Sunday, May 25, 2008

भैया से चुदाई

मैं अपने बारे में शुरु से बताती हूं। मैं अपने घर में अपने भाई बहनों
में तीसरे नम्बर पर हूं। सबसे बड़े भैया हैं जो आर्मी में हैं। उनकी शादी
नहीं हुई है। मुझसे छोटा एक भाई है। मैं होस्टल में रह कर पढ़ति हूं।

एक दिन मेरे भैया मुझ से मिलने होस्टल आये। मैं उन्हे देख कर बहुत खुश
हुई। वो सीधे आर्मी से मेरे पास ही आये थे। और अब घर जा रहे थे। मैने भी
उनके साथ घर जाने का मन बना लिया और कोलेज से 8 दिन की छुट्टी लेकर मैं
और भैया घर के लिये रावाना हो गये।

जिस ट्रेन से हम घर जा रहे थे उस ट्रेन में मेरा reservation नहीं था।
सिर्फ़ भैया का था। इसलिये हम लोगों को एक ही बर्थ मिली। ट्रेन में बहुत
भीड़ थी। अभी रात के 11 बजे थे। हम इस ट्रेन से सुबह घर पहुंचने वाले थे।

मैं और भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गये। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के
बद ठंड बहुत हो जाती थी। भैया ने बेग से कम्बल निकाल कर आधा मुझे उढा
दिया और आधा खुद ओढ लिया। मैं मुस्कुराती हुई उनसे सट कर बैठ गयी। सारी
सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी।

मुझे भी नींद आने लगी थी और भैया को भी। भैया ने मुझे अपनी गूद में सिर
रख कर सो जाने के लिये कहा। भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर
टिका और पैरों को फैला लिया। मैं उनकी गोद में आराम के लिये अच्छी तरह
ऊपर को हो गई। भैया ने भी पैर समेट कर अच्छी तेरह कम्बल में मुझे और खुद
को ढांक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रख कर बैठ गये।

तब तक मैने कभी किसी पुरुषह को इतने करीब से टच नहीं किया था। भैया की
मोटी मोटी जांघों ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया। मेरा एक गाल उनकी दोनो
जांघों के बीच रखा हुआ था। और एक हाथ से मैने उनके पैरों को कौलियों में
भर रखा था।

तभी मेरे सोते हुये दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद घायब हो
गई। वजह थी भैया के जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे
गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज़ है। मेरी जवानी
अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर
उठ रहा है।

ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैने गाल को दबा कर
उनके लंड का जायज़ा लिया जो ज़िप वाले स्थान पर तन गया था। भैया भी थोड़े
कसमसाये थे। शायद वो भी मेरे बदन से गरम हो गये थे। तभी तो वो बार बार
मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या
कहूं मैं खुद भी बहुत गरम होने लगी थी।

मैने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज़ से करवट बदली। अब मेरा
मुंह भैया के पेट के सामने था। मैने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ
उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए हिस्से पर आकर रुकी।
मैने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा।
उधर भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया। मैने
बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया।

उस वक्त भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को
सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना
ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था। भैया की तरफ़ से कोई रिएक्शन न होते
देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे
खींच कर उनकी ज़िप को धीरे धीरे खोल दिया। भैया इस पर भी कुछ कहने कि बजाय
मेरी कमर को कस कस कर दबा रहे थे।

पैंट के नीचे उन्होने अंडरवियर पहन रखा था। मेरी सारी झिझक न जाने कहां
चली गई थी। मैने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडरवियर
के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लयी। अंधेरे के कारण मैं
उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर नीचे कर के उसकी लम्बाई मोटाई
को नापा। 7-8 इंच लम्बा 3 इंच मोटा लंड था। बजाय डर के, मेरे दिल के सारे
तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में लंड था उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी
तरह फड़फड़ा उठी।

इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और t-shirt थी। मेरे इतना करने पर भैया भी
अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे। वो मेरी शर्ट को जींस से
खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात
समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई। अब भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू
किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा।

उधर उन्होने अपने हाथों को मेरे अनछुई चूचियों पर पहुंचाया इधर मैने
सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया। भैया
मेरी चूचियों को सहलाते सहलाते धीरे धीरे दबाने भी लगे थे। मैने उनके लंड
को गाल से सहलाया भैया ने एक बर बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो
मेरे मुंह से कराह निकल गई,,,,,,,,,,,,,,

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