शर्मिली भाभी
हमारा परिवार एक बहुत ही आदर्श परिवार है सभी बड़े उँचे विचारों वाले लोग हैं। केवल मुझे छोड़ कर, हमारी मताजी की सोच है कि लड़्की हमेंशा अपने से छोटे घर की लानी चाहिये ताकि वो घर में असानी से निभा सके और अपनी लड़्की को हमेशा अपने से बड़े घर में देनी चाहिये, ताकि वो सुखी रह सके। सो मेंरे परिवार ने अपने उच्च विचारों के अनुसार मेंरे बड़े भाई की शादी एक अत्यन्त ही गरीब घर की लड़्की से कर दी उनकी इतनी भी हैसियत नहीं थी कि वो लोग अपनी लड़्की को ढंग के दो जोड़ी कपड़े भी दे सके। लेकिन गरीब होने के बाद भी वे बड़े खुद्दार लोग थे कभी किसी को अपनी गरीबी क अह्सास नहीं होने देते थे। उन्होने अपनी लड़्की को जैसा कि आम मध्यम वर्गीय गरीब परिवारों में शिक्षा दी जाती है वो सभी शिक्षा दि थी जैसे हर परिस्थिति में रहना , सब के साथ तालमेल रखना परिवार में कभी किसी कि चुगली न करना आदि आदि। वैसे भी मेंरी भाभी के परिवार की आर्थिक स्थिती मध्यम ही रही है बचपन से उनके परिवार ने अनेंक आर्थिक विषमताएं देखी है सो परिवार के लोग वैसे ही बड़े शालीन एवं विनम्र हैं।
भाभी कालेज भी पैदल ही आना जान करती थी उनके कालेज में भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे और जो थे वो भी कुछ खास नहीं थे, गरीबॊं के वैसे भी ज्यादा दोस्त नहीं होते है।धन की की कमी इंन्सान को जीवन मे बड़ा ही संकुचित एवं आत्मविश्वास विहिन बना देते है। मेंरी भाभी के साथ भी कुछ ऎसा ही था वो बहुत ही सकुचा कर रहती थी अन्यन्त अल्प बात करती थी । किसी भी बात का "जी" "अच्छा" "ठीक है" ऎसे ही जवाब देती थी बहुत ही संभल कर बोलती थी उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकि बातों से कोई भी सदस्य नारज ना होने पाये। कभी कुछ गलत हो जाये तो भी शिकायत नहीं करती थी।शायद उसे अभी अपनी तीन जवान बहनों कि शादी कि चिंता मन ही मन सता रही थी इसलिये उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकी वजह से उसके परिवार का नाम खराब ना हो और उसकी बहनॊं कि शादी में कोई अड़्चन ना आये। गरीब मध्यम वर्गीय परिवारों के लिये तो वैसे भी ईज्जत ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मेंरी मां तो बड़ी खुश थी ऎसी शर्मिली बहू को पाकर।
मुझे अपनी भाभी कि जो बात सबसे ज्यादा पसंद थी वो था उसका शानदार जिस्म। गोरा बदन,सुंदर चेहरा,बेह्तरीन चिकनी एवं मोटी जांघे,बाहर की तरफ़निकलती हुई गोल गोल मोटी मोटी गांढ़ और मदहोश करने वाली रसीली शानदार उभारों वाली उसकी दोनों छातियां। मैं तो जब भी उसे देखता मेरा लंड़ खड़ा हो जाता और मुझे ऎसी ईच्छा होती कि मै इसे तुरंत नंगी कर ड़ालू और उसकी रसीली छातियों में भरे हुए जवानी के रस को जी भर कर पिऊ। लेकिन ये एक सच्चाई थी कि वो रसीली छातियां और मखमली चूत मेंरी नही थी। ये सोच कर मेंरा मन अपने भाई के प्रति थोड़ी देर के लिये घृणा से भर जाता।
मेंरा भाई वैसे भी उस बेह्तरीन जवान पुदी का मजा नहीं ले पाता था क्योंकि उसकी नौकरी ही ऎसी थी महिने में बीस दिन तो बो बाहर ही रहता था। बचे हुए दस दिनों में सात दिन उसे शहर में अपनी टिम के साथ घूमना होता था।अब तीन दिन में नंगा नहायेगा क्या ? और निचोडे़गा क्या? सो किसी-किसी महिने तो भाभी बिन चुदी ही रह जाती थी। कभी कभी मुझे ऎसा विचार आता कि भाभी के लिये ऎसे विचार मन में लाना गलत है, लेकिन जैसे ही भाभी मेंरे साम्ने आती मेंरी कामवासना मेंरी अन्तरात्मा पर हावी हो जाती और मैं फ़िर से उत्तेजित हो जाता और उसको चोदने के खयाल में डूब जाता । मेंरे लिये तो भाभी को चोदना अब एक मिशन बन चुका था, मैं मन ही मन अपनी भाभी के उपर न्योछावर हो चुका था और उसके बेह्तरिन जिस्म का दिवाना बन गया था। अब तो रात दिन मेंरे मन में भाभी को चोदने का ही खयाल रहता था।
भाभी का शर्मिलापन मेंरे लिये काफ़ी सुखद और मेंरी योजना में काफ़ी सहायक था। मैने तय कर लिया कि ऎसे भाभी के जिस्म को चोदने का खयाल कर के मुठ्ठ मारने से कुछ हासिल नही होने वाला उसे पाने के लिये प्रयास करना पड़ेगा। वैसे भी जिस इंसान के लिये इस बेह्तरीन पुदी को घर में लाया गया था उसे तो इसे ठीक से देखने की भी फ़ुर्सत नहीं थी चोदने की बात तो बहुत दूर थी। दौलत और जवानी दोनों ही उपभोग करने पर हि सुख देते हैं अन्यथा दोनों बोझ बन कर रह जाते है। दौलत और औरत की जवानी दोनों को ही अपनी रक्षा के लिये मजबूत कंधो के सहारे की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कोई भी लूट कर ले जा सकता है। मेंरे घर में भी जवानी की दौलत खुले आम घूम रही थी और उसका रखवाला गायब था। सो मैंने उसे लूटने का फ़ैसला कर लिया था। बस प्रयास करना था और अवसर हासिल करना था ।
भाभी कालेज भी पैदल ही आना जान करती थी उनके कालेज में भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे और जो थे वो भी कुछ खास नहीं थे, गरीबॊं के वैसे भी ज्यादा दोस्त नहीं होते है।धन की की कमी इंन्सान को जीवन मे बड़ा ही संकुचित एवं आत्मविश्वास विहिन बना देते है। मेंरी भाभी के साथ भी कुछ ऎसा ही था वो बहुत ही सकुचा कर रहती थी अन्यन्त अल्प बात करती थी । किसी भी बात का "जी" "अच्छा" "ठीक है" ऎसे ही जवाब देती थी बहुत ही संभल कर बोलती थी उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकि बातों से कोई भी सदस्य नारज ना होने पाये। कभी कुछ गलत हो जाये तो भी शिकायत नहीं करती थी।शायद उसे अभी अपनी तीन जवान बहनों कि शादी कि चिंता मन ही मन सता रही थी इसलिये उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकी वजह से उसके परिवार का नाम खराब ना हो और उसकी बहनॊं कि शादी में कोई अड़्चन ना आये। गरीब मध्यम वर्गीय परिवारों के लिये तो वैसे भी ईज्जत ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मेंरी मां तो बड़ी खुश थी ऎसी शर्मिली बहू को पाकर।
मुझे अपनी भाभी कि जो बात सबसे ज्यादा पसंद थी वो था उसका शानदार जिस्म। गोरा बदन,सुंदर चेहरा,बेह्तरीन चिकनी एवं मोटी जांघे,बाहर की तरफ़निकलती हुई गोल गोल मोटी मोटी गांढ़ और मदहोश करने वाली रसीली शानदार उभारों वाली उसकी दोनों छातियां। मैं तो जब भी उसे देखता मेरा लंड़ खड़ा हो जाता और मुझे ऎसी ईच्छा होती कि मै इसे तुरंत नंगी कर ड़ालू और उसकी रसीली छातियों में भरे हुए जवानी के रस को जी भर कर पिऊ। लेकिन ये एक सच्चाई थी कि वो रसीली छातियां और मखमली चूत मेंरी नही थी। ये सोच कर मेंरा मन अपने भाई के प्रति थोड़ी देर के लिये घृणा से भर जाता।
मेंरा भाई वैसे भी उस बेह्तरीन जवान पुदी का मजा नहीं ले पाता था क्योंकि उसकी नौकरी ही ऎसी थी महिने में बीस दिन तो बो बाहर ही रहता था। बचे हुए दस दिनों में सात दिन उसे शहर में अपनी टिम के साथ घूमना होता था।अब तीन दिन में नंगा नहायेगा क्या ? और निचोडे़गा क्या? सो किसी-किसी महिने तो भाभी बिन चुदी ही रह जाती थी। कभी कभी मुझे ऎसा विचार आता कि भाभी के लिये ऎसे विचार मन में लाना गलत है, लेकिन जैसे ही भाभी मेंरे साम्ने आती मेंरी कामवासना मेंरी अन्तरात्मा पर हावी हो जाती और मैं फ़िर से उत्तेजित हो जाता और उसको चोदने के खयाल में डूब जाता । मेंरे लिये तो भाभी को चोदना अब एक मिशन बन चुका था, मैं मन ही मन अपनी भाभी के उपर न्योछावर हो चुका था और उसके बेह्तरिन जिस्म का दिवाना बन गया था। अब तो रात दिन मेंरे मन में भाभी को चोदने का ही खयाल रहता था।
भाभी का शर्मिलापन मेंरे लिये काफ़ी सुखद और मेंरी योजना में काफ़ी सहायक था। मैने तय कर लिया कि ऎसे भाभी के जिस्म को चोदने का खयाल कर के मुठ्ठ मारने से कुछ हासिल नही होने वाला उसे पाने के लिये प्रयास करना पड़ेगा। वैसे भी जिस इंसान के लिये इस बेह्तरीन पुदी को घर में लाया गया था उसे तो इसे ठीक से देखने की भी फ़ुर्सत नहीं थी चोदने की बात तो बहुत दूर थी। दौलत और जवानी दोनों ही उपभोग करने पर हि सुख देते हैं अन्यथा दोनों बोझ बन कर रह जाते है। दौलत और औरत की जवानी दोनों को ही अपनी रक्षा के लिये मजबूत कंधो के सहारे की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कोई भी लूट कर ले जा सकता है। मेंरे घर में भी जवानी की दौलत खुले आम घूम रही थी और उसका रखवाला गायब था। सो मैंने उसे लूटने का फ़ैसला कर लिया था। बस प्रयास करना था और अवसर हासिल करना था ।
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