Wednesday, May 28, 2008

मन डोलता है, जुबान बोलती है

मन डोलता है, जुबान बोलती है
हेर एक नारी के, कपडे खोलती है;
गजब तब होता है, कोई पास होता है
औंगुलियाँ कांपती है, आंखें तौलाती हैं.


उनको छू लूं, हिम्मत नहीं होती
ना जाने कया होता है, भावनाएं खुलती हैं;
अरे ओ मर्द, कयों सर्द्द हुवे जा रह
करीब नारी है, मर्दानगी कयों दोलती है.

जुबान जो चाहे बोले जाये, उसकी बात जुदा
नारी है एक शक्ती, वीरता को तौलाती है;
बहुत गहरयी, समझ, तरुनाई हो
फिर उम्र्रा कुच्छ हो, देह खुल बोलती है.

प्यार की बातों को बोलनेवालों, सुन लो
मोहब्बत चीख पेर ना, दौड़ती है;
दिल की तद्पन से जब निकलती है, लपक आग
तब बाँहों में सिमट, नारी घुलती है.


--
........raj.........

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