Wednesday, May 28, 2008

व्यक्ती लाचार हो गया

ज्बान से निगाहों का जब, टकराव हो गया
मोहल्ले के मरदों बीच, पथराव हो गया;
वो नीकल गयीं, लचकती क़मर के झूले में
जवानी कया गुजारी, रासते का घेराव हो गया.





अब तो सुबह होते ही, राह भीड दबी होती है
मुस्कराते चहरे लिये, दीन शृंगार हो गया;
बुढो की चमक उठी, अँधियारी सी आंखें
वासना की आसना में, sex गुबार हो गया.

कोई चुपके से देखे, कोई गंडा कहे इसको
पर इसकी बात सब करते, व्यक्ती लाचार हो गया;
जरा सी गरमी मीले तो, भड़क उठाती है चिंगारी
दोमुहीं जिंदगी संग, झूठा सा संसार हो गया.

बहुत सम्भोग कर डाला, फीर भी ढूंढे नीवाला
पयास मन में दबी है, बदन हुंकार हो गया;
जो खुलते हैं, वो पिघलते हैं - सुलाघते हैं
बंद रहनेवालों के लीये ही, दुःखी संसार हो गया.


--
........raj.........

1 comment:

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