1. रजस्राव चक्र/माहवारी चक्र | ||||||||||||||||||||||||
औरत के प्रजनन अंगों में होने वाले बदलावों के आवर्तन चक्र को माहवारी चक्र कहते हैं। यह हॉरमोन तन्त्र के नियन्त्रण में रहता है एवं प्रजनन के लिए जरूरी है। माहवारी चक्र की गिनती रूधिर स्राव के पहले दिन से की जाती है क्योंकि रजोधर्म प्रारम्भ का हॉरमोन चक्र से घनिष्ट तालमेल रहता है। माहवारी का रूधिर स्राव हर महीने में एक बार 28 से 32 दिनों के अन्तराल पर होता है। परन्तु महिलाओं को यह याद करना चाहिए कि माहवारी चक्र के किसी भी समय गर्भ होने की सम्भावना है। 2. माहवारी अवधि | ||||||||||||||||||||||||
3. माहवारी दस से पन्द्रह साल की लड़की के अण्डाशय हर महीने एक परिपक्व अण्डा या अण्डाणु पैदा करने लगता है। वह अण्डा डिम्बवाही थैली (फेलोपियन ट्यूब) में संचरण करता है जो कि अण्डाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है तो रक्त एवं तरल पदाथॅ से मिलकर उसका अस्तर गाढ़ा होने लगता है। यह तभी होता है जब कि अण्डा उपजाऊ हो, वह बढ़ता है, अस्तर के अन्दर विकसित होकर बच्चा बन जाता है। गाढ़ा अस्तर उतर जाता है और वह माहवारी का रूधिर स्राव बन जाता है, जो कि योनि द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। | ||||||||||||||||||||||||
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10. यौन परक सम्बन्धों से होने वाले संक्रमण रोग यौनपरक सम्बन्धों से होने वाले संक्रमण रोग वे होते हैं जो कि एक व्यक्ति से दूसरे तक अवैध यौन सम्पर्क से पहुंचते है जैसे कि यौनपरक सम्भोग, मौखिक सेक्स और गुदा सम्बन्धी सेक्स। इन संक्रमण रोगों के लक्षण निम्नलिखित हैं (1) महिला की योनि में खुजली और/अथवा योनि से स्राव (2) पुरूष के लिंग से स्राव (3) सेक्स करते हुए या मूत्र त्याग के समय दर्द (4) जननांग क्षेत्र में बिना दर्द वाले लाल जख्म (5) गुदापरक सेक्स करने वाला के मलद्वार के भीतर और आसपास पीड़ा (6) असामान्य संक्रामक रोग, बिना कारण थकावट रात्रि में बिस्तर गीला होना और वजन घटना। 11. एच. आई. वी / एड्स एड्स का अभिप्राय है उपार्जित असंक्रामक न्यूनता संलक्षण। संक्रमणों के विरूद्ध ढाल स्वरूप-शरीर के असंक्रामक तन्त्र पर जब मानवी असंक्रामक न्यूनता के जीवाणू (एच. आई. वी) प्रहार करते हैं तब एड्स के रोग से ग्रस्त लोग घातक संक्रामक रोगों और कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं। एच. आई. वी. से संक्रमित किसी व्यक्ति के वीर्य योनि से निःसृत शलेएमा या रक्त का जब किसी अन्य व्यक्ति से आदान-प्रदान होता है तब एच. आई. वी. फैलता है। यह यौन सम्भोग दूसरे से इंजैक्शन की सुई बांटने से होता है या एच. आई. वी. से प्रभावित जन्म के समय उसके बच्चे को संक्रमित होता है। | ||||||||||||||||||||||||
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13. शुक्रवाहिका शुक्रवाहिका वे नलियां है जो कि वीर्य को शुक्राशय में ले जाती है, जहां कि लिंग द्वारा बाहर निकालने से पूर्व वीर्य को संचित करके रखा जाता है। 14. अण्डकोश अण्डकोश वह छोटी सी थैली है जिसमें अण्डग्रन्थि (मर्दाना जनन अवयव) होते हैं। यह लिंग के पीछे रहते हैं। 15. अण्डाशय-रस (इस्ट्रॅजन) अण्डाशय रस महिला अण्डकोश से पैदा होने वाला वह हॉरमोन है जो उसमें यौनपरक विकास करता है। यौवनारम्भ में महिला के व्यक्तित्व में अप्रत्यक्ष रूप से यौनपरक प्रवृतियों की उत्पत्ति को बढ़ावा देता है, अण्डाणुओं की उत्पत्ति को प्रोत्साहित करता है और गर्भधारण के लिए गर्भाशय के अस्तर को तैयार करता है। 16. प्रोजेस्टॅरोन स्त्रियों के अण्डकोष से उत्पन्न वह हॉरमोन है जिससे माहवारी चक्र चलता है और जिससे गर्भधारण होता है।. | ||||||||||||||||||||||||
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