Friday, March 14, 2008

पारो के मम्मे

ये उन दिनों की बात है जब मैं हास्टेल में रहता था. कुछ दिनों से ये ख़बर आ रही थी कि हास्टेल से लगे हुए क्वाटर्स में पारो नाम की एक औरत अपने मम्मों के दर्शन कराकर यौनकुंठित छात्रों का उद्धार कर रही है. पता नहीं पारो उसका असली नाम था या फिर लड़कों ने ये नाम रखा था. ये खबर सुनकर मेरा मन भी ललचाने लगा और मैं सोचने लगा कि जब सब लोग मजा कर रहे हैं तो मैं भी क्यों न मजा लूं. बहरहाल उस दिन जैसे ही रात होने लगी, बाथरुम में लड़कों का जमघट होने लगा. सब लड़के खिड़की से आस लगाये हुए खड़े हो हो गये थे. आपस में खुसर‍पुसर हो रही थी और सब लोग धीरे बोलने के लिये कह रहे थे. मैं क्या देखता हूं कि कमरे के अन्दर चारपाई पर साड़ी पहने हुए एक औरत लेटी हुई है. हम लोग थोड़ी देर तक नजरें गड़ाये देखते रहे लेकिन मम्मों के दर्शन नहीं हुए. तभी वह छण आया जब पारो ने अपने ब्लाऊज को खिसकाया और एक गोल चूची दिखने लगी. सारे लड़के कहने लगे अरे मादरचोद अरे दइया ... मेरे शरीर में उत्तेजना बहने लगी .. मेरा औजार उठकर पैन्ट से बाहर निकलने के लिये मचलने लगे. मेरी यौनकुंठित दिमाग में विचार आने लगे कि जल्दी से जा कर दूसरी चूची को भी खोल दूं और दोनो चूचियों को मसलूं , दबाऊं , रगड़ूं और बीच बीच में दोनों चूचियों को पके हुए आमों की तरह चूसचूस कर पी जाऊं. अभी ये सोचविचार चल ही रहा था कि थोड़ी देर मे ही ये द्रश्य खतम हो गया और हम लोग अपने कमरों में वापस आ गये.

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