...गंदे. ...ओह्ह नहीनीई. ...ओह्ह हाँ हाँ

और तब तक इस खींचा तानी में उस की फ्रंट ओपन ब्रा का हुक टूट गया. ...और।

वो जवानी की गोलाइयां. ...गोर्री गोरी हलके हलके रंग में लिथड़ी...

ये. .अरे तू भी लगा ना मैं साथ देती हूँ अपनी बहन का. ...और उन की जेब से वार्निश की ट्यूब निकाल के कम्मो के दोनों हाथ जबरन फैला के पोत दिए और बोली, ले लगा अपने जीजू को. ...वो बिचारी. ...दोनों हाथ मेरी पकड़ में थे और उन्होंने अब ब्रा पुरी की पुरी खोल दी.
छोटे छोटे कड़े जवानी के उभार. ...सूरज उगने के पहले की लाली से निपल

बिचारे राजीव. ...आंखो और हाथ में जंग हो रही थी. ...देंखे की रगड़ें मसले. ...और जीत हाथों की हुयी।

ये फाउल है. ...उस बिचारी को टाप लेस कर दिया और ख़ुद अबकी मैं बोली. ....और उनकी शर्ट के बटन खोल के शर्ट फर्श पे. बनियान तो उन्होंने पहनी नहीं थी

ले कम्मो लगा उनकी छाती पे. ...और कम्मो भी जोश में आके उनके सीने पे रगड़ने मसलने लगी


कुछ नई आई चढ़ती जवानी का जोश

कुछ स्प्राईट में वोड़का का जोश और सबसे बाद के

जीजा के साथ होली में रगड़न मसलन का जोश

कम्मो कस कस के उनके सिने में रंग लगा रही थी और वो कम्मो की कच्ची कलियों में रस भरने में लगे थे.

ब्रा का हुक तो पहले ही टूट चुका था और ब्लाउज भी स्कर्ट से बाहर निकली बटन सार्रे खुले,

अरे कपडे क्यो बरबाद करते हो बिचार्री के होली खेलना है तो साली से खेलो कहाँ भागी जा रही है बिचार्री और ये कह के मैंने एक साथ ही उस के ब्लाउज और ब्रा को पकड़ के खींच दिया,

अरे सिने से सीना रागादो तभ हो ना जीजा साली की होली, मैंने दोनों को ललकारा।

राजीव को तो किसी ललकार की जरूरत नहीं थी...सीधे से उन्होंने कम्मो को बांहों में भर लिया और वो भी अब सीधे से. ...उनके चौड़े मजबूत सिने में उसकी नवांकुर छातियां दब रही थीं.


थोड़े ही देर में दोनों फर्श पे थे. मैंने सोफे से कुषाण निकाल के कम्मो के छोटे छोटे चूतादों और सर के निचे लगा दिया और राजीव उसके ऊपर....मौका देख के मैंने उसकी स्कूल की नेवी ब्लू स्कर्ट पकड़ के खीची और उतार दी। अब वो बस एक छोटी सी सफ़ेद पैंटी और स्कूल के जूतों में...अब राजीव उसकी उन छोटी उभरती हुई चून्चियों को निहार रहे थे. ...जिसके बार्रे में सोच के ही उनका मस्ताना लैंड तन्ना जाता था.और इती छोटी भी नहीं...बस मुट्ठी में समा जायं..और उसके बिच में छोटे से प्यार्रे गुलाबी चूचुक....


हे इसके सार्रे कपडे तुमने बरबाद कर दिए. ..अब नए कपडे देने होंगे...मैंने राजीव को छेड़ा।

एक दम दूंगा आख़िर मेरी सबसे छोटी साली है....और होली का गिफ्ट...तो दूंगा ही....लेकिन पहले बोलो तुम क्या दोगी...मेरी प्यार्री साली जी।

उसके भोले भोले चहर्रे पे बड़ी बड़ी रतनार्री आँखे कह रही थीं...जो तुम चाहो...और वैसे भी तुमने छोडा ही क्या है....

लेकिन उसके लरजते किशोर होंठों से बड़ी मुश्किल से निकला....मेरे पास है ही क्या।

अरे बहुत कुछ है। राजीव एक दम अपने पटाने वाले अंदाज में आ गए,

ये रसीले होंठ, ये गुदाज मस्त जोबन और अचानक चद्धि के ऊपर से ही उसकी चुन्मुनिया को दबोच के बोले, और ये कारूँ का खजाना.

वो बेचार्री चुप रही शायद पहली बार किसी मर्द का हाथ वहाँ पडा हो, लेकिन मैं बोल पड़ी,

अरे बोल दे वरना तू अपने जीजू को नहीं जानती....

चुप का मतलब हाँ इसका मतलब साली चाहती है की मैं तीनो ले लूँ....ये कह के कस के पैंटी के ऊपर से उन्होंने उसकी चुन्मुनिया मसल दी.

मैंने सर हिला के कम्मो की और ना का इशारा किया और होंठो पे जीभ फिराई।

उस बिचार्री ने भी उसी तरह...होंठो की और इशारा किया।

ऐसे थोडी साफ बता क्या देगी वरना और अब उनकी दो उंगलियाँ पैंटी के अन्दर घुस चुकी थीं.

मैंने हलके से फुसफुसा के बोला चुम्मी. .बोल चुम्मी ले लें।

वो बोली चुम्मी...तभ तक राजीव की निगाह हमार्री इशार्रे बाजी की और पड़ चुकी थी।

हे फाउल ये नहीं चलेगा....दोनों बहने मिल के तभी ये सस्ते में छूट गई...वो मुझसे बोले।

अरे तो मैं अपनी बहन का साथ नहीं दूँगी तो क्या तुम्हार्री उस छिनाल रंडी बहन गुडी का साथ दूँगी. हंस के मैं बोली. कम्मो भी मेरे साथ हंस ने लगी।

अच्छा चल मैं चुम्मी पे संतोस्छ कर लूंगा लेकिन बाद में ये नहीं बोलना की....नहीं जीजू नहीं....वो बोले।

ठीक है बोल दे रे कम्मो ये भी क्या याद कर्रेंगें की किसी दिल दार से पाला पडा था, मैंने चढाया।

ठीक है जीजू ले लीजिये चुम्मी आप भी क्या याद कर्रेंगें,

राजीव ने झुक के उसके अन छुए होंठों का एक हल्का सा चुम्बन ले लिया और फ़िर अगले ही पल उनके होंठों के बीच, उसके होंठ तगड़ी गिरफ्त में, कभी चूमते कभी चूसते...और थोडी देर में ही राजीव की जीभ ने उसके रसीले होंठों को फैला के सीधे अन्दर घुस गई।

मैं उसके सर के पास से हट के पैरों के पास चली गई।

उस बिचार्री को क्या मालूम उसने कितना खतरनाक फैसला किया है, राजीव के होंठ उनके बालिष्ट भर के लंड से किसी मामले में खतरनाक नहीं थे।

लेकिन जिस तरह से कम्मों की टाँगे फैली थीं, ये साफ था की उसे भी बहोत रस आ रहा था। मेरे हाथ अपने आप उसके जाँघों पे. ...क्या चिकनी मांसल रस दार झान्घे थीं.....और झान्घों के बीच....वो तरीकों...हल्का हल्का झलक रहा था. कच्ची कलियों को भोगने का शौक तो मुझे भी बचपन से लग गया था, होली का तो मौका था जब भाभी ने रंग लगाने के बहाने ना सिर्फ़ मेरी जम के उंगली की बल्कि पहली बार झाडा....इससे सात आठ महीने ही ज्यादा बड़ी रही हौंगी और फ़िर बोर्डिंग में....११ विन से थी...टेंथ पास कर के ही तो लड़कियां आती थीं...लेकिन आने के हफ्ते भर के अन्दर ही ऐसे जबरदस्त रागिंग....पूरी चूत पुरान. ..और सार्री नई लड़कियां....एक दूसरे की चूत में उंगली...लेस्बियन रेसलिंग....और जो सबसे सटी सावित्री बनने का नाटक करतीं उन्हें तोड़ने का काम मेरा होता...एक से एक सीधी साधी भोली भाली लड़कियों को भोगा मैंने...लेकिन ये तो उन सब से कच्ची. ...पर तन और मन दोनों से ज्यादा रसीली....मुझसे नहीं रहा गया और मैंने सहलाते सहलाते...एक झटके में पैंटी को नीचे खींच के फेंक दिया जहाँ उसकी ब्रा और स्कर्ट पड़ी थीं....

इतनी सेक्सी...मुझे तो लगा मैं देख के ही झड़ जाउंगी....खूब कसी कसी गुलाबी पुतियाँ....बस हलकी सी दरार दिख रही थी...और झांटे बस आना शुरू ही हुयीं थी....वो बहोत गोरी थी और उस की झांटे भी हलकी भूरी। मुझसे नही रहा गया और मैंने उंगलियों से हलके हलके घुमाना शुरू कर दिया। उसकी पुतियों में हलकी सी हरकत हुयी तो मैंने दूसर्रे हाथ से वहाँ हलके से दबा दिया...क्या मस्त मुलायम....

उधर राजीव के होंठ अब उसकी छोटी छोटी चून्चियों के बेस पे....पहले चूम के फ़िर लिक कर के. ..और थोडी देर में उसका एक कडा गुलाबी चुचुक राजीव के होंठों के बिच में....चूभालाते चूसते चूमते. ...वो अब सिसक रही थी दोनों हाथ राजीव के सर को पकडे अपनी और खींच रहा था।

मस्ता रही है साली...मैंने सोचा...फ़िर मेरी उंगली की टिप पुतियों के बीच... हल्का सा गीलापन था वहाँ...मैं बस हलके बिना दबाये ऊपर निचे...अंगुली की टिप करती रही।

राजीव के होंठ अब उसकी गहर्री नाभि को चूम रहे थे....मैं समझ गई की उनकी मंजिल क्या है इसलिए अब मैं फ़िर उसके सर की ओर चली गई.

क्या गुलाबी रसीले होंठ थे और चूंचिया भी एक दम कड़ी मस्त....मुझसे नहीं रह गया और मेरे होंठ उसके होंठों पे और दोनों हाथ रसीले जोबन पे.....

और उसके साथ ही राजीव के होंठ उस कली के निचले होंठों पे....

तड्पाने में तो राजीव का सानी नहीं था. उसकी जीभ कभी पंख की तरह गुदगुदाती, कभी...

जीभ की बस नोक से वो उस कलि के लेबिया के किनारे किनारे...और दो चार बार चाटने के बाद उसी तरह. ..दोनों निचले होंठों को अलग कर जीभ अन्दर पेबस्त हो गई और उसने कस के अपने दोनों होंठों के बीच. ..कम्मो के निचले होंठों को....कभी वो हलके हलके चूसते तो कभी कास के उन संतरे की फानकों का रस लेते...

और साथ में मेरी जुबान भी बस अभी उसके सर उठा रहे निप्पल को फ्लिक करते....

चार पाँच बार वो उसे किनार्रे पे ले गए फ़िर रुक गए।

मैंने आँख के इशार्रे से डांटा.....एक बार झड़ जाने दो बिचार्री को।

जब एक बार झड़ जायेगी तभी तो उसके चूत के जादू का पता लगेगा।

वो बिचार्री कसक मसक रही थी। चूतड़ पटक रही थी....

चूसो ना जीजा कस के और कस के....ओह्ह ओह्ह....जल बिन मछली की तरह वो तड़प रही थी।

क्या चूसून साली....चूत से मुंह उठा के पूछा उन्होंने।

अरे बोल दे ना....चूत....मैंने धीरे से उसके कान में कहा.

चूत..... बहोत डरते हुए सहमते हुए उसने कहा.

अरे मैंने सूना नहीं ज़रा जोर से बोल ना। फ़िर उन्होंने कहा।

जिजू....प्लीज...मेरी चूत. .चूसिये ना...चूत.

अरे अभी लो मेरी प्यारी साली और फ़िर दुबारा उनके होंठ उसकी चूत की पंखुडियों पे....

और अब वह जब झड़ने लगी तो वो रुके नहीं...बस अपने दोनों हाथों से उसकी कोमल कलाई पकडली और कस कस के. ..जैसे जीभ से ही उसकी कुंवार्री कच्ची चूत चोद देन....कस कस के...

वो झड़ रही थी...अपने चूतड़ पटक रही थी. ...

पर वो रुके नहीं कस के चूसते रहे.... चूसते रहे.....

थोडी देर में फ़िर दुबारा...अब वो चिल्ला रही थी. ...नहीं हाँ....प्लीज जिजू छोड़ दो.....

जब वो एक दम शिथिल हो गई तभ छोडा उन्होंने उसे....लथ पथ आँखे बंद किए पड़ी हुयी थी।

मैंने होंठ बढ़ा के उनके होंठों से उस कच्ची कलि का रस चख लिया....

क्या स्वाद था....फ़िर एक अंगुली से सीधे उसके मधु कोशः से...

खूब गाधा शहद वो अब मेरे पास आ के बैठ गए थे,

क्यों मजा ले लिया ना साली का। तभ तक वो कुनामुनाने लगी।

हल्के से एक चुम्बन पहले उसकी अधखुली अलसाई पलकों पे फ़िर गुलाबी गालों पे .... रसीले होंठों पे. वो हलके से अंगडाई ले के मस्ती में बोली, जिजू

और जवाब में उनके होंठों ने फ़िर से खड़े होते निपल को मुंह में भर लिया और हलके चूसने लगे।

होंठों का ये सफर कुछ देर में अपनी मंजिल पे पहुँच गया औसकी गुलाबी रस भर्री पंखुडियां उनके होंठों के बीच थीं और कुछ देर में वो फ़िर से चूतड़ पटक रही थी ,

हाँ हाँ जिजू..और कस के चूसो मेरी चूत ओह ओह।

अबकी और तड़पाया उन्होंने। ५-६ बार किनार्रे पे ले जा के और फ़िर अंत में दोनों किशोर चूतड़ कस के पकड़ के उस की चूत की पुतियों को रगड़ रगड़ के जो चूसना शुरू किया।

वो झड़ती रही. झड़ती रही

और वो चूसते रहे चूसते रहे

बीचार्री मजे से बिल्बिलाती रही लेकिन. वो

वो बेहोश सी हो गई थक के तभ जा के उठे;.

तारीफ भर्री निगाहों से देखते हुए मैंने कहा, बहोत अच्छा अब तुमने उसे ऐसा मजा चखा दिखाया है इस उमर में की ख़ुद लंड के लिए भागती फिरेगी।

एकदम और प्यार से वो उसके बाल सहलाते रहे।

और जब थोडी देर में उसने आँखे खोली तो मैं बोली, देख तेरे जिजू क्या होली का गिफ्ट लाये हैं,


और उनसे मैंने कहा और आप पहना भी तो दीजिये अपने हाथ से लेविस की लो कट जीन्स टैंक टाप और सबसे बढ़ के पिंक लेसी ब्रा और थांग का सेट और ब्रा भी पुश अप थोडी पैदेदा। जब पहन के वो तैयार हुयी तो किसी सेक्सी टीन माडल से कम नहीं लग रही थी।

शीशे में देख के वो इती खुश हुयी की उसने ख़ुद उनको गले लगा लिया और बोली

थैंक्स जिजू मैं कितने दिनों से सोच रही थी..ऐसी जींस पर ये तो छोटा शहर है ना

उम्म्म जीजा को कभी थैंक्स नहीं देते मैंने हंस के कहा

जान बूझ के बड़ी अदा से वो बोली। आँख झपका के वो बोली, तो क्या देते हैं

चुम्मी हंस के राजीव बोले ...

अरे तो लीजिये ना जिजू और ख़ुद उनको बांहों में ले के कम्मो ने चूम लिया।

हम लोग चलने वाले थे की मैंने रुक के कहा, तुमने मेरी छोटी बहन के साथ नाइंसाफी की है ये नहीं चलेगा।

वो चकित और कम्मो भी

देखो तुमने तो उसका सब कुछ देख लिया और अपना अभी तक छुपा के रखा है उनके अब तक तन्नाये बल्ज पे हाथ रगड़ के मैं बोली।

हाँ सार्री लेकिन मैंने ख़ुद खोल के देखा था अगर साली चाहे तो ...वो बोले।

क्यों चैलेन्ज एक्सेप्ट करती हो मैंने कम्मो से पूछा नाक का सवाल है मेरी।

एक दम दीदी और उसने उनकी जिप खोल दी।

जैसे कोई स्प्रिंग वाला चाकू निकलता है एक बालिष्ट का पूरी तरह तन्नाया हुआ लंड बाहर आ गया।

अरे पकड़ लो काटेगा नहीं हंस के उन्होंने चिढाया

आप भी क्या याद करिएगा जिजू किस साली से पाला पडा था और उसने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया।

मुंह खोल के तो देख ले, मैं भी बोली।

लाल गरम खूब मोटा पहाडी आलू ऐसा तन्नाया सूपाडा सामने

बस एक बात बाकी है इन्होने तुम्हार्रे वहाँ किस्सी की थी तुम भी ले लो।


रात भर मैंने उन्हें खूब तड़पाया लेकिन झाड़ने नहीं दिया।

वैसे तो मेरी छुट्टी आज रात खत्म हो जाने की थी....पर कुछ कम्मो के साथ खेल तमाशा...एक दिन और....

वो अभी छोटी तो नहीं है....कितनी कसी हुयी पुत्तियाँ...और मेरा इतना मोटा...बेचारे परेशान।

अरे कुछ नहीं मेरे साजन ...ले लेगी बस थोडा सम्हालना पड़ेगा...उनके तनाये मस्त सुपाडे पे जीभ से फ्लिक करते मैं बोली। बाबी देखा था....पूरा हिन्दुस्तान डिम्पल को देख के मुठ मारता था क्या उमर रही होगी....और क्या पता पिकचर में रोल देने के पहले....

सही कहती हो....एक दम देखने में बाबी ऐसे ही लगती है, लम्बी गोरी, मस्त मुट्ठी में भर जायं उस साईज़ के मम्मे....गुलाबी कचकचा के काटने लायक गाल...वो और मस्ती से पागल हो गए।

और रेखा को, सावन भादों में...लगे पचासी झटके...क्या मस्त गदराये उभार थे...सोलह साल की थी....मैं अब उनकी एक बौल मुंह में ले के चूस रही थी और हाथ एक दम खड़े लंड को मुठिया रहा था...एक मिनट उसे निकाल के मैं बोली...और फ़िर दूसरी बौल को मुंह में ले के चुभालाने लगी.

और साथ साथ सोच रही थी तभी तो मैंने,....चलने के पहले मैंने कहा की बाथ रूम जाना है....तो हम साथ साथ बाथ रूम गए ...और मैंने फ़िर उसे समझाया...चूत में बीच वाली सबसे बड़ी मंझली उंगली करनी चाहिए...ना सिर्फ़ इसलिए की वो सबसे लंबी होती है बल्की अगल बगल की दोनों उंगलियों से पुत्तियों को रगड़ सकते है....और अंगूठा सीधे क्लिट पे...हल्के हल्के दबाना...और फ़िर एक बार मैंने ख़ुद किया और फ़िर उससे अपने सामने करवाया भी....जोर दे के लगभग दो पोर तक गुसवाया....इन्होने जो चुसाई की थी उसका रस अभी तक उसकी बुर में था....मैंने बोला की हम लोग के जाने के बाद.....अभी तो मम्मी के आने में टाईम है....एक बार हलके हलके....देर तक कम से कम दो बार झाड़ना....और रात में सोने के पहले...हाँ उस समय अच्छी तरह वैसलीन लगा के....फ़िर जब भी टायलेट जाय....नहाते समय...हाँ हर समय बस यही सोचे की उसके जीजू का मोटा लंड जा रहा है उसकी चूत में...और अगर किसी दिन ५-६ बार से कम उंगली किया ना तो बहोत मारूंगी उसकी पीठ पे धोल जमाते हुए मैंने कहा।

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एकदम दीदी....

और इसलिए जब वो हम लोगों को छोड़ने बाहर तक आयी तो मैंने हंस के कहा ,

याद रखना, थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी।

हंसते हंसते वो अन्दर चली गयी।

मेरी जीभ अब उनके गंद के छेद को चाट रही थी...कस कस के लप लप।

ओह्ह ...मजे से वो चूतड उचका रहे थे लेकिन फ़िर बोले,

यार लेकिन उसका छेद इत्ता कसा छोटा...टाईट...उफ्फ्फ़ ...

अरे राजा...तुम बुधू हो, कच्चे कसे छेद में जायेगा, तभी तो पर्परयेगी, चीखेगी चिल्लायेगी, लेकिन मेरी कसम अगर तुमने एक सूत भी बाहर छोडा तो.....तुम तो अपनी उस बहन कम माल के बारे में भी यही कह रहे थे याद है छे महीने भी नहीं हुया....बढ़ी सीधी है....भोली है....और मैंने क्या शर्त बंधी थी १० दिन के अन्दर ५ मर्दों से चुदवाने के बाद तुम्हारे सामने वो ख़ुद खड़ी होगी चूत फैला के ...और हुआ ना वही...और देखो....इसको भी मैं इत्ती चुदवासी बना दूंगीं...हर जीजा क्या चाहता है होली में मालूम है ना...

हाँ एक दम हंस के वो बोले,

छोटी छोटी चून्चीया हों बुर बिना बाल की,

छोड़ो राजा कस के साल्ली है कमाल की।

उनका लंड चूसना रोक के मई बोली....और उसकी तो छोटी छोटी झांटे भी आनी शुरू हो गयी हैं....हल्की हल्की भूरी भूरी....

सही कहती हो सोच के रुका नहीं जाता....

अच्छा अब सो जाओ....कल वो आयेगी ना बहन कम माल...गुड्डी....तो बस उसे उसी में झाड़ना...

बेचारे उसी तरह सो गए।

अगले दिन दोपहर में हम लोग गडे वाली गली गए....यानी गुड्डी के घर।

गुड्डी और अल्पी अभी आई थीं गाईड कैम्प से....उन्हें देख के वो चमक दोनों के चहरे पे आई जो किसी सुहागन के चहरे पे आती है....होली में बाहर से कमा के लौटने वाले पति को देख के....

एक दम चुदवासी लग रही थीं।

दोनों उनके पीछे पड़ गयीं ....पिकचर दिखलाने के...तय हुया की मैं ड्राईव कर के अल्पी को उस के घर छोड़ दूंगी और तीन से छ का टिकट ले आउंगी....और लौटते हुए अल्पी को पिक अप कर लूंगी।

मैं उन दोनों के अकाल की तारीफ किए बिना नहीं रह सकी....घर में तो खुल के बात भी नहीं हो सकती थी....होली का काम फैला पडा और ढेर सारे लोग ....

लौटी तो उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकी .... पतली रजाई ओढे दोनों .... गरम गरम कड़ाही से निकलती गुझिया खा रहे थे वो खिला रही थी .... लेकिन जो मैंने देखा तो .... दोनों के एक एक हाथ रजाई के अन्दर .... ऊपर से तो वो भैया भैया बोल रही थी .... और अन्दर से हाथ .... सीधे उनके पैंट के ऊपर रगड़ा .... मैंने सीधे जिप खोल के .... उनका तन्नाया मस्ताया लंड उसके हाथ में पकडा दिया .... और उसने भी गप्प से .... दोनों टांगें रजाई में वो इस तरह मोड़ के बैठी थी की राजीव का हाथ सीधे अपनी ममेरी बहन की दोनों गुदाज जाँघों के बीच में .... चुनामुनिया को रगड़ मसल रहा था .... गीली तो उसे उसके भैया ने ही कर रखा था .... मैंने गैप से एक अंगुली की टिप उसकी कसी फुद्दी में घुसेड दी। बेचारी सिसक उठी, लेकिन बनते हुए उसने उनसे गुझिया देते हुए कहा, भैया और लीजिये ना।

मैंने चिढाया, अरे बिचारी इती प्यार से दे रही है और आप ले नहीं रहे हो।

एक दम लूंगा .... क्यों उसकी आंखों में झांकते हुए वो बोले और गुझिया गप कर ली।

बिचारी शरमा के गुलाल हो गयी।

तब तक उन्हें किसी ने बुलाया .... और वो पैंट ठीक करते हुए बाहर चले गए। मुझे मौका मिला और गोल गोल घुमाते हुए मैंने आधी से ज्यादा उंगली अन्दर घुसेड दी ....

हे बड़ी टाईट लग रही क्या कई दिनों से गुल्ली डंडा नहीं खेला .... या अपने भैया के स्वागत के लिए टाईट अगेन लगा राखी है।

नहीं भाभी, थोड़ी दुखी हो के बोली, आपके जाने के बाद एक बार भी नहीं हुया पूरा सन्नाटा है ....

अरे तेरे तो इत्त्ते यार थे क्या हुया उनका .... वो गाँव से लौटने वाला था .... और फ़िर मेरे पड़ोस का नीरज .... जिसके साथ तुमने फार्म हायुस में .... ( पूरा किस्सा .... ननद की ट्रेनिंग में पढ़ें) .... .

अरे वो आप को तो मालूम ही है की वो गाँव गया था अपनी बहन की सगाई में .... वहाँ उसके बहन की ससुराल वालों ने शर्त रखी की उसकी बहन की ननद के साथ .... .और नीरज बाम्बे चला गया .... एक कोर्स करने .... ।

मैं तो सोच रही थी की उन कालीन गंज वालियों की तरह ( उसके शहर का रेड लाईट एरिया) की तरह सदा सुहागिन होगी, एक बाहर निकलता होगा तो दूसरा अन्दर जाता होगा, मैंने फ़िर छेडा। चल कोई बात नहीं होली में तो तेरे भैया कम सैंया हैं ही और फ़िर जीजा भी आयेंगे और होली के बाद तो तुझे हम लोगों के पास चलना ही है .... फ़िर तो देखना इस की क्या दुरगत करती हूँ। और मैंने गच्चे से पूरी उंगली अन्दर पेल दी।

एक दम भाभी ये भी तैयार है ..दुरगत करवाने के लिए मैंने तो पैकिंग भी कर ली है। हंस के वो बोली।

तब तक राजीव आके बोले, अरे तुम ननद भाभी गप ही मारती रहोगी या .... टाईम हो गया है पिक्चर का और वहाँ अल्पी इंतजार कर रही होगी।

अरे मेरे भैया को अपनी साली के इंतजार की बड़ी चिंता है उसने चिढाया और १० मिनट में तैयार हो के आ गयी।

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क्या मस्त माल लग रही थी, टाईट गुलाबी शलवार सूट में, भरे भरे मम्मे छलक रहे थे .... क्या कटाव था और जांघे भी एक दम भरी भरी कसी कसी .... .

तब तक अचानक वो रुकी और बोली .... भाभी बस एक मिनट ....

क्या पैंटी पहनना भूल गयी .... मैंने कान में कहा....

वो तो मैंने जान बूझ के नहीं पहना .... लेकिन ज़रा शाल ले के आती हूँ क्या पता हाल में ठंडक लगे।

शाल क्या वो इत्ता बड़ा पूरा कंबल ले आयी।

अल्पी के आते ही वो दोनों तो ऐसे चालू हुईं बेचारे राजीव की हालत ख़राब .... .

हाल में घुसते ही मैंने अल्पी से कहा अरे साली के होते हुए भी जीजा सूखे सूखे .... तो मुस्करा के मेरे कान में वो बोली, अरे दीदी देखती जाईये।

हाल लगभग खाली था और सबसे पीछे की रो में हमने कोने की सीटें हथिया लीं .... दोनों उनके अगल बगल और गुड्डी की बगल में मैं।

किसिंग विसिंग तो तुरंत चालू हो गयी और थोड़ी देर में राजीव के दोनों हाथों में लड्डू थे। लेकिन दो चार लाईनें छोड़ के लोग बैठे थे .... और सीटों पे ..जितना हो सकता था उससे बहोत ज्यादा हो रहा था....

सालियों इस होली में तुम दोनों की मैं ऐसी रगडाई करूंगा ना .... राजीव ने एक साथ दोनों के मम्मे मसलते हुए कहा .... .

तो हम छोडेंगें क्या .... कच काचा के गाल काटते हुए अल्पी बोली।

इंटरवल होने वाला था।

अरे जीजू आप के गाल पे ये क्या लगा है .... ये कह के अल्पी ने अपने रुमाल से बड़े प्यार से उनके गाल को रगड़ रगड़ के पोंछ दिया।

अरे भैया .... इधर भी .... गुड्डी ने भी रुमाल निकाल के .... उनका गाल साफ कर दिया।

इंटरवल में जब हम बाहर निकले .... तो उन्हें देख के बड़ी मुश्किल से मैं हंसी दबा पायी।

और वो दोनों चुडैलें .... ऐसे की जैसे कुछ हुया ही न हो, उन्हें ले के कायुन्टर पे गयीं .... कोला पीया .... क्रीन्म रोल खरीदा .... और इंटरवल खत्म होने के ठीक पहले मैंने जब वो टायलेट से निकले मैं बोल पडी .... ज़रा शीशे में देख लीजिये कुछ लगा है .... क्या ....

अरे अल्पी तूने कैसे साफ किया था की .... गुड्डी अंदाज से बोली .... तब तक वो शीशे में चेहरा देख रहे थे .... .

एक और लाल .... योर दूसरी और काला .... .पानी लगाते ही वो और फ़ैल गया।

अब उन्हें समझ में आया की सब लोग उन्हें ही क्यों देख रहे थे।

एक ने रुमाल में लाल गुलाल के साथ गाधा रंग और दूसरी ने तो पूरी गाधी कालिख ....

जाने दीजिये होली का रंग है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा .... मैंने उनसे कहा और पिकचर भी शुरू हो गयी है .... अंधेरे में कौन देखेगा .... मैंने उनसे अन्दर चलने के लिए कहा।

अन्दर घुसते ही गुड्डी ने छेडा, भैया किसके साथ मुंह काला किया.... और जिस तरह से वो चीखी मैं समझ गयी अल्पी ने उसे कस के चिकोटी काटी ...

तुम्ही बैठी थी.... उस ओर....वो बोली। हाल में क्रीन्म रोल गुड्डी ऐसे चाट रही थी....जैसे कोई मोटा शिशिन चाट रही हो। और उन का हाथ अब तक अल्पी के टाप के सारे बटन खोल चुका था.....

तुम दोनों लगा चुकी ना अब मेरी बार ऐसी कस के मलाई पोतुन्गा ना गाल पे....सफेद गाढ़ी....वो बोले।

अरे जीजू ... नेकी और पूछ पूछ, ज़माना हो गया, मलाई का स्वाद चखे।

एक दम तो ये रोल क्यों खा रही है, असली रोल चख ना....मैने छेडते हुये गुड्डी के मुंह से क्रीम रोल छीन लिया और कस के उसका मुंह तन्नाये हुये जीन्स पे रगड दिया. दूसरे हाथ से मैने उनका जीप खोलते हुये लंड निकाल लिया।

एक दम भाभी और ये शाल किस दिन काम आयेगा. हंस के गुड्डी बोली।

पक्की छिनाल है...ये, मैने सोचा. कैसी प्लानिंग बना के आई।

तब तक दोनों लडकियों के सर शाल में...कभी गुड्डी, कभी अल्पी और कभी दोनों साथ..साथ...एक सुपाडा गप करती तो दूसरी...साईड से सडप सड्प...जीभ से चाटती..।

गुड्डी मेरी ओर ही बैठी थी, मेरे और उनके बीच में...मेरी प्यारी ननद ...तो मैं कैसे चुप रहती....झुकी हुई वो...सीटों के बीच के आर्म रेस्ट कब के उठ चुके थे...गदराये हुये जोबन...मैने गप से पकड लिया और लगी उन किशोर उभारों का मजा लेने पहले थोडी देर उपर से और फिर...बटन तो उसके भैया ने कब के खोल दिए थे...बहोत दिन बाद मेरे हाथों को फिर उन टीन बूब्स का मजा लगा...और दूसरा हाथ शलवार के उपर से ही पीछे से उसके मस्त चूतडों का...लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैने शलवार का नाडा पूरी तरह खोल के एक दम घुटनों तक सरका दी. ( सच में उसने पैंटी नहीं पहन रखी थी....और एक दम चिकनी ....मुझे याद जिस दिन मैने उसे बताया था कि राजीव को 'चिकनी' पसंद है अ॑गले ही दिन उसने सारी घास फूस साफ कर दी) एक चूची मेरे हाथ में थी और दूसरी उसके भैया के...कभी दबाते कभी निपल पिंच कर देते...मेरा दूसरा हाथ उस की चिकनी चूत पे....आखिर होली में भाभी ननद की चूत की हाल चाल नहीं लेगी तो होली कैसी....थोडी ही देर में मेरी दो उंगलिया चूत में अंदर बाहर..।

और उधर वो अल्पी की चूत में उंगली कर रहे थे धक धकाधक...दोनों ही अच्छी तरह गीली हो चुकी थीं और इस का नतीज ये था की दोनों जम के चूस रहीं थीं, चाट रहीं थी..शाल काफी हट चुका था इसलिये साफ दिख रहा था की कैसे अल्पी ने आधे से ज्यादा लंड घोंट रखा था और कस के चूस रही थी....गुड्डी भी एक हाथ से उनके बाल्स सहला रही थी, लंड के बेस पे दबा रही थी और साईड से...मैने इशारा किया तो उसने अल्पी के गाल भी कस के चूम लिये और बोली ...आखिर मेरे भैया की साली है....मेरे भैया का इत्ता मोटा लंड घोंट लिया..।

मुंह से लंड निकाल के गुड्डी की ओर बढाती अल्पी बोली...अरे ननद रानी तेरी क्यों सुलग रही है,...ले तू भी ले....मेरे जीजू के लंड में बहोत ताकत है...चाट ....और जैसे कोई नदीदी ....लाली पाप पे झपटे...उसने दोनों हाथों से पकड के सीधे मुंह में गप और राजीव भी ...उसका सर पकड के अपने ५-६ दिन से भूखे तन्नाये लंड पे कस के ...दबा दिया...ओक ओक करते भी वो आल्मोस्ट पूरा लंड घोंट गई।

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और वो जब झडे भी तो उन्होने साली और 'बहन' में कोइ भेद भाव नहीं किया....थोडा अल्पी के मुंह में थोडा गुड्डी के मुंह में और सिर्फ मुंह में ही नहीं चेहरा, बाल, भौंहें, यहां तक की चूंचीयों पे भी....खूब ढेर सारा गाढा....वैसे भी वो जब झडते थे तो आधा कटोरी से कम नहीं और आज तो इतने दिन के बाद..।

मैने भी उन दोनों के चेहरे पे लगे हुये वीर्य के थक्कों को अच्छी तरह फैला दिया...खूब लगा हुआ था...तब तक राजीव ने पकड के बारी बारी से दोनों के वीर्य लगे गालों चेहरे पे अपने गाल खूब कस कस के रगड दिये. जो गुलाल में मिला लाल रंग और कालिख उन दोनों ने इनके चेहरे पे लगाया था अब वो सब उन दोनों के चेहरे पे फैला हुआ..।

मैने राजीव का इशारा गुड्डी के खुले स्तनों की ओर किया जहां पे भी वीर्य बहोत लिथडा था...फिर क्या था उन्होने अपने दोनो गाल उन दोनो किशोर जोबनों पे...गोरे गोरे उभारों पे वो लाल गुलाबी रंग और बीच में कालिख के दाग ...और फिर अल्पी का भी नम्बर ..।

भाभी ...अरे आप क्यों भूखी बैठीं हैं....जरा आप भी भैया के माल का स्वाद चख लीजीये....आखिर आप का ही तो माल है.....गुड्डी ने मेरी ओर मुंह बढाया....अभी भी उसमें राजीव की लंड की मलाई भरी पडी थी।

मुंह बढा के मैने उसके होंठों से अपने हॊंठ सटा दिये और पल भर में ना सिर्फ उसके होंठं मेरे होंठो के बीच दबे कुचले जा रहे थे ...बल्कि मेरे जीभ भी उसके मुंह में...गुड्डी की गुलाबी जुबान पे गाढा...ढेर सारा वीर्य का थक्का....मेरी जीभ की नोक ने उसका स्वाद चखा और फिर उसके पूरे मुंह के अंदर घूम के...जहां थोडी देर पहले ही उसके भैया का मोटा कडा लंड....अभी भी उसका स्वाद....उसकी महक...जैसे मैने उसे सिखाया था वो कस के मेरी जीभ चूस रही थी चाट रही थी, उसकी जीभ बार बार उससे लड रही थी....जैसे मेरी जुबान नहो मेरे सैयां का मस्त लंड हो....कुछ देर में जो मैने मुंह ह्ल्के से खॊल के....मेरी जुबान वापस हुयी तो साथ साथ मे गुड्डी की जीभ भी....जैसे लडाई जीतने के बाद कोइ कैदी भी साथ लाये और साथ में गाढी मलाई भी....मैं भी उसे कस के चूस रही थी...आखिर मेरी प्यारी ननद की , मेरे सैयां के बचपन के माल की जुबान थी...और जैसे ही हम अलग हुए उस चालाक ने....अपने चेहरे का रंग मेरे चेहरे पे भी लिथड दिया।

भाभी इसमें भी तो भैया की मलाइ मिली है.....और फिर हम तीनों ही रंग गये तो आप कैसे बची रहतीं....हंस के वो छिनाल बोली।

तब तक पिकचर खतम हो गई।

गुड्डी और अल्पी के चेहरे भी....गोरे गालों पे लाल गुलाबी रंग...कालिख के छींटे और वीर्य की चमक....गुड्डी के तो बालों में भी एक थक्का अभी तक उलझा हुआ था लेकिन मैने बताया नहीं।

क्यों कैसे रही होली की शुरुआत .....मैने पूछा..।

अरे एक्दम गजब ...दीदी....लोग तो अपने जीजू के साथ पानी का रंग खेलते हैं लेकिन हमने तो जीजू की गाढी मलाई में लगे रंग के साथ होली खेली है...।

सोचो अगर आगाज ये है तो अंजाम कैसा होगा...उस कुडी के गुलाबी गालों पे कस के चिकोटी काटते हुये वो बोले।

अरे जीजू ये साल्ली डरने वाली नहीं हैं....लेकिन हां अपनी बहन से जरूर पूछ लीजिये. वो अदा से मटक के बोली।

अरे मेरी ननद किसी से कम नहीं है....लेकिन तेरे भी जीजा तो आने वाले होंगें...मैने पूछा।

अरे कोइ फरक नहीं पैंदा....आगे से उसके जीज पीछे से मेरे जीजा...अल्पी ने टुकडा लगाया।

प्लान हमारा ये था की हम सब पिकचर से हमारे घर चलते...और वहां २-३ घंटे मस्ती...लेकिन अल्पी बोली....की उसकी मम्मी को कहीं जाना है और उन्होने उसे सीधे घर आने को कहा है।

बेचारे राजीव....लेकिन अल्पी ने प्रामिस किया की वो कल शाम को जरूर आयेगी और तब तक वो गुड्डी की ओर इशारा करत्ती बोली,

मेरी इस चिकनी सह्लेली से काम चलाइये...ये भी कम प्यासी नहीं हैं।

लेकिन वो प्लान भी फेल हो गया. उसके जीजा जीत ( जिन्होने मेरे चढाने पे उसे शादी के समय कस के चोद के उसकी , चूत का उद्घाटन किया था और बहोत ही मस्त थे) और बहन लाली, ( गुड्डी की सबसे बडी बहन....अगर आपने नन्द की ट्रेनिंग पढी हो तो ये सब आपको मालूम होगा)....देर रात को आने वाले थे. लेकिन जब हम उसके घर पहुंचे तो वो लोग पहुंचे हुये थे.

मेरे नन्दोई ने पहुंचते ही मुझे बांहों में भर लिया....लेकिन अबकी वो थोडे कम चंचल लग रहे थे....क्यों क्या हुआ...मैने पूछा तो उन्होने बताया की यहां आने से पहले उनकी बीबी ने कुछ सखत पाबंदी लगा दी...शायद उन्हे कुछ् शक हो गया की जब वो शादी में आये थे तो उन्होने गुड्डी के साथ...तो बोलना रंग खेलने तक तो ठीक है लेकिन यहां वहां छूने पे भी पाबंदी और इससे आगे तो कुछ सोच भी नहीं सकते....कूवारी लडकी है अगर कहीं उंच नीच हो गया....अपनी बीबी की आवाज की नकल करते वो बोले।

अरे जीजू इत्ती सी बात...मैने उन्हे हिम्मत बंधाई. याद है पिछली बार जब आप शादी में आये थे...आप खुद कह रहे थे ना की आप की ये साल्ली....हाथ भी नहीं रखने देती थी....लेकिन मैं ने वो चक्कर चलाया की खुद उसने आप का हाथ पकड के अपने १७ साल के जोबन पे रख दिया था ...५-६ महीने पहले की ही तो बात है...और आप से एक नहीं दो दो बार...बिना किसी ना नुकुर...के ...तो आखिर आपकी बीबी भी तो ...उसी की बहन हैं मेरी ननद हैं....और ननदों को नचाना भाभी को नहीं तो और किसे आयेगा।

अरे मैने सोचा था, की अबकी साल्ली के साथ खूब जम के होली खेलूंगा, पहली होली में तो बिदक गयी थी लेकिन अबकी भरे आंगन में सबके सामने....क्या मस्त माल है औ कया मटकते हुये चूतड हैं....तब तक गु्ड्डी हमारे सामने से आंगन से गुजर रही थी...अपने जीजू को दिखा के उसने दोनो जोबन कस के उभार दिये और जीभ निकाल के चिढाया. पीछे से उनकॊ दिखा के चूतड भी मटका दिये...।

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मन करता है गांड मार लूं साल्ली की....नन्दोई जी बोली लेकिन अपने बीबी की बात सोच के मन मसोस के रह गये.।

अरे गांड भी मारिये साल्ली की और गांड का मसाला भी चखाइये भी अपनी साल्ली को...बस अपनी इस सलहज पे भरोसा रखिये और हां होली में सलहज का हक साली से कम नहीं होता...पिछली बार तो उस कंवारी साल्ली के चक्कर में मैने छोड दिया था....अबकी मैं नहीं छोडने वाली अपन हक. और मैने दोनो जांघों के बीच कस के उनके तन्नये खडे खूंटे पे रगड दिया।

एक दम...मुस्करा के वो बोले।

तब तक राजीव वहां आ गये. जीत जीजू...अल्पना पे फिदा थे लेकिन शादी के समय तो उनका पूरा समय गुड्डी के साथ ही बीता और अल्पी भी अपने नये बने जीजू राजीव के साथ...जीत ने उनसे पूछा,

क्यों साल्ले...तेरी उस पंजाबी साल्ली की क्या हाल है।

मस्त है जीजा....वो बोले।

लगता है ननदॊइ जी का जी आपकी साली पे आ गया है....क्यों नहीं आप दोनो साली अदल बदल कर लेते...मैने चिढाया।

अरे क्या अदल बदल की बात हो रही है....ये मेरी बडी ननद और जीट ननदोई जी की पत्नी....लाली थीं...मुझसे उमर में २-३ साल ही बडी होंगीं, लेकिन खूब गदराइ, भरे बदन की बडे बडे चूतड...।

अरे ननद जी....जो आफर मैने आपको पिछली बार दिया था...सैंया से सैंया बदलने का...होली का मौका भी है....मैं नंदोई जी के साथ और आप मेरे सैंया के साथ ....साथ में मेरे दो चार देवर फ्री...क्यों मंजूर।

ना बाबा ना....तुम मेरे सैया को भी रखॊ....और अपने सैंया कॊ भॊ...दोनो ओर से ...आखिर छोटी भाभी हो.....मेरी ओर से होली गिफ्ट .....वो भी कम नहीं थीं. उन्होने दहला लगाया।

ना....मुझसे ये नहीं होगा....आखिर आप का काम कैसे चलेगा...और उपर से होली का मौसम....मुझसे तो एक रात नहीं रहा जाता....अरे स्वाद बद्ल लीजिये....और मेरे सैंया का आपके सैंया से कम नहीं है कहिये तो आप के सामने दोनो का नाप के दिखा दूं....बचपन में जो आपने पकडा पकडी की होगी तो जरूर छोटा रहा होगा लेकिन अब....मैने तुरुप का पत्ता जडा।

अरे मुझे तो शक है तब तक नाउन की नयी बहू बसंती...( जो बहू होने के नाते भाभियों के साथ ही रहती थी और ननदों को खुल के गाली देती थी) भी मैदान में आ गई की लाली बीबी....कहीं होली में गली के गदहों का देख के उन्ही के साथ तो नहीं...बडी ताकत है तुम्हारी ननद रानी।

तय ये हुआ की वो, गुड्डी, और जीत कल दोपहर में हम लोगों के यहां आयेंगें।

रात भर मैं सोचती रही की लाली के शक के बाव्जूद क्या चक्कर चलाउं....की जीत और इन का दोनो का काम हो जाये.

जीत को मैने समझा दिया थी...मिल बांट के खाने को....लाली को अपने 'सीधे साधे भाइ' पे तो शक होगा नहीं इसलिये उन के साथ वो गुड्डी को छोडने को तैयार भी हो जायेंगी...और मैने राजीव को भी...सालीयों की अदला बदली के लिये तैयार कर लिया....तो मिल के खाओगे तो ज्यादा मजा आयेगा.....वो बिचारा ननदोइ मान भी गया।

मर्द बेचारे होते ही बुद्ढू हैं और खास कर जहां चूत का चक्कर हो..।

और साथ ही साथ अगर मेरी उस ननद को एक साथ दो मर्दों का शौक लग गया तो जो बची खुची शरम है वो भी खतम हो जायेगी और जब वो होली के बाद हम लोगों के साथ चलेगी तो....फिर उसके साथ जो कुछ होने वाला है उसके लिये....तो एक तीर से तीन शिकार...।

लेकिन लाली को वहां से ह्टाना जरूरी था....उसके सामने जीत की कुछ हिम्मत नहीं पड सकती थी....वो भी शरमाते और गुड्डी भी...।

पर उसका भी रास्ता मैने निकाल लिया...।

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