Friday, May 30, 2008

गाँव का मजा

कोमल ki शादी को दो साल हो चुके थे. बचपन से ही कोमल बहुत खूबसूरत थी. १६ साल की उम्र में ही जिस्म खिलने लग गया था. सोलहवां साल लगते लगते तो कोमल की जवानी पूरी तरह नीखर आई थी. ऐसा लगता ही नहीं था की अभी १०थ् क्लास में पर्ती है. School की स्किर्ट में उसकी भरी भरी जान्घें लड़कों पे कहर ढानेलागी थी. School के लड़के skirt के नीचे सी झाँक कर कोमल की पैंटी की एक झलक पाने के लीये पागल रहते थे. कभी कभार जुब्बस्केत्बल्ल खेलते हुए या कभी हवा के झोंके सी कोमल की स्किर्ट उठ जाती तो किस्मत वालों को उसकी पैंटी के दर्शन हो जाते. लड़के तो लड़के, School के Teacher भी कोमल की जवानी के असर से नहीं बचे थे. कोमल के भारी नितुम्ब, पतली कमर और उभरती चूचियन देखके उनके सीने पे चहुरियन चल जाती. कोमल को भी अपनी जवानी पेनाज़ था. वो भी लोगों का दील जलाने में कोई कसार नहीं छोड़ती थी.

उनीस साल की होते ही कोमल की शादी हो गई. कोमल ने शादी तक अपने कुंवारे बदन को संभाल के रखा था. उसने सोच रखा था की उसका कुंवारा बदन ही उसके पती के लीये सुहाग रात को एक उन्मोल तोह्फहोगा. सुहाग रात को पती का मोटा लुम्बा लंड देख कर कोमल के होश उर गए थे. उस मोटे लंड ने कोमल की कुंवारी चूत लहू लुहान कर दी थी. शादी के बाद कुछ din तो कोमल का पती उसे रोज़ चार पाँच बार चोद्ता था. कोमल भी एक लुम्बा मोटा लौडा पा कर बहुत खुश थी. लेकीन धीरे धीरे चुदाई कम होने लगी और शादी के एक्साल बाद तो ये नौबत आ गई थी की महीने में मुश्किल से एक दो बार ही कोमल की चुदाई होती. हालांकी कोमल ने सुहाग रात को अपने पती को अपनी कुंवारी चूत का तोहफा दीया था, लेकीन वो बचपन से ही बहुत कामुक लड़की थी. बस कीसी तरह अपनी वासना को कंट्रोल करके, अपने School और कॉलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक अपनी चूत को बचा के रखने में सफल हो गई थी. महीने में एक दो बार की चुदाई से कोमल की वासना की प्यास कैसे बुझती ? उसे तो एक दीन में कम से कम Teen चार बार चुदाई की ज़रूरत थी.

आखिकार जब कोमल का पती जब तीन महीने के लीये टुर पे गया तो कोमल के देवर ने उसके अकेलेपन का फायदा उठा कर उसकी वासना को तृप्त किया. अब तो कोमल का देवर रामू कोमल को रोज़ चोद कर उसकी प्यास बुझाता था. एक दीन गाँव से टेलीग्राम आया की सास की तबियत कुछ ख़राब हो गई है. कोमल के ससुर एक बड़े ज़मींदार थे. गाँव में उनकी काफ़ी खेती थी. कोमल का पती राजेश काम के कारण नहीं जा सकता था और देवर रामू का कॉलेज था. कोमल को ही गाँव जाना पारा. वैसे भी वहां कोमल की ही ज़रूरत थी, जो सास और सुर दोनों का ख्याल कर सके और सास की जगह घर को संभाल सके. कोमल शादी के फौरन बाद अपने ससुराल गई थी. सास सौर की खूब सेवा करके कोमल ने उन्हें खुश कर दीया था. कोमल की खूबसूरती और भोलेपन से दोनों ही बहुत प्राभवित थे. कोमल की सास माया देवी तो उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी. दोनों इतनी सुंदर, सुशील और मेहनती बहु से बहुत खुश थे. बात बात पे शर्मा जाने की अदा पे तो ससुर रामलाल फीदा थे. उन्होंने ख़ास कर कोमल को कम से कम दो महीने के लीये भेजने को कहा था. दो महीने सुन कर कोमल का कलेजा धक् रह गया था. दो महीने बिना चुदाई के रहना बहुत मुश्किल था. यहाँ तो पती की कमी उसका देवर रामू पूरी कर देता था. गाँव में दो महीने तक क्या होगा, ये सोच सोच कर कोमल परेशान थी लेकीन कोई चारा भी तो नहीं था. जाना तो था ही. राजेश ने कोमल को कानपूर में ट्रेन में बैठा दीया. अगले दीन सुबह ट्रेन गोपालपुर गाँव पहुँच गई जो की कोमल की सौराल थी.

कोमल ने चूरिदार पहन रखा था. कुरता कोमल के घुटनों से करीब आठ इंच ऊपर था और कुरते के दोनों साइड का कटाव कमर तक था. चूरिदार कोमल के नितुम्बों तक तैघ्त था. चलते वक्त जब कुरते का पल्ला आगे पीछे होता या हवा के झोंके से उठ जाता तो तिघ्त चूरिदार में कासी कोमल की टांगें, मदहोश कर देने वाली मांसल जान्घें और विशाल नितुम्ब बहुत ही Sexy लगते. ट्रेन में सुब मर्दों की नज़रें कोमल की टांगों पर लगी हुई थी. स्टेशन पर कोमल को लेने सास और ससुर दोनों आए हुए थे. कोमल अपने ससुर से परदा कत्र्ती थी इसलिए उसने चुन्नी का घूँघट अपने सिर पे ले लिया. अभी तक जो चुन्नी कोमल की छातीयों के उभार को छुपा रही थी, अब उसके घूँघट का काम करने लगी. कोमल की बरी बरी छातियन स्टेशन पे सबका ध्यान खींच रही थी. कोमल ने झुक के सास के पाँव छूए. जैसे ही कोमल पों छूने के लीये झुकी रामलाल को उसकी चूरिदार में कासी मांसल जान्घें और नितुम्ब नज़र आने लगे. रामलाल का दील एक बार तो धड़क उठा. शादी के बाद से बहु किखूब्सूरती को चार चाँद लुग गए थे. बदन भर गया था और्जवानी पूरी तरह नीखर आई थी. रामलाल को साफ दीख रहा था की बहु का तिघत चूरिदार और कुरता बरी मुश्किल से उसकी जवानी को समेटे हुए थे. सास से आशिर्वाद लेने के बाद कोमल ने सुर्जी के भी पैर छूए. रामलाल ने बहु को प्यार से गले लगा लीया. बहु के जवान बदन का स्पर्श पाते ही रामलाल कांप गया. कोमल की सास माया देवी बहु के आने से बहुत खुश थी. स्टेशन के बाहर नीकल कर उन्होंने तांगा कीया. पहले माया देवी टाँगे पे चढी. उसके बाद रामलाल ने बहु को चढ़ने दीया. रामलाल को मालूम था की जब बहु टाँगे पे चढ़ने के लीये टांग ऊपर करेगी तो उसे कुरते के कटाव में से बहु की पूरी टांग और नितुम्ब भी देखने को मिल जाएंगे. वाही हुआ. जैसे ही कोमल ने टाँगे पे बैठने के लीये टांग ऊपर की राम्म्लाल को चूरिदार में कासी बहु की Sexy टांगों और भारी चूत्रों की झलक मिल गई. यहाँ तक की रमलाल को चूरिदार के सफ़ेद महीन कपरे में से बहु की कच्छी (पैंटी) की भी झलक मिल गई. बहु ने गुलाबी रंग की कच्छी पहन रखी थी. अब तो रामलाल का लंड भी हरकत करने लगा. उसने बरी मुश्किल से अपने को संभाला. रामलाल को अपनी बहु के बरे में ऐसा सोचते हुए अपने ऊपर शरम आ रही थी. वो सोच रहा था की मैं कैसा इंसान हूँ जो अपनी ही बहु को ऐसी नज़रों से देख रहा हूँ. बहु तो बेटी के समान होती है. लेकीन क्या करता ? था तो मरद ही. घर पहुँच कर सास ससुर ने बहु की खूब खातिरदारी की.

गाँव में आ कर अब कोमल को १५ दीन हो चुके थे. सास की तबियत ख़राब होने के कारण कोमल ने सारा घरका काम संभाल लीया था. उसने सास ससुर की खूब सेवा करके उन्हें खुश कर दीया था. गाँव में औरतें लहंगा चोली पहनती थी, इसलिए कोमल ने भी कभी कभी लहंगा चोली पहनना शुरू कर दीया. लहंगे चोली ने तो कोमल की जवानी पे चार चाँद लगा दिए. गोरी पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी नितुम्बों ने तो रामलाल का जीना हराम कर रखा था.

कोमल का ससुर रामलाल एक लुम्बा तगर आदमी था. अब उसकी उम्र करीब ५५ साल हो चली थी. जवानी में उसे पहलवानी का शौक था. आज भी उसका जिस्म बिल्कुल गाथा हुआ था. रोज़ लंगोट बाँध के कसरत करता था और पूरे बदन की मालिश करवाता था. सबसे बरी चीज़ जिस पर उसे बहुत नाज़ था, वो थी उसके मुस्क्लेस और उसका ११ इंच लुम्बा फौलादी लंड. लेकीन रामलाल की बदकिस्मती ये थी की उसकी पत्नी माया देवी उसकी वासना की भूख कभी शांत नहीं कर सकी. माया देवी धार्मिक स्वभाव की थी. उसे सेक्स का कोई शौक नहीं था. रामलाल के मोटे लुम्बे लौदे से डरती भी थी क्योंकि हेर बार चुदाई में बहुत दर्द होता था. वो मजाक में रामलाल को गधा कहती थी. पत्नी की बेरुखी के कारण रामलाल को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लीये दूसरी औरतों का सहारा लेना पारा. राम लाल के खेतों में कई औरतें काम करती थी. In मजदूर औरतों में से सुंदर और जवान औरतों को पैसे का लालच दे कर अपने खेत के पम्प हौस में चोद्ता था. जिन औरतों को रामलाल ने एक बार चोद दीया वो तो मानो उसकी गुलाम बुन जाती थी. आख़िर ऐसा लुम्बा मोटा लंड बहुत किस्मत वाली औरतों को ही नसीब होता है. तीन चार औरतें तो पहली चुदाई में बेहोश भी हो गई. दो औरतें तो ऐसी थी जिनकी चूत रामलाल के फौलादी लौदे ने सुच्मुच ही फार दी थी. अब तक रामलाल कम से कम बीस औरतों को चोद चुका था. लेकीन रामलाल जानता था की पैसा दे कर चोदने में वो मज़ा नहीं जो लड़की को पटा के चोदने में है. आज तक चुदाई का सबसे ज़्यादा मज़ा उसे अपनी साली को चोदने में आया था. माया देवी की बहिन सीता, माया देवी से १० साल छोटी थी. रामलाल ने जब उसे पहली बार चोदा उस वक्त उसकी उम्र १७ साल की थी. कॉलेज में पर्ती थी. गर्मिओं की छुट्टी बिताने अपने जिजू के पास आई थी. बिल्कुल कुंवारी चूत थी. रामलाल ने उसे भी खेत के पम्प हौस में ही चोदा था. रामलाल के मूसल ने सीता की कुंवारी नाज़ुक सी चूत को फाड़ ही दीया था. सीता बहुत चिल्लाई थी और फीर बेहोश हो गई थी. उसकी चूत से बहुत खून निकला था. रामलाल ने सीता के होश में आने से पहले ही उसकी चूत का सारा खून साफ कर दीया था ताकी वो डर्र न जाए. रामलाल से चुदने के बाद सीता सात दीन ठीक से चल भी नहीं पाई और जब ठीक से चलने लायक हुई तो शहर चली गई. लेकीन ज़्यादा दीन शहर में नहीं रह सकी. रामलाल के फौलादी लौडे की याद उसे फीर से अपने जीजू के पास खींच लायी. इस बार तो सीता सिर्फ़ जिजू से चुद्वान्वे ही आई थी. रामलाल ने तो समझा था की साली जी नाराज़ हो कर चली गई. आते ही सीता ने रामलाल को कहा " जिजू मैं सिर्फ़ आपके लीये ही आई हूँ." उसके बाद तो करीब रोज़ ही रामलाल सीता को खेत के पम्प हौस में चोद्ता था. सीता भी पूरा मज़ा ले कर चुद्वाती थी. रामलाल के खेत में काम करने वाली सभी औरतों को पटा था की जीजा जी साली की खूब चुदाई कर रहे हैं. ये सिलसिला करीब चार साल चला. सीता की शादी के बाद रामलाल फीर खेत में काम करने वालिओं को चोदने लगा. लेकीन वो मज़ा कहाँ जो सीता को चोदने में आता था. बरे नाज़ नखरों के साथ चुद्वाती थी. शादी के बाद एक बार सीता गाँव आई थी. मोका देख कर रामलाल ने फीर उसे चोदा. सीता ने रामलाल को बताया था की रामलाल के लुम्बे मोटे लौडे के बाद उसे पती के लंड से त्रिप्ती नहीं होती थी. सीता भी राम लाल को कहती " जीजू आपका लंड तो सुच्मुच घधे के लंड जैसा है." गाँव में गधे कुछ ज़्यादा ही थे. जहाँ नज़र डालो वहीं चार पाँच गधे नज़र आ जाते. कुछ दीन बाद सीता के पती और सीता दुबई चले गए. उसके बाद से रामलाल को कभी भी चुदाई से तृप्ति नहीं मिली. अब तो सीता को दुबई जा कर २० साल हो चुके थे. रामलाल के लीये अब वो सिर्फ़ याद बुन कर रह गई थी. माया देवी तो अब पूजा पथ में ही ध्यान लगाती थी. इस उम्र में खेत में काम करने वाली औरतों को भी छोड़ना मुश्किल हो गया था. अब तो जब कभी माया देवी की कृपा होती तो साल में एक दो बार उनको चोद कर ही काम चलाना परता था. लेकीन माया देवी को चोदने में बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता था. धीरे धीरे रामलाल को विश्वास होने लगा था की अब उसकी चोदने की उम्र नीकल गई है. लेकीन जब से बहु घर आई थी रामलाल की जवानी की यादें फीर से ताज़ा हो गई थी. बहु की जवानी तो सुच्मुच ही जान लेवा थी. सीता तो बहु के सामने कुछ भी नहीं थी. शादी कऐ बाद से तो बहु की जवानी मनो बहु के ही काबू में नहीं थी. बहु के कपरे बहु की जवानी को छुपा नहीं पाते थे. जब से बहु आई थी रामलाल की रातों की नींद उर गई थी. बहु रामलाल से परदा करती थी. मुंह तो दहक लेती थी लेकीन उसकी बरी बरी छूचियन खुली रहती थी. गोरा बदन, लुम्बे काले घने बाल, बरी बरी छातियन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चूटर बहुत जान लेवा थे. तिघत चूरिदार में तो बहु की मांसल टांगें रामलाल की वासना भड़का देती थी. कोमल जी जान से अपने सास ससुर की सेवा करने में लगी हुई थी.कोमल को महसूस होने लगा था की सुर्जी उसे कुछ अजीब सी नाज्रोंसे देखते हैं. वैसे भी औरतों को मरद के इरादों का बहुत जल्दिपता लुग जाता है. फीर वो अक्सर सोचती की शायद ये उसका वहम है.सुर जी तो उसके पिता के समान थे.एक दीन की बात है. कोमल ने अपने कपरे धो कर छत पर सूख्नेदाल रखे थे. इतने में घने बादल छा गए. बारिश होने कोठी. रामलाल कोमल से बोले," बहु बारिश होने वाली है मैं ऊपर से कपडे ले आता हूँ."" नहीं. नहीं पिताजी आप क्यों तकलीफ करते हैं मैं अभी जा के लाती हूँ." कोमल बोली. उसे मालूम था की आज सिर्फ़ उसी के कपडे सूख रहे थे." अरे बहु टब सारा दीन इतना काम करती हो. इसमे तकलीफ कैसी? हमें भी तो कुछ काम करने दो." ये कह के रामलाल चाट पे चल पारा. छत पे पहुँच के रामलाल को पटा लगा की क्यों बहु ख़ुद ही कपरे लेन की जीद कर रही थी. डोरी पर सिर्फ़ दो ही कपरे सूख रहे थे. एक बहु की काछी और एक उसकी ब्रा. रामलाल का दील ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.कितनी छोटी सी काछी थी, बहु के विशाल नितुम्बों को कैसे धक्तिहोगी. रामलाल से नहीं रहा गया और उसने कोमल की पैंटी को डोरी सुतार लीया और हाथों में पैंटी के मुलायम कपरे को फील कर्नेलगा. फीर उसने पैंटी को उस जगह से सूंघ लीया जहाँ कोमल किचूत पैंटी से तौच करती थी. हालांकी पैंटी धुली हुई थी फीर भिराम्लाल औरत के बदन की खुशबू पहचान गया. रामलाल मून ही मुन्ही सोचने लगा की अगर धुली हुई काछी में से इतनी मादक खुश्बूआती है तो पहनी हुई काछी की गंध तो उसे पागल बना देगी. राम्लाल्का लौडा हरकत करने लगा. वो बहु की पैंटी और ब्रा ले कर नीचे आया,

" बहु ऊपर तो ये दो ही कपडे थे." ससुर के हाथ में अपनी पंत्यौर ब्रा देख कर कोमल शरम से लाल हो गई. उसने घूघट तोनिकाल ही रखा था इसलिए रामलाल उसका चेहरा नहीं देख सकता था.कोमल शर्माते हुए बोली," पिताजी इसीलिए तो मैं कह रही थी की मैं ले आती हूँ. आप्नेबेकार तकलीफ की."

" नहीं बहु तकलीफ किस बात की? लेकीन ये इतनी छोटी सी कछितुम्हारी है?" अब तो कोमल का चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख लाल होगया.

" ज्ज्ज..जी पिताजी." कोमल सिर नीचे किए हुए बोली." लेकीन बहु ये तो तुम्हारे लीये बहुत छोटी है. इससे तुम्हारा काम्चल तो जाता है न?"" जी पिताजी." कोमल सोच रही थी की कीसी तरह ये धरती फत्जाए और मैं उसमे समा जाऊं." बेटी इसमे शर्माने की क्या बात है ?. तुम्हारी उम्र में लड़किओं किकछी अक्सर बहुत जल्दी छोटी हो जाती है. गाँव में तो और्तेंकच्च्ही पहनती नहीं हैं. अगर छोटी हो गई है तो सासू माँ सेकः देना शहर जा कर और खरीद एंगी. हम गए तो हम ले आएँगे.लो ये सूख गई है, रख लो." ये कह कर रामलाल ने कोमल को उस्किपंटी और ब्रा दे दी. इस घटना के बाद रामलाल ने कोमल के साथ और्खुल कर बातें करना शुरू कर दीया था एक दीन माया देवी को शहर सत्संग में जन था. रामलाल उनको ले कर शहर जाने वाला था. दोनों घर से सुबह स्टेशन की और चल पड़े.रास्ते में रामलाल के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता हामिल गया. रामलाल ने कहा की Aunty को भी साथ ले जाओ. लड़का मंगाया और माया देवी उसके साथ कार में शहर चली गई. रामलाल घर्वापस आ गया. दरवाज़ा उंदर से बूंद था. बाथरूम से पानी गिरने किअवाज़ आ रही थी. शायद बहु नहा रही थी. कोमल तो समझ रहिथि की सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे. रामलाल के कमरे का एक्दार्वाज़ा गली में भी खुलता था. रामलाल कमरे का टला खोल के अप्नेकमरे में आ गया. उधर कोमल बेखबर थी. वो तो समझ रही थीकि घर में कोई नहीं है. नहा कर कोमल सिर्फ़ पेट्तिकोअत और ब्लौसे में ही बाथरूम से बाहर नीकल आई. उसका बदन अब भी गीला था. बाल भीगे हुए थे. कोमल अपनी पैंटी और ब्रा जो अभी उसने धोई थी सुखाने के लीये आँगन में आ गई. रामलाल अपने कमरे के परदे के पीछे से सारा नज़ारा देख रहा था. बहु को पेट्तिकोअत और ब्लौसे में देख कर रामलाल को पसीना आ गया. क्या बाला की खूबसूरत थी.

बहुत कसा हुआ पेट्तिकोअत पहनती थी. बदन गीला होने के कारण पेट्तिकोअत उसके चूत्रों से चिपका जा रहा था. बहु के फैले हुए चूटर पेट्तिकोअत में बरी मुश्किल से समा रहे थे. बहु का मादक रूप मनो उसके ब्लौसे और पेट्तिकोअत में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था. उफ क्या गद्राया हुआ बदन था. बहु ने अपनी धुली हुई काछी और ब्रा डोरी पर सूखने दाल दी. अचानक वो कुछ उठाने के लीये झुकी तो पेट्तिकोअत उसके विशाल चूत्रों पर कास गया. पेट्तिकोअत के सफ़ेद कपरे में से रामलाल को साफ दीख रहा था की आज बहु ने काले रंग की काछी पहन रखी है. उफ बहु के सिर्फ़ बीस प्रतिशत चूटर ही काछी में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे. जब बहु सीधी हुई तो उसकी काछी और पेट्तिकोअत उसके विशाल चूत्रों के बीच में phans gaye. अब तो रामलाल का लौडा फन्फनाने लगा. उसका मून कर रहा था की वो जा कर बहु के चूत्रों की दरार में फँसी पेट्तिकोअत और काछी को खींच के निकाल ले. बहु ने मानो रामलाल के दील की आवाज़ सुन ली. उसने अपनी चूत्रों की दरार में फँसे पेट्तिकोअत को कींच के बाहर निकाला लीया. बहु आँगन में खरी थी इसलिए पेट्तिकोअत में से उसकी मांसल टांगें भी नज़र आ रही थी. रामलाल के लंड में इतना तनाव सीता को चोदते वक्त भी नहीं हुआ था. बहु के Sexy चूत्रों को देख के रामलाल सोचने लगा की इसकी गांड मार के तो आदमी धन्य हो जाए. रामलाल ने आज तक कीसी औरत की गांड नहीं मारी थी. असलियत तो ये थी की रामलाल का गधे जैसा लौडा देख कर कोई औरत गांड मरवाने के लीये राज़ी ही नहीं थी. माया देवी तो चूत ही बरी मुश्किल से देती थी गांड देना तो बहुत दूर की बात थी. एक दीन कोमल ने खेतों में जाने की इच्छा प्रकट की. उसने सासू माँ से कहा, " मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हूँ, अगर आप इजाज़त देन तो आपके खेत और फसल देख औन. शहर में तो ये देखने को मिलता नहीं है."

" अरे बेटी इसमें इजाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जब चाहो चली जाओ. मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूँ तुम्हें खेत दिखाने ले जाएँ."

" नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं अकेली ही चली जाउंगी."

" इसमे परेशान करने की क्या बात है? कई दीन से ये भी खेत नहीं गए हैं तुझे भी साथ ले जाएंगे. जाओ टब तैयार हो जाओ. और हाँ लहंगा चोली पहन लेना, खेतों में जाने के लीये वही ठीक रहता है." कोमल तैयार होने गई. माया देवी ने रामलाल को कहा,

" अजी सुनते हो, आज बहु को खेत दिखा लाओ. कह रही थी मैं अकेली ही चली जाती हूँ. मैंने ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले जाएंगे."

" ठीक है मैं ले जाऊंगा, लेकीन अकेली भी चली जाती तो क्या हो जाता ? गाँव में किस बात का डर्र?""

" कैसी बातें करते हो जी? जवान बहु को अकेले भेजना चाहते हो. अभी नादाँ है. अपनी जवानी तो उससे संभाली नहीं जाती, अपने आप को क्या संभालेगी? " इतने में कोमल आ गई. लहंगा चोली में बला की खूबसूरत लुग रही थी.

" चलिए पिताजी मैं टायर हूँ."

" चलो बहु हम भी टायर हैं." ससुर और बहु दोनों खेत की और नीकल परे. कोमल आगे आगे चल रही थी और रामलाल उसके पीछे. कोमल ने घूंघट निकाल रखा था. रामलाल बहु की मस्तानी चाल देख कर पागल हुआ जा रहा था. बहु की पतली गोरी कमर बल खा रही थी. उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूटर चलते वक्त ऊपर नीचे हो रहे थे. लहंगा घुटनों से थोरा ही नीचे था. बहु की गोरी गोरी टांगें और चूत्रों तक लटकते लुम्बे घने काले बाल रामलाल की दील की धड़कन बारह रहे थे. ऐसा नज़ारा तो रामलाल को ज़िंदगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ. रामलाल की नज़रें बहु के मटकते हुए मोटे मोटे चूत्रों और पतली बल खाती कमर पर ही टिकी हुई थी. Un जान लेवा चूत्रों को मटकते देख कर रामलाल की आंखों के सामने उस दीन का नजारा घूम गया जिस दीन उसने बहु के चूत्रों के बीच उसके पेट्तिकोअत और काछी को फँसे हुए देखा था. रामलाल का लौडा खड़ा होने लगा. कोमल घूंघट निकाले आगे आगे चली जा रही थी. वो अच्छी तरह जानती थी की ससुर जी की आँखें उसके मटकते हुए नितुम्बों पे लगी हुई हैं. रास्ता संकरा हो गया था और अब वो दोनों एक पूग डंडी पे चल रहे थे. अचानक साइड की पूग डंडी से दो गधे कोमल के सामने आ गए. रास्ता इतना कम चौरा था की साइड से आगे निकलना भी मुश्किल था. मजबूरन कोमल को गधों के पीछे पीछे चलना पारा. अचानक कोमल का ध्यान पीछे वाले गधे पे गया.

" अरे पिताजी देखिये ये कैसा गधा है ? इसकी तो पाँच टांगें हैं." कोमल आगे चल रहे गधे की और इशारा करते हुए बोली.

" बेटी, टब तो बहुत भोली हो, ज़रा ध्यान से देखो इसकी पाँच टांगें नहीं हैं." कोमल ने फीर दयां से देखा तो उसका कलेजा दहक सा रह गया. गधे की पाँच टांगें नहीं थी, वो तो गधे का लंड था. बाप रे क्या लुम्बा लंड था ! ऐसा लुग रहा था जैसे उसकी टांग हो. कोमल ने ये भी नोटिस कीया की आगे वाला गधा, गधा नहीं बल्कि गाधी थी क्योंकि उसका लंड नहीं था. गधे का लंड खरा हुआ था. कोमल समझ गई की गधा क्या करने वाला था. अब तो कोमल के पसीने चुत गए. पीछे पीछे ससुर जी चल रहे थे. कोमल अपने आप को कोसने लगी की ससुर जी से क्या सवाल पूछ लीया. कोमल का शरम के मरे बुरा हाल था. रामलाल को अच्छा मोका मिल गया था. उसने फीर से कहा,

" बोलो, बहु हैं क्या इसकी पाँच टांगें ?" कोमल का मुंह शरम से लाल हो गया, और हक्लाती हुई बोली,

" जज..जी चार ही हैं."

" तो वो पांचवी चीज़ क्या है बहु?"

" ज्ज्ज...जी वो तो ......जी हमें नहीं पटा."

„ पहले कभी देखा नहीं बेटी ?" रामलाल मेज़ लेता हुआ बोला.

" नहीं पिताजी." कोमल शर्माते हुए बोली.

" मर्दों की टांगों के बीच में जो होता है वो तो देखा है न?"

" जी.." अब तो कोमल का मुंह लाल हो गया.

" अरे बहु जो चीज़ मर्दों के टांगों के बीच में होती है ये वाही चीज़ तो है." रामलाल कोमल के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा था की वाही हुआ जो कोमल मून ही मून मन रही थी की ना हो. गधा अचानक गाधी पे चढ़ गया और उसने अपना तीन फ़ुट लुम्बा लंड गाधी की चूत में पेल दीया. गधा वहीं खरा हो कर गाधी के उंदर अपना लंड पेलने लगा. इतना लुम्बा लंड गाधी की चूत में जाता देख कोमल हार्बर कर रुक गई और उसके मुंह से चीख नीकल गई,

" ऊओईइ मा...."

" क्या हुआ बहु ?"

" ज्ज्ज..जी कुछ नहीं." कोमल घबराते हुए बोली.

" लगता है हमारी बहु डर्र गई." रामलाल मौके का पूरा फायदा उठता हुआ दरी हुई कोमल का साहस बर्हाने के बहाने उसकी पीठ पे हाथ रखता हुआ बोला.

" जी पिताजी."

" क्यों डरने की क्या बात है ?"

" वैसे ही."

" वैसे ही क्या मतलब ? कोई तो बात ज़रूर है. पहली बार देख रही हो न?" रामलाल कोमल की पीठ सहलाता हुआ बोला.

" जी." कोमल शर्माते हुए बोली.

" अरे इसमें शर्माने की क्या बात है बहु. जो राकेश तुम्हारे साथ हेर रात करता है वाही ये गधा भी गाधी के साथ कर रहा है."

" लेकीन इसका तो इतना......." कोमल के मुंह से अनायास ही नीकल गया और फीर वो पच्छ्तायी..

" बहुत बार है बहु?" रामलाल कोमल की बात पूरी करता हुआ बोला.

अब रामलाल का हाथ फिसल कर कोमल के नितुम्बों पे आ गया था.

" ज्ज्जी...." कोमल सिर नीचे किए हुए बोली.

" ओ ! तो इसका इतना बार देख के डर्र गई ? कुछ मर्दों का भी गधे जैसा ही होता है बहु. इसमें डरने की क्या बात है ?. जब औरत बरे से बार झेल लेती है, फीर ये तो गाधी है."

कोमल का चेहरा शरम से लाल हो गया था. वो बोली,

" चलिए पिताजी वापस चलते हैं, हमें बहुत शरम आ रही है."

" क्यों बहु वापस जाने की क्या बात है? तुम तो बहुत शर्माती हो. बस दो मिनट में इस गधे का काम खत्म हो जाएगा फीर खेत में चैलेन्ज." बातों बातों में रामलाल एक दो बार कोमल के नितुम्बों पे हाथ भी फेर चुक्का था. रामलाल का लंड कोमल के मुलायम नितुम्बों पर हाथ फेर के खड़ा होने लगा था. वो कोमल की पैंटी भी फील कर रहा था. कोमल क्या करती ? घूंघट में से गधे को अपना लंड गाधी के उंदर पेलते हुए देखती रही. इतना लुम्बा लंड गाधी के उंदर बाहर जाता देख उसकी चूत पे भी चीतियन रेंगने लगी थी.

कोमल को रामलाल का हाथ अपने नितुम्बों पर महसूस हो रहा था. इतनी भोली तो थी नहीं. दुनियादारी अच्छी तरह से समझती थी. वो अच्छी तरह समझ रही थी की ससुर जी मौके का फायदा उठा के सहानुभूति जताने का बहाना करके उसकी पीठ और नितुम्बों पे हाथ फेर रहे हैं. इतने में गधा झर गया और उसने अपना तीन फ़ुट लुम्बा लंड बाहर निकाल लीया. गधे के लंड में से अब भी वीर्य गिर रहा था. ससुर जी ने दोनों गधों को रास्ते से हटाया और कोमल के चूत्रों पे हथेली रख कर उसे आगे की और हलके से धक्का देता हुआ बोला,

" चलो बहु अब हम खेत चलत हैं."

" चलिए पिताजी."

" बहु मालूम है तुम्हारी सासू माँ भी मुझे गधा बोलती है."

" हा.. ! क्यों ? आप तो इतने अच्छे हैं."

" बहु तुम तो बहुत भोली हो. वो तो कीसी और वझे से मुझे गधा बोलती है." अचानक कोमल रामलाल का मतलब समझ गई. शायद ससुर जी का लंड भी गधे के लंड के माफिक लुम्बा था तुभी सासू माँ ससुर जी को गधा बोलती थी. इतनी सी बात समझ नहीं आई ये सोच कर कोमल अपने आप को मम ही मून कोसने लगी. कोमल सोच रही थी की ससुर जी उससे कुछ ज़्यादा ही खुल कर बातें करने लगे हैं. इस तरह की बातें बहु और ससुर के बीच तो नहीं होती हैं. बात बात में प्यार जताने के लीये उसकी पीठ और नितुम्बों पे भी हाथ फेर देते थे.थोरी ही देर में दोनों खेत में पहुँच गए. रामलाल ने कोमल को सारा खेत दिखाया और खेत में काम करने वाली औरतों से भी मिलवाया. कोमल थक गई थी इसलिए रामलाल ने उसे एक आम के पैर के नीचे बैठा दीया.

" बहु तुम यहाँ आराम करो मैं कीसी औरत को तुम्हारे पास भेजता हूँ. मुझे थोरा पम्प हौस में काम है."

" ठीक है पिताजी मैं यहाँ बैठ जाती हूँ."

रामलाल पम्प हौस में चला गया. ......


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........raj.........

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